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06 September 2010

उस 'अनजान' के नाम....(जिसे शायद मैं कभी जानता था)

तेरी आँखों के ये आँसूं,मेरे दिल को भिगोते हैं,
तुझे याद कर-कर हम भी,रात-रात भर रोते हैं,
बिन तेरे चैन कहाँ,बिन तेरे रैन कहाँ,
जाएँ तो जाएँ कहाँ,हर जगह तेरा निशाँ,
तेरे लब जब थिरकते हैं,बहुत हम भी मचलते हैं,
चाहते हैं कुछ कहना,मगर कहने से डरते हैं॥



कितने हैं शायर यहाँ,कितने हैं गायक यहाँ,
मेरा है वजूद वहां,जाए तू जाए जहाँ,
कैसी ये प्रीत मेरी,कैसी ये रीत तेरी,
अर्ज़ है क़ुबूल कर ले,आज मोहब्बत मेरी,
तेरे अनमोल ये मोती,जाने क्यों क्यूँ यूँ बिखरते हैं,
अधरों से पीले इनको ,वफ़ा के गीत कहते हैं॥









(जो मेरे मन ने कहा...)

1 comment:

  1. भावपूर्ण रचना के लिये बधाई !

    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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