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03 September 2010

स्वार्थ

गोस्वामी तुलसी दास ने लिखा है-

''हरो चरहिं, तापहिं ,वरत, फरे पसारहिं हाथ।
तुलसी स्वारथ मीत सब,परमारथ रघुनाथ॥''

भावार्थ यह कि जब कोई पेड़ हरा-भरा होता है तो मनुष्य उसका उपभोग(चरहिं) करता है। जब उस पर फल लगते हैं तब उन्हें पाने के लिए अपने हाथ पसार लेता है। और जब वो पेड़ सूख जाता है तब भी उसका उपयोग चूल्हा जलाने या शीतकाल में हाथ तापने के लिए करता है। मनुष्य का जीवन स्वार्थ से परिपूर्ण है; परमार्थ यानी दूसरों के सुख या भलाई का काम तो केवल ईश्वर के हाथों में है।
 
यहाँ विद्वान् रचनाकार ने स्वार्थ के नकारात्मक पक्ष को उभारा है। जबकि हम जानते हैं कि प्रत्येक चीज़ के दो पहलू होते हैं एक अच्छा और एक बुरा यानी एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक।
        
हमारी यह आदत है कि हम हर चीज़ के नकारात्मक पक्ष को ज्यादा महत्त्व देते हैं,हम नहीं देखते कि उस चीज़ के सकारात्मक पहलू क्या हैं। मेरे अपने विचार से यदि स्वार्थ न होता तो शायद ही मानव का इतना विकास हो पाया होता जितना हम आज देख रहे हैं।एक छोटी सी सुई से लेकर अंतरिक्ष यानों तक का निर्माण,अन्तरिक्ष में मानव का कदम और अब चाँद के बाद मंगल पर जाने की तैयारी। ये सब क्या है? क्या ये सब हमारी स्वार्थी महत्वाकांक्षा के बिना हो सकता था? वो महत्वाकांक्षा जो हमें विकास की राह पर आगे बढ़ने को प्रेरित करती है।
     
आदि काल में नग्न रहने वाला मानव आज इतना विकसित है तो केवल अपने स्वार्थ की वजह से। मैनेजमेंट की पढ़ाई में ,खेल कूद में, बिगड़ैल बच्चे को सुधारने की  प्रक्रिया में या अपने दिन-प्रतिदिन के कार्य कलापों में हम जिस अभिप्रेरणा यानि (Motivation) की बात करते हैं उसका मूल ही हमारा अन्तर्निहित स्वार्थ है।
 
सोचिये अगर आपका स्वार्थ पैसे कमाना न हो,उन पैसों से घर चलाना न हो,या उन पैसों को अपने प्रिय सखा या सखी पर खर्च करना न हो तो क्या आप नौकरी या मजदूरी करेंगे?फुटपाथ पर सोने वालों का,कूड़ा बटोरने वाले नन्हे बच्चों का भी अपना स्वार्थ है।स्वार्थ की कोई शक्ल नहीं है, यह सर्व व्यापक है। सौरमंडल में भी अगर कोई ग्रह  किसी ग्रह से टकराता है तो उसमें भी स्वार्थ है-विध्वंस और पुननिर्माण का।
 
हम निस्वार्थ भाव की बात करते हैं;एक बार सच्चे मन से निस्वार्थ भाव रख कर तो देखिये हम फिर से आदिम युग में लौट जाएँगे।

-यशवन्त माथुर©

7 comments:

  1. अगर कोई किसी से मिलता भी है तो कहीं न कही मन में होता है अपना भी समय गुजर जाएगा या अगर हम किसी के बारे में चिंता करते हैं तो उसका ख्याल तो होता ही है साथ ही हम अपनी चिंता खत्म करना चाहते हैं। दान देने में भी पुण्य कमाने का स्वार्थ है। हर जगह स्वार्थ हैं कहां तक बचा जाएगा...

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  2. हार तरफ स्वार्थ ही स्वार्थ है|

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  3. ब्लाग जगत की दुनिया में आपका स्वागत है। आप बहुत ही अच्छा लिख रहे है। इसी तरह लिखते रहिए और अपने ब्लॉग को आसमान की उचाईयों तक पहुंचाईये मेरी यही शुभकामनाएं है आपके साथ
    ‘‘ आदत यही बनानी है ज्यादा से ज्यादा(ब्लागों) लोगों तक ट्प्पिणीया अपनी पहुचानी है।’’
    हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

    मालीगांव
    साया
    लक्ष्य

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    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  6. ye bahut positive likha hai...padh kar meri thodi bechaini kam ho gayi.....sahi hai swarth kay bina possiblities kam hain

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  7. सिक्के के एक पहलू ये सार्थक सर्वमान्य भी है लेकिन दूसरा पहलू यह कि वैसा स्वार्थ जिससे दूसरे का हक़ आप मारते हों वो तो गलत होगा ना
    हार्दिक शुभकामनायें

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