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03 November 2025

MGIMT और शेखर ग्रुप ऑफ कॉलेजेस ने मनाया 17वाँ स्थापना दिवस

खनऊ। कानपुर रोड बन्थरा स्थित MGIMT और शेखर ग्रुप ऑफ कॉलेजेस के संयुक्त तत्वावधान में चार दिवसीय वार्षिकोत्सव एवं 17 वां स्थापना दिवस समारोह ‘ऊर्जा’ एवं ‘आरोहण’ के बैनर तले  सफलतापूर्वक मनाया गया। इस आयोजन में संस्थान के बी टेक, पॉलिटेक्निक, बी एड, फार्मेसी एवं पैरामेडिकल के छात्र-छात्राओं ने पूरे उत्साह के साथ खेल गतिविधियों एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों  में शिरकत की। 


समारोह के आज अंतिम दिन (3 नवंबर को) मुख्य अतिथि के रूप में प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव (चिकित्सा स्वास्थ्य, परिवार कल्याण एवं चिकित्सा शिक्षा) श्री अमित कुमार घोष ने उपस्थित  छात्र-छत्राओं एवं  गणमान्य जनों को संबोधित करते हुए कहा कि पूरे प्रदेश ही नहीं बल्कि देश और दुनिया को बेहतरीन तकनीकी विशेषज्ञों, शिक्षकों, फर्मासिस्ट और पैरामेडिकल कर्मियों की आवश्यकता है। यही एक ऐसा क्षेत्र है जहां योग्य अभ्यर्थियों के लिए सुनिश्चित रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। ऐसी स्थिति में अपने गुणी गुरुजनों के कुशल मार्गदर्शन में संस्थान के छात्र-छात्राएं  गागर में सागर की तरह देश और समाज की सेवा में अपना अमूल्य योगदान दे सकते हैं। 


विशिष्ट अतिथि आयकर आयुक्त भारत सरकार श्री रजत कुमार ने मुख्य अतिथि की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि प्लेसमेंट के क्षेत्र में एम जी इंस्टीट्यूट का रिकॉर्ड सर्वोत्कृष्ट रहा है जिसका एक मात्र कारण संस्थान के बेहतरीन शिक्षकों का समर्थन एवं कुशल मार्गदर्शन ही है। कुशल एवं योग्य शिक्षक सुनार की तरह होते हैं जो छात्र-छात्राओं की मेधा को तराशकर उन्हें देश और समाज मे अपने कार्यों से चमकने योग्य बनाते हैं।  


अपने सम्बोधन में संस्थान के अधिशासी निदेशक श्री निहित कुमार शेखर ने ए.आई. और तकनीकी के प्रयोग पर जोर देते हुए कहा कि नई तकनीक का अनुसरण हमारे विकास की संभावनाओं को बहुत बढ़ा सकता है। हमे अपनी परंपरा के साथ ही तकनीकी नवप्रवर्तनों से खुद को समृद्ध एवं जागरूक रखने का प्रयास करते रहना चाहिए।  


इस अवसर पर संस्थान के निदेशक प्रो. (डॉ.) जे पी श्रीवास्तव ने कहा कि एम जी इंस्टीट्यूट एवं शेखर ग्रुप ऑफ कॉलेजेस अपने सभी छात्र-छात्राओं के सर्वांगीण विकास के लिए सदैव प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि जिस उत्साह के साथ छात्र-छत्राओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं खेलकूद मे प्रतिभाग किया वैसा ही उत्साह उनकी शैक्षिक गतिविधियों में भी सदैव बना रहना चाहिए जो कि उनके बेहतर परीक्षा परिणाम हेतु लाभकारी होगा। 


संस्थान के चेयरमैन पूर्व प्रशासनिक अधिकारी श्री सी एल शेखर ने सभी आमंत्रित अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए अपने सम्बोधन में कहा कि17 वें स्थापना दिवस के पड़ाव तक पहुचना कोई आसान काम नहीं था। बल्कि यहाँ तक पहुचने के लिए संस्थान प्रबंधन, शिक्षकों व कर्मचारियों के अथक परिश्रम और समर्पण का भी योगदान रहा है।  हम सभी को अपने निजी जीवन में कुछ न कुछ पढ़ने की आदत बनानी चाहिए। अकादमिक पढ़ाई खत्म होने के बाद भी स्वाध्याय का नियमित क्रम हम सभी को देश-काल-परिस्थिति के अनुसार न केवल मनोबल प्रदान करता है बल्कि जीवन की कठिनाइयों से उबरने का संबल भी देता है। 


कार्यक्रम के अंत में मेधावी छात्र-छत्राओं का सम्मान करते हुए डीन स्टूडेंट्स वैलफ़ेयर श्री विवेक कुशवाहा, डीन एकेडमिक्स डॉ कुंदन कुमार, प्रधानाचार्य बी.एड डॉ. अंजली पुरवार, प्रधानाचार्य पॉलिटेक्निक श्री सौरभ गुप्ता, प्रधानाचार्य फार्मेसी डॉ अंकित शुक्ल ने सभी के उज्वल भविष्य की कामना की।


कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रमुख रूप से श्रीमती पारुल बाजपेयी, डॉ अकरम अंसारी, शशांक देव निगम, सुश्री पूजा सिंह, श्रीमती नेहा सिंह, विमलेश मिश्र, सच्चिदानंद, सुश्री प्रिया तिवारी, प्रवीण वर्मा, संतोष चौधरी, श्रीमती अनुराधा यादव, सुश्री नरगिस, भरत उपाध्याय, अभिषेक मौर्य, अमन यादव, श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव, सिद्धार्थ श्रीवास्तव, श्रीमती नीतू यादव,अजय प्रताप सिंह, आशुतोष सिंह, यदुवेन्द्र मौर्य आदि का सराहनीय योगदान रहा। 

                      

20 October 2025

आओ आज एक दीप जलाएं

कुछ ऐसा करें 
कि मुरझाए चेहरे मुस्कुराएं
आओ आज एक दीप जलाएं।

एक दीप
जो समरसता का हो 
सबकी साझी सभ्यता का हो।

जगमगाएं जिससे 
दसों दिशाएं
आओ आज एक दीप जलाएं।

एक दीप 
जो भरे उजास
हर गरीब की देहरी पर।

और जिसकी लौ से
अमृत बने
मिट्टी के कच्चे चूल्हे पर।

जिसकी तपिश
तमस मिटाकर 
सबके सारे भरम हटाए

आओ आज एक दीप जलाएं।

यशवन्त माथुर

11 September 2025

इस दौर में.......

रसातल में 
कहीं खोती जा रही हैं
हमारी भावनाएं,
शब्द और मौलिकता।
भूलते जा रहे हैं हम
आचरण,सादगी
और सहनशीलता।

कृत्रिम बुद्धिमतता 
के इस दौर में
हमारा मूल चरित्र
सिमट चुका है
उंगलियों की 
टंकण शक्ति की
परिधि के भीतर
जो अंतरजाल की 
विराटता के साथ 
सिर्फ बनाता है
संकुचित होती 
सोच का 
शोचनीय रेखाचित्र
क्योंकि वर्तमान 
तकनीकी सभ्यता वाला मानव
भूल चुका है
मानवता का 
समूल।

~यशवन्त माथुर©
11092025

15 August 2025

आजादी के गीत गाएं

नई उमंगें , नई तरंगें 
अपना तिरंगा, आओ लहराएं 
आजादी के गीत गाएं। 

आजादी जो मिली तप से 
और अनेकों कुर्बानियों से 
सारी सच्ची कहानियों को 
आओ मन से फिर दोहराएं। 

आजादी के गीत गाएं। 

गीत जिनमें रचा-बसा हो 
स्वर्णिम सा इतिहास हमारा 
विविधता में एकता और 
संस्कृति का चलचित्र दिखलाएं । 

आजादी के गीत गाएं। 

-यशवन्त माथुर© 
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20 July 2025

चलता रहा

कदम गिने बगैर राह पर चलता रहा।
बेहिसाब वक्त से सवाल करता रहा।

लोग कोशिश करते रहे बैसाखी बनने की।
सहारा जब भी लिया, मैं गिरता रहा।

माना कि बेहोश था, होश में आने के पहले।
ज़माना जीता रहा और मैं मरता रहा।

 ~यशवन्त माथुर©
20072025

22 June 2025

अवशेष

हाँ 
यह  सुनिश्चित है 
कि अंततः 
अगर कुछ बचा 
तो वह अवशेष ही होगा 
अधूरी 
या पूरी हो चुकी 
बातों का 
उनसे जुड़े 
दिनों का 
या रातों का। 
हाँ 
अनिश्चित जीवन के 
किसी एक कालखंड में 
सबको रह ही जाना है 
अपूर्ण 
बन ही जाना है 
अवशेष 
क्योंकि अवशेष ही 
होते हैं साक्ष्य 
एक रची-बसी सभ्यता 
और 
जीवन के अस्तित्व के।

-यशवन्त माथुर© 
21062025

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07 June 2025

चमकना इतना नहीं चाहता ....................

चमकना इतना नहीं चाहता 
कि चौंधिया जाओ तुम 
बस तमन्ना इतनी है 
कि धरती को छूता रहूँ।  

यूं तलवार की धार पर 
चलता तो रोज ही हूँ 
मगर बनकर  कोई पेड़ 
छाया किसी को देता रहूँ । 

कई चौराहे आ चुके 
कई आने बाकी हैं 
मंजिल को पा सकूँ 
या मंजिल ही बनता रहूँ। 

चमकना इतना नहीं चाहता 
कि चौंधिया जाओ तुम 
बस तमन्ना इतनी है कि 
अपने मूल  में बीतता रहूँ। 


-यशवन्त माथुर©

17 April 2025

कुछ लोग-59

कुछ लोग
मन में द्वेष
जुबान पर अपशब्द
और रूप में
मासूमियत लिए
कराते हैं एहसास
अपनी कड़वी 
तासीर का।
ऐसे लोगों की 
चाहत होती है
कि वो आगे हो सकते हैं
अपने वर्तमान से
लेकिन वास्तव में
सदियों पीछे की
रूढ़ियों को गठरी में बांधे 
ऐसे कुछ लोग
अक्षम होते हैं
खुद के तन 
और मन की
कदमताल कराने में भी।

-यशवन्त माथुर© 
17042025
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13 March 2025

रंग

यूं तो 
बहुत कुछ 
स्याह - सफेद 
लगा ही रहता है 
जीवन में 
बने रहते हैं 
कुछ दर्द 
हमेशा के लिए 
फिर भी 
आते-जाते 
चलते-फिरते 
हमारा वास्ता 
पड़ता ही है 
रंगों से।  
रंग 
कुछ होते हैं 
हमारी पसंद के 
और कुछ को 
हम 
देखना भी नहीं चाहते 
फिर भी रंग 
समेटे होते हैं 
अपने भीतर 
बहुत सा 
सुख-दुख
और कुछ पल 
जिनको जी कर 
हम बस यही चाहते हैं 
कि रंग बने रहें 
हमेशा के लिए। 

-यशवन्त माथुर© 
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