आज फिर मन मचल रहा है,
मदिरालय में जाने को.
दो घूँट पी कर साकी के,
गैरों संग झूम जाने को.
रिश्ते नाते दुनियादारी,
चाहता हूँ भूल जाने को.
जिनसे कुछ न लिया दिया,
आते वही गले लगाने को.
तन्हाई में विष का प्याला,
तड़पता अमृत कहलाने को.
अधर कहते कदम ताल कर,
मधुशाला में जाने को.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (30-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
बहुत खूब .. मन है की मानता नहीं ...
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना है...
ReplyDeleteबहुत खूब....
:-)
बढ़िया प्रस्तुति ,राह पकड़ तू एक चलाचल पा जाएगा मधुशाला ...
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