24 September 2010

रिश्ते

 कभी कभी दूर के भी
बहुत पास हो जाते हैं
और कभी पास के भी
बहुत दूर हो जाते हैं

जब जुड़े हों तार
दिल से दिल के तो क्या करें
कल के अनजान आज खुद की
शान  बन जाते हैं

ये रिश्ते हैं
इन्हें चाहे कोई भी नाम दे दो
बिन कहे सुने ही सब कुछ
समझ जाते हैं

बहुत कोमल होती है
ये प्यार की डोर
विश्वास अगर टूटे तो
रिश्ते भी बिखर जाते हैं

आओ बातें करें कुछ मन की
बांटे अपने कुछ सपने
रिश्ते वो सपने हैं
जो खुद ही सच हो जाते हैं

कुछ रिश्ते अपने आप बन जाते हैं.


(जो मेरे मन ने कहा....)

5 comments:

  1. मैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता.

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  2. एक-एक शब्द रचना की जान है....बहुत खूब

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  3. आदरणीया वीना जी एवं भास्कर जी बहुत बहुत धन्यवाद.

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  4. आपके ब्लॉग पर लगे हमारीवाणी के कोड में आपके ब्लॉग पते के साथ http:// नहीं लिखा है और www लगा हुआ है, आपसे अनुरोध है, कि www हटा कर इसकी जगह http:// लगा लें, जिससे की आपका ब्लॉग समय पर अपडेट होने लगे.

    धन्यवाद!

    टीम हमारीवाणी

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