मैं नहीं सुनहरी प्रातः
ऊषा पूर्व की बेला हूँ
क्षण भंगुर जिसका आस्तित्व
मैं अकेला हूँ!
मैं निर्जन वन के शांत स्वरों में
चातक की विरहा पुकार नहीं
विद्वेषी ज्वाला का गोला
मैं अकेला हूँ!
कर्म का मर्म मैं क्या जानूं
मैंने तो बस ये जाना है
शांत नीर पर तरंग का रेला
मैं अकेला हूँ!
बासंती बयार नहीं
मैं पतझड़ का समय चक्र हूँ
जिसका नव प्रवर्तन निश्चित
मैं अकेला हूँ!
मैं नहीं तेजोमय
तम की अंधियारी बेला हूँ
आशा की किरण निहारता
मैं अकेला हूँ!
(जो मेरे मन ने कहा....)
टिप्पणी -प्रस्तुत
पंक्तियाँ१३/१२/२००४ को लिखी गयी थी.
ऊषा पूर्व की बेला हूँ
क्षण भंगुर जिसका आस्तित्व
मैं अकेला हूँ!
मैं निर्जन वन के शांत स्वरों में
चातक की विरहा पुकार नहीं
विद्वेषी ज्वाला का गोला
मैं अकेला हूँ!
कर्म का मर्म मैं क्या जानूं
मैंने तो बस ये जाना है
शांत नीर पर तरंग का रेला
मैं अकेला हूँ!
बासंती बयार नहीं
मैं पतझड़ का समय चक्र हूँ
जिसका नव प्रवर्तन निश्चित
मैं अकेला हूँ!
मैं नहीं तेजोमय
तम की अंधियारी बेला हूँ
आशा की किरण निहारता
मैं अकेला हूँ!
(जो मेरे मन ने कहा....)
टिप्पणी -प्रस्तुत
पंक्तियाँ१३/१२/२००४ को लिखी गयी थी.
सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार.
ReplyDeleteमैं नहीं तेजोमय
ReplyDeleteतम की अंधियारी बेला हूँ
आशा की किरण निहारता
मैं अकेला हूँ!
गजब कि पंक्तियाँ हैं ...
बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
भास्कर जी,
ReplyDeleteआप के उत्साहवर्धन के लिए तहे दिल से शुक्रिया...
बहुत सुन्दर भावमय कविता है। आभार।
ReplyDeleteआदरणीया निर्मला जी, शुक्रिया!आशा करता हूँ, आप अपना आशीर्वाद यूँ ही बनाये रखेंगी.
ReplyDeleteअकेले का विविध भावपूर्ण निरूपण बहुत अच्छा लगा ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति......
मैं नहीं तेजोमय
ReplyDeleteतम की अंधियारी बेला हूं
आशा की किरण निहारता
मैं अकेला हूं
बहुत ही खूबसूरती से मन के भावों को शब्दों में ढाला है...
खूबसूरत!
ReplyDeleteआदरणीया कविता जी,वीना जी और शाहनवाज़ जी,आप की उत्साहवर्धक टिप्पणियों के लिए बहुत बहुत शुक्रिया और आप सबको ईद और गणेश चतुर्थी की शुभ कामनाएं.
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