31 August 2010

मत पूछो मेरा हाल.............

आज क्यों ऐसा सवाल

तुमने मुझ से पूछ लिया

मेरे तुच्छ जीवन का हाल

क्या सोच कर के पूछ लिया॥

क्या कहूँ तुम से

मैं सच को छुपाना चाहता नहीं

कह कर के अपना नीरस हाल

तुम्हारी शरण चाहता नहीं॥

मेरा जीवन!मेरा जीवन मेरा जीवन है

भूल चूका भूत,है भविष्य अनिश्चित

है बस केवल यही वर्तमान

किस बात का कैसा प्रायश्चित॥

तन्हाई संग सहवास

और नीरस निशा का आलिंगन

पूर्णिमा की अंतहीन आस

करती मावस अभिनन्दन॥

स्वप्नहीन सा मेरा जीवन

और क्या मैं तुम से कह दूं

जुगनू भी स्वप्नद्रष्टा सा लगता

तो खुद को मानव कैसे कह दूं॥

मत पूछना मेरा जीवन

क्योंकि जीवन रहा नहीं अब

समझ लेना कोई अतृप्त आत्मा

मेरा शरीर रहा नहीं अब॥

(जो मेरे मन ने कहा)

28 August 2010

तुम चाहो तो.....

तुम हो भाग्य विधाता राष्ट्र के,
तुम को जागना होगा
सोई हुई मानवता को अब
पुनः जगाना होगा॥

कंटकों के मध्य तुम को
गुल सा खिल जाना है
तुम हो सुमन राष्ट्र उपवन के
जग को तुम्हे महकाना है॥

तुम हो भाग्य विधाता राष्ट्र के
आलोकित जग को कर दो
तुम बन नायक जन जन के
नव उल्लास ह्रदय में भर दो॥

तुम चाहो तो सुकवि बन
नव रस नव रंग वर्षा सकते हो
तुम चाहो तो निराशा को
नव आशा दिखला सकते हो॥

तुम चाहो तो सागर को भी
हिम सा कठोर बना सकते हो
तुम चाहो तो पतझड़ में भी
नभ को महका सकते हो॥

उठो शांति के नव दूत युवाओं
जाग्रत हो!वीर व्रत धरो
कर न्योछावर सर्वस्व राष्ट्र को
आगे बढ़ो !विजय श्री वरो !!

26 August 2010

Its my thought......

We
salutes to the rising sun
we like
to see the sunset
but we
never pay attention
when
its satnding
on top of us;
a time in a day
it niether rise
nor set

Sun wish to watch us
wht we are doing
in its light
Right or wrong

Sun knows what we are doing
but never say to us
anything

why?

because
we are participating
in the examination of life.

I am alone.......

I know
I am alone
with my thoughts
& feelings
I wish to talk
talk a lot ,to all
I suppose
u never like to listen me
nor like to read me
I am not hessitate for this
because
i am one of them
who likes to go
on their own way
its my choice to talk
and i will talk
till my end.

23 August 2010

जिदंगी इन्टरनेट हो गयी

पल भर में बीयर भी वाइन हो गयी
जैसे  आज कल महंगाई डायन हो गयी
दूल्हा दुल्हन की शादी भी ऑनलाइन हो गयी।

अब क्या करेगा मजनू,बस कुछ चैट-वैट हो गयी
पल भर में एक लड़की भी सैट हो गयी
जिंदगी इंटरनैट हो गयी॥

यू ट्यूब पर डाला वीडियो,दुनिया देख रही तमाशा
दर्शन हो गए मंदिर में,पंडित जी बाँट रहे बताशा

खुल्लम खुल्ला सारी दुनिया,
मुट्ठी में कैद हो गयी।

जिंदगी इंटरनैट हो गयी॥

और क्या बता दूँ तुम को
अगर हो कहीं पर जाना

लम्बी-लम्बी लाइन में,
न अब टिकट को बुक करवाना
अब तो पल भर में
ऑनलाइन पेमैंट हो गयी।

जिंदगी इंटरनैट हो गयी॥

17 August 2010

बदलता ज़माना

(संभवतः इंटर की पढ़ाई के दौरान वर्ष  2002 के आस पास लिखी गयी रचना)

फ़िल्मी डांस डिस्को क्लबों में नाच गाना है,
शराब और कवाब का रिश्ता पुराना है
इसी रिश्ते को और मज़बूत बनाना है
भारतीय नहीं हमें तो इंडियन कहलाना है॥

रोटी साग सब्जी दाल चावल नहीं भाता हमें
पूरी और परांठे का गुज़रा ज़माना है
चाउमीन चिकन डोसा इडली और पेटीज बर्गर
यही नए ज़माने का हाईटेक खाना है॥

शास्त्रीय राग छोड़ रॉक पॉप गाइए
कान फोडू संगीत पर ठुमका लगाना है
आशा,रफ़ी,लता,मुकेश,किशोर भूल जाइये
सुरैय्या के सुरों का न पता न ठिकाना है॥

नमस्कार,आदाब,सतश्री अकाल अब कहना नहीं
हेल्लो,हाय गुड बाय कहता ज़माना है
सीता राम,राधा कृष्ण ,प्रभु नाम लेना नहीं
घर-घर में अमिताभ-सचिन का पोस्टर सजाना है॥

दुखी हैं दूसरे के सुख से ,अपने सुख से सुखी न कोई
दौलत के अंधों ने सच्चाई को नहीं जाना है
करेंगे करम खोटे ,रोना पछताना फिर
यशवन्त यश कहता फिरे ज़ालिम ज़माना है॥

यशवन्त यश ©

15 August 2010

बस आज के लिए .............

बस आज
सिर्फ आज
मनाऊंगा

मैं
आजादी
का
ज़श्न
और
कल फिर से
भूल जाऊंगा
अपने प्यारे देश को।
गलती उनकी थी
जिन्होंने
कुर्बान कर दिया
खुद को
जवानी की
रंगरेलियां भूल कर
उन की
आत्माएं
रोएँ तो
रोएँ
पर मैं
सिर्फ
'मैं' ही हूँ
शोषक
भ्रष्ट
और
न जाने
क्या-क्या
बस
पैसा
पैसा
और
सिर्फ
ैसा;
पैसा
ही
मेरा
ईमान
और
देश भक्ति है। 
मुझे
मत सिखाओ
क्या
सही है
और
क्या गलत
सिर्फ आज
आज-एक दिन
के लिए
नया सफ़ेद
कुरता-पायजामा
पहने
मैं 
गीत गाउंगा
देश के
और
कल आजादी से
आ जाऊंगा
अपने असली रूप में
एक साल
के लिए।







09 August 2010

अमीर-गरीब

वो सामने की सड़क
जिस पर खड़े हुए हैं महल-अटारी
जगमग जहाँ दिन रात हुए हैं
आलिशान हैं मोटर गाड़ी

वो महलों में रहने वाले
जो उड़न खटोलों में चलते हैं
जिनकी अपनी शान निराली
जो गर्दन सीधी कर चलते हैं

वो उन महलों की नारियां
खुला तन जिनका स्वाभिमान
और वो उन के रईसज़ादे
विलासितामय जिनका बचपन

मैं अक्सर देखता हूँ उनको
और फिर कहता हूँ खुदको
काश! उनके जैसा मैं भी होता
तो फिर गरीबी में न रहता

पर सड़क के उस पार
जहाँ वो टूटी फूटी झोपड़ पट्टी
जिसमें रात भर अँधेरा रहता
न दिया जलता न कोई बत्ती

उन झोपड़ियों में रहने वालों को
जो महनत मजदूरी करते हैं
साधारण सा उन का जीवन
जो इतने में ही खुश रहते हैं

वो झोपड़ियों की नारियां
छिपाती जो हैं अपना तन
जिनके खेलते नंगे बच्चे
साधारण सा जिनका बचपन

मैं अक्सर देखता हूँ उनको
और फिर से खुद को कहता हूँ
हाँ!! हाँ! मैं हूँ भारत का आम आदमी
मैं आजादी से रहता हूँ.

एक बेरोजगार की व्यथा

बाईस साल का हो गया हूँ
सैकड़ों दफ्तरों के चक्कर लगाते-लगाते
थक गया हूँ
मोटे तले का मेरा जूता
एक महीने में घिस घिस कर
बूढा हो गया
सड़क को भी प्यारा हो गया
अब नया जूता पहन कर
फिर चक्कर लगा रहा हूँ
बाईस साल का हो गया हूँ

क्या करूँ
इस उम्र में
किस्मत वाले I A S
बन जाते हैं
शान दिखाते हैं
और मैं
बाईस साल का हो गया हूँ

माँ बाप पर बोझा बन गया हूँ
वो कहते हैं
बेटा,सिफारिश के बगैर
नौकरी नहीं मिलती
तेरी नहीं है
तू तो बस रोता रहेगा

में सोचता हूँ
शायद ठीक कहते हैं
जब सिफारिश के बगैर
गर्लफ्रैंड नहीं मिल सकती
तो नौकरी कैसे मिल सकती है

अब सिफारिश की सोच में डूब गया हूँ
बाईस साल का हो गया हूँ.

05 August 2010

अब तो दुआ भी होगी

सलाम भी होगा

जो अब तक न हुआ

वो अब काम होगा

सरे आम होगा हमारी

इज्ज़त का इम्तिहान

वो पढेंगे कसीदे

हमारी शान में

और जो

होंगे आहत

उनके हर एक पत्थर

पर हमारा नाम होगा

है नहीं

परवाह की अब क्या होगा

क्या नहीं

खा के कसम अब तो

चल दिए हैं

न मालूम

की जन्नत नसीब होगी

या के

दोज़ख के

दरवाज़े पे

हमारा पैगाम होगा.