आज क्यों ऐसा सवाल
तुमने मुझ से पूछ लिया
मेरे तुच्छ जीवन का हाल
क्या सोच कर के पूछ लिया॥
क्या कहूँ तुम से
मैं सच को छुपाना चाहता नहीं
कह कर के अपना नीरस हाल
तुम्हारी शरण चाहता नहीं॥
मेरा जीवन!मेरा जीवन मेरा जीवन है
भूल चूका भूत,है भविष्य अनिश्चित
है बस केवल यही वर्तमान
किस बात का कैसा प्रायश्चित॥
तन्हाई संग सहवास
और नीरस निशा का आलिंगन
पूर्णिमा की अंतहीन आस
करती मावस अभिनन्दन॥
स्वप्नहीन सा मेरा जीवन
और क्या मैं तुम से कह दूं
जुगनू भी स्वप्नद्रष्टा सा लगता
तो खुद को मानव कैसे कह दूं॥
मत पूछना मेरा जीवन
क्योंकि जीवन रहा नहीं अब
समझ लेना कोई अतृप्त आत्मा
मेरा शरीर रहा नहीं अब॥
(जो मेरे मन ने कहा)