17 August 2010

बदलता ज़माना

(संभवतः इंटर की पढ़ाई के दौरान वर्ष  2002 के आस पास लिखी गयी रचना)

फ़िल्मी डांस डिस्को क्लबों में नाच गाना है,
शराब और कवाब का रिश्ता पुराना है
इसी रिश्ते को और मज़बूत बनाना है
भारतीय नहीं हमें तो इंडियन कहलाना है॥

रोटी साग सब्जी दाल चावल नहीं भाता हमें
पूरी और परांठे का गुज़रा ज़माना है
चाउमीन चिकन डोसा इडली और पेटीज बर्गर
यही नए ज़माने का हाईटेक खाना है॥

शास्त्रीय राग छोड़ रॉक पॉप गाइए
कान फोडू संगीत पर ठुमका लगाना है
आशा,रफ़ी,लता,मुकेश,किशोर भूल जाइये
सुरैय्या के सुरों का न पता न ठिकाना है॥

नमस्कार,आदाब,सतश्री अकाल अब कहना नहीं
हेल्लो,हाय गुड बाय कहता ज़माना है
सीता राम,राधा कृष्ण ,प्रभु नाम लेना नहीं
घर-घर में अमिताभ-सचिन का पोस्टर सजाना है॥

दुखी हैं दूसरे के सुख से ,अपने सुख से सुखी न कोई
दौलत के अंधों ने सच्चाई को नहीं जाना है
करेंगे करम खोटे ,रोना पछताना फिर
यशवन्त यश कहता फिरे ज़ालिम ज़माना है॥

यशवन्त यश ©

1 comment:

  1. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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