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23 January 2025

दोराहे

अक्सर
जिंदगी के 
किसी मोड़ पर 
चलते चलते
हम 
खुद को पाते हैं
एक ऐसे
दोराहे पर
जहां 
दिल और दिमाग में 
बसी 
हमारी थोड़ी सी
समझ
लड़खड़ाने लगती है
गश खाने लगती है
कभी
किसी डर से
कभी
किसी झिझक से
या कभी
समय के
गति परिवर्तन से।
अचानक 
सामने आ जाने वाले
ये दोराहे
जरूरी भी होते हैं
हमारे खुद के
परिवर्धन के लिए।

-यशवन्त माथुर©
23 जनवरी 2025


18 January 2025

फुटपाथ ....

कानों में गूँजती 
अनगिनत 
स्वर लहरियों के साथ 
कहीं रास्ते पर 
चलते कदम 
अक्सर
ठिठक कर रुक जाते हैं 
जब नज़रों के सामने 
फुटपाथ 
आ जाते हैं। 

हाँ 
सड़क किनारे के 
वही फुटपाथ
जो 
कुछ लोगों के रहने का 
ठौर बनकर 
जीवन का असली रंग 
दिखा जाते हैं।
 
इन फुटपाथों पर लगे 
ईंटों के तकिये 
कंक्रीट के बिस्तर 
और किसी 'और' की 
मैली-तिरस्कृत चादर
काफी होती है 
ढकने को 
किसी का आँचल 
या देने को 
ममत्व की छाँव  
जिसमें पल-बढ़ कर 
आकार लेती है 
एक नई पीढ़ी 
डामर की 
बंजर सड़कों पर चलते 
हम जैसे 
बेजान -बेदिल- 
बोझिल लोगों को 
लिखने के लिए 
नया विषय
और कुछ शब्द 
देती हुई।  
 
-यशवन्त माथुर© 
18 जनवरी 2025 

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17 January 2025

हम क्यूँ उलझ रहे ?

हम 
क्यूँ उलझ रहे 
आपसी द्वन्द्व में ?
अपनी 
महत्वाकांक्षाओं के कारण 
क्यूँ 
बिगाड़ रहे 
रूप-रेखा- 
और सोच 
एक पूरी पीढ़ी की? 
आखिर
भविष्य को  
क्या हासिल होगा 
अपने इस वर्तमान से 
सिवाय इसके 
कि 
टुकड़ों में बँटती 
इंसानियत की 
एक-एक झिर्री 
अगर फिर कभी 
जुड़ भी गई 
तो क्या 
उस पर लगे 
अनंत पैबंद 
छुप पाएंगे 
नकली 
मुखौटों के भीतर ? 

-यशवन्त माथुर©
 
17 जनवरी 2025 

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11 January 2025

अपना सही पता दे......



तू आसमां में है
लेकिन अपना
सही पता दे।

कौन जात है तेरी
धर्म क्या
भाषा और अपना
करम बता दे।

हर कोई 
अपनी तरह पूजता।
कोई सुंदर 
कोई कुरूप बूझता।

मावस की रात में
कहां चांदनी 
को लेकर तू जाता रे।

ऐसे तक मत
धरती को चांद!
अपना सही 
पता बता रे।

✓यशवन्त माथुर©
11 जनवरी 2025

10 January 2025

हम अंधे हैं .....

यूं आँखों पर 
चश्मा लगाए 
हममें से 
अधिकतर लोग 
सच 
सामने होते हुए भी 
जब 
नहीं कर पाते 
सामना
जब नहीं रहती 
हममें हिम्मत 
उसे स्वीकार करने की
तब 
सब कुछ 
दिखते हुए भी  
ऐसा लगता है 
कि हम 
अंधे हैं।  

-यशवन्त माथुर© 
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09 January 2025

पता नहीं.....

भले ही वक़्त 
साथ दे 
या 
न दे 
अपनी महत्त्वाकांक्षा 
अपना अहम् 
अपने साथ लेकर 
हमें जाना ही है
इस पार से 
उस पार 
लेकिन 
कब -किस तरह 
न मालूम 
रास्ता 
न यह पता कि 
क्या होगा 
परिणाम 
बस अपने अनंत की 
चिर प्रतीक्षा का अंत 
कब होगा.... 
पता नहीं।  

-यशवन्त माथुर© 
09 01 2025
 
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08 January 2025

सुनो ......5

सुनो! मुझे पता है ..........कि जनवरी के घने कोहरे वाले इन दिनों में ................मेरे पास सिर्फ मेरे ख्याल हैं ............जो छटपटाते हुए कर रहे हैं इंतजार ...............संक्रान्त से पहले अपनी खोह से बाहर निकलने का। 
पता है क्यों? ..............क्योंकि मैंने सुना है ...और देखा भी है.... कि या तो इस दिन धूप निकलती है....... या शीत लहर और कुपित होती है......... तो अगर इससे पहले .....मेरे साथी-मेरे ख्याल....... अगर आ गए बाहर .......तो खाली  हो जाएगी एक जगह ......नए ख्यालों के पनपने की। 
और सुनो! मुझे अब तक तलाश है....... कुछ नए ख्यालों की..... जिनका एक जरिया तुम भी हो सकते हो। 



-यशवन्त माथुर©
 
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07 January 2025

40 पार के पुरुष-4

अपनी सफलता-
असफलता 
उसके कारणों 
और उनसे उपजी 
क्रिया-प्रतिक्रिया का 
प्रतिफल 
इसी जन्म में भोगते 
40 पार के 
कुछ पुरुष 
अक्सर 
इसलिए हार जाते हैं 
क्योंकि उन्होंने 
जीता होता है 
दुनिया को 
अपने संस्कारी -
संकोची 
स्वभाव से 
जो अगर न होता 
उनके भीतर 
तो शायद 
उनकी उच्छृंखलता 
इसी जनम में 
बन जाती 
उनका काल। 

-यशवन्त माथुर©
 
07 01 2025 
 
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06 January 2025

मुझे पता है.......

मुझे पता है 
कि यहाँ 
अपने आस-पास 
यह कोलाहल 
बस तभी तक है 
जब तक 
जिस्म को 
चला रही साँसों को 
मिल नहीं जाता 
कोई और 
किसी और 
नए 
कोलाहल के लिए। 

-यशवन्त माथुर© 
06 जनवरी 2025 
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