तुम हो भाग्य विधाता राष्ट्र के,
तुम को जागना होगा
सोई हुई मानवता को अब
पुनः जगाना होगा॥
कंटकों के मध्य तुम को
गुल सा खिल जाना है
तुम हो सुमन राष्ट्र उपवन के
जग को तुम्हे महकाना है॥
तुम हो भाग्य विधाता राष्ट्र के
आलोकित जग को कर दो
तुम बन नायक जन जन के
नव उल्लास ह्रदय में भर दो॥
तुम चाहो तो सुकवि बन
नव रस नव रंग वर्षा सकते हो
तुम चाहो तो निराशा को
नव आशा दिखला सकते हो॥
तुम चाहो तो सागर को भी
हिम सा कठोर बना सकते हो
तुम चाहो तो पतझड़ में भी
नभ को महका सकते हो॥
उठो शांति के नव दूत युवाओं
जाग्रत हो!वीर व्रत धरो
कर न्योछावर सर्वस्व राष्ट्र को
आगे बढ़ो !विजय श्री वरो !!
बहुत खूब...............
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 22 -09 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में ...हर किसी के लिए ही दुआ मैं करूँ
सार्थक आह्वान
ReplyDeleteसार्थक व सटीक लेखन ।
ReplyDeleteप्रेरणादायक आह्वान..!! मधुर संगीत..!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आह्वान्।
ReplyDeleteprotsahit kar dene wali rachna.
ReplyDeleteपावन भाव, प्रेरक कल्याणकारी आह्वान...
ReplyDelete