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पूर्णत: मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित है।
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yashwant009@gmail.com
द्वारा पूर्वानुमति/सहमति अवश्य प्राप्त कर लें।
20 July 2025
चलता रहा
कदम गिने बगैर राह पर चलता रहा।
बेहिसाब वक्त से सवाल करता रहा।
लोग कोशिश करते रहे बैसाखी बनने की।
सहारा जब भी लिया, मैं गिरता रहा।
माना कि बेहोश था, होश में आने के पहले।
ज़माना जीता रहा और मैं मरता रहा।
~यशवन्त माथुर©
20072025
22 June 2025
अवशेष
हाँ
यह सुनिश्चित है
कि अंततः
अगर कुछ बचा
तो वह अवशेष ही होगा
अधूरी
या पूरी हो चुकी
बातों का
उनसे जुड़े
दिनों का
या रातों का।
हाँ
अनिश्चित जीवन के
किसी एक कालखंड में
सबको रह ही जाना है
अपूर्ण
बन ही जाना है
अवशेष
क्योंकि अवशेष ही
होते हैं साक्ष्य
एक रची-बसी सभ्यता
और
जीवन के अस्तित्व के।
-यशवन्त माथुर©
21062025
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07 June 2025
चमकना इतना नहीं चाहता ....................
चमकना इतना नहीं चाहता
कि चौंधिया जाओ तुम
बस तमन्ना इतनी है
कि धरती को छूता रहूँ।
यूं तलवार की धार पर
चलता तो रोज ही हूँ
मगर बनकर कोई पेड़
छाया किसी को देता रहूँ ।
कई चौराहे आ चुके
कई आने बाकी हैं
मंजिल को पा सकूँ
या मंजिल ही बनता रहूँ।
चमकना इतना नहीं चाहता
कि चौंधिया जाओ तुम
बस तमन्ना इतनी है कि
अपने मूल में बीतता रहूँ।
-यशवन्त माथुर©
17 April 2025
कुछ लोग-59
कुछ लोग
मन में द्वेष
जुबान पर अपशब्द
और रूप में
मासूमियत लिए
कराते हैं एहसास
अपनी कड़वी
तासीर का।
ऐसे लोगों की
चाहत होती है
कि वो आगे हो सकते हैं
अपने वर्तमान से
लेकिन वास्तव में
सदियों पीछे की
रूढ़ियों को गठरी में बांधे
ऐसे कुछ लोग
अक्षम होते हैं
खुद के तन
और मन की
कदमताल कराने में भी।
-यशवन्त माथुर©
17042025
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13 March 2025
रंग
यूं तो
बहुत कुछ
स्याह - सफेद
लगा ही रहता है
जीवन में
बने रहते हैं
कुछ दर्द
हमेशा के लिए
फिर भी
आते-जाते
चलते-फिरते
हमारा वास्ता
पड़ता ही है
रंगों से।
रंग
कुछ होते हैं
हमारी पसंद के
और कुछ को
हम
देखना भी नहीं चाहते
फिर भी रंग
समेटे होते हैं
अपने भीतर
बहुत सा
सुख-दुख
और कुछ पल
जिनको जी कर
हम बस यही चाहते हैं
कि रंग बने रहें
हमेशा के लिए।
-यशवन्त माथुर©
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02 February 2025
बस इतना वर मिले .....
जो घूम रहा
लावारिस बचपन
बना रहे
उनका लड़कपन
बस इतना वर मिले
हर मुरझाया चेहरा खिले।
हो विस्तार
सिमटी समृद्धि का
न किसी को
भेद भाव मिले
बस इतना वर मिले
सबको अमन-चैन मिले।
जैसे बिछी है चादर
खिली सरसों की
जैसे हर क्यारी में
गेंदा फूल
ऐसे ही हर जन-मन के
चेहरे को मुस्कान मिले।
बस इतना वर मिले।
(वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ)
-यशवन्त माथुर©
02 फरवरी 2025
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23 January 2025
दोराहे
अक्सर
जिंदगी के
किसी मोड़ पर
चलते चलते
हम
खुद को पाते हैं
एक ऐसे
दोराहे पर
जहां
दिल और दिमाग में
बसी
हमारी थोड़ी सी
समझ
लड़खड़ाने लगती है
गश खाने लगती है
कभी
किसी डर से
कभी
किसी झिझक से
या कभी
समय के
गति परिवर्तन से।
अचानक
सामने आ जाने वाले
ये दोराहे
जरूरी भी होते हैं
हमारे खुद के
परिवर्धन के लिए।
-यशवन्त माथुर©
23 जनवरी 2025
18 January 2025
फुटपाथ ....
कानों में गूँजती
अनगिनत
स्वर लहरियों के साथ
कहीं रास्ते पर
चलते कदम
अक्सर
ठिठक कर रुक जाते हैं
जब नज़रों के सामने
फुटपाथ
आ जाते हैं।
हाँ
सड़क किनारे के
वही फुटपाथ
जो
कुछ लोगों के रहने का
ठौर बनकर
जीवन का असली रंग
दिखा जाते हैं।
इन फुटपाथों पर लगे
ईंटों के तकिये
कंक्रीट के बिस्तर
और किसी 'और' की
मैली-तिरस्कृत चादर
काफी होती है
ढकने को
किसी का आँचल
या देने को
ममत्व की छाँव
जिसमें पल-बढ़ कर
आकार लेती है
एक नई पीढ़ी
डामर की
बंजर सड़कों पर चलते
हम जैसे
बेजान -बेदिल-
बोझिल लोगों को
लिखने के लिए
नया विषय
और कुछ शब्द
देती हुई।
-यशवन्त माथुर©
18 जनवरी 2025
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17 January 2025
हम क्यूँ उलझ रहे ?
हम
क्यूँ उलझ रहे
आपसी द्वन्द्व में ?
अपनी
महत्वाकांक्षाओं के कारण
क्यूँ
बिगाड़ रहे
रूप-रेखा-
और सोच
एक पूरी पीढ़ी की?
आखिर
भविष्य को
क्या हासिल होगा
अपने इस वर्तमान से
सिवाय इसके
कि
टुकड़ों में बँटती
इंसानियत की
एक-एक झिर्री
अगर फिर कभी
जुड़ भी गई
तो क्या
उस पर लगे
अनंत पैबंद
छुप पाएंगे
नकली
मुखौटों के भीतर ?
-यशवन्त माथुर©
17 जनवरी 2025
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