ये लेखनी है
जो चलती रहेगी
तूफानों में औ
आँधियों में
दिल की वीरानियों में
गहरी तनहाइयों में.....
है यही मेरी मित्र
तो क्यों मैं
अकेला
जिंदगी के सफ़र में
सफ़ेद पृष्ठ मेरा..
मैं राही हूँ
चलता जा रहा हूँ
घुप्प अँधेरे में-
तलाशने को सवेरा
मैं कहने देता हूँ
लोगों को लोगों की बातें
दिल को कचोटने वाली
दर्द देने वाली बातें
पर 'मैं'
'मैं' हूँ
ये 'मैं' जानता हूँ
करता वही हूँ
जो 'मैं'
ठानता हूँ
मैं रोशनी हूँ
उन चिरागों के तले
खुशफहमी में खुद को
चिराग समझते हैं जो
मेरी ठोकरों से दुनिया
अक्सर हिलती रहेगी
लेखनी वो लौ है
जो हमेशा जलती रहेगी.
अच्छी पंक्तिया लिखी है आपने ....
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया प्रस्तुति ! आभार !
मुस्कुराना चाहते है तो यहाँ आये :-
(क्या आपने भी कभी ऐसा प्रेमपत्र लिखा है ..)
(क्या आप के कंप्यूटर में भी ये खराबी है .... )
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com
आदरणीय गजेन्द्र जी,
ReplyDeleteइन पंक्तियों के प्रकाशित होने के चंद सेकेंड्स के भीतर आपकी त्वरित टिप्पणी के बहुत बहुत शुक्रिया.
.
ReplyDeleteयशवंत माथुर जी,
बहुत सुन्दर रचना । भावनाओं को बखूबी उतरा है शब्दों में आपने। आपकी लेखनी को नमन ।
शुभकामनाओं सहित,
दिव्या
.
मेरी ठोकरों से दुनिया
ReplyDeleteअक्सर हिलती रहेगी
लेखनी वो लौ है
जो हमेशा जलती रहेगी
बहुत अच्छा लिखा है आपने..वाकई कलम में ताकत भी है और सबसे अच्छी मित्र भी...
लेखनी वह लौ है जो जलती रहेगी हमेशा ...
ReplyDeleteजलती रहनी चाहिए ...
जलती रहे ...
शुभकामनायें ..!
आदरणीया दिव्या जी,
ReplyDeleteएक कहावत है-कडवा बोले मायली,मीठा बोले जग.
आपका और 'क्रन्तिस्वर' पर मेरे पापा का उद्देश्य भी समाज सुधार है.पर खरा और स्पष्ट सच हमारा समाज सुनना पसंद नहीं करता तो लिख कर ही सही अपनी बात कहनी ज़रूर है.
ये कविता आप के ब्लॉग पर आप की प्रति टिप्पणियों को पढ़ते समय कब बन गयी और मेरे कंप्यूटर की स्क्रीन पर कब आ गयी पता ही नहीं चला.
आपका बहुत बहुत धन्यवाद मेरे ब्लॉग पर आने के लिए.
आदरणीया वीना जी
ReplyDeleteआप हमेशा मेरा उत्साह बढाती हैं,धन्यवाद.'वीणा के सुर' पर आप की नयी रचना का इंतज़ार है.
आदरणीया वाणी जी,
ReplyDeleteआप की उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.
लेखनी पर बहुत बढ़िया रचना ... बधाई
ReplyDeleteपर "मैं" मैं हूँ
ReplyDeleteये मैं जानता हूँ !
करता वही
जो मैं ठानता हूँ !
बहुत खूब, मेरे मन की बात कही आपने ! ये "मैं" सरीफ भी है और खतरनाक भी !
आदरणीय मिश्र जी एवं गोंदियाल जी,
ReplyDeleteआप की टिप्पणियों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
मेरी ठोकरों से दुनिया हमेशा हिलती रहेगी
ReplyDeleteलेखनी वो लौ है जो हमेशा जलती रहेगी
बहुत बढ़िया रचना
महक
बढ़िया रचना, बधाई.
ReplyDeleteहिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!
महक जी,उड़न तश्तरी जी,
ReplyDeleteआप का बहुत बहुत धन्यवाद मेरे ब्लॉग पर आने के लिए.
हिंदी दिवस की शुभ कामनाएं