कभी कभी दूर के भी
बहुत पास हो जाते हैं
और कभी पास के भी
बहुत दूर हो जाते हैं
जब जुड़े हों तार
दिल से दिल के तो क्या करें
कल के अनजान आज खुद की
शान बन जाते हैं
ये रिश्ते हैं
इन्हें चाहे कोई भी नाम दे दो
बिन कहे सुने ही सब कुछ
समझ जाते हैं
बहुत कोमल होती है
ये प्यार की डोर
विश्वास अगर टूटे तो
रिश्ते भी बिखर जाते हैं
आओ बातें करें कुछ मन की
बांटे अपने कुछ सपने
रिश्ते वो सपने हैं
जो खुद ही सच हो जाते हैं
कुछ रिश्ते अपने आप बन जाते हैं.
(जो मेरे मन ने कहा....)
मैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता.
ReplyDeleteyashwani ji..
ReplyDeleteJwaab nahi aapka..............
एक-एक शब्द रचना की जान है....बहुत खूब
ReplyDeleteआदरणीया वीना जी एवं भास्कर जी बहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर लगे हमारीवाणी के कोड में आपके ब्लॉग पते के साथ http:// नहीं लिखा है और www लगा हुआ है, आपसे अनुरोध है, कि www हटा कर इसकी जगह http:// लगा लें, जिससे की आपका ब्लॉग समय पर अपडेट होने लगे.
ReplyDeleteधन्यवाद!
टीम हमारीवाणी