हाँ
लगता है
सारे सपने कहीं खो गए हैं
जो देखे थे-
एक पल को लगा था
शायद सच होने वाले हैं
और मैं
आज़ाद होने वाला हूँ
एक रोशनी दिखी थी
पर ये नहीं मालूम था
कि एक बार फिर से
अँधेरे में खो जाऊंगा
और अब
अब तो कोई तमन्ना ही नहीं है
इस सन्नाटे से
इस अँधेरे से
बाहर आने की
लक्ष्य विहीन
एक अंतहीन सोच में डूबा हुआ
मैं
मैं-अब और नहीं चाहता पुनर्जीवन
मैं अपने खोए हुए सपनों
में कहीं खो जाना चाहता हूँ
फिर वापस न आने के लिए.
लगता है
सारे सपने कहीं खो गए हैं
जो देखे थे-
एक पल को लगा था
शायद सच होने वाले हैं
और मैं
आज़ाद होने वाला हूँ
एक रोशनी दिखी थी
पर ये नहीं मालूम था
कि एक बार फिर से
अँधेरे में खो जाऊंगा
और अब
अब तो कोई तमन्ना ही नहीं है
इस सन्नाटे से
इस अँधेरे से
बाहर आने की
लक्ष्य विहीन
एक अंतहीन सोच में डूबा हुआ
मैं
मैं-अब और नहीं चाहता पुनर्जीवन
मैं अपने खोए हुए सपनों
में कहीं खो जाना चाहता हूँ
फिर वापस न आने के लिए.
बहुत खूब । खो जाईये जनाब। बहुत बहुत आशीर्वाद। मगर इधर नीचे दिये पते पर हो के जाईयेगा|आप अच्छा लिखते हैं दिल से भी और संवेदनशील भी। बधाई
ReplyDeletewww.veerbahuti.blogspot.com
dhanyavaad|
bahut badhiya...bhaavapurn kavita.
ReplyDeleteबहुत सुंदर..जिस दिन मोहमाया से ऊपर उठ गए...फिर वापस न आने का ज्ञान हो गया...दुनिया से कोई गिला-शिकवा रहेगा ही नहीं...अगर यह निराशा नहीं है तो...शायद कहीं से परमात्मा में खोने की शुरुवात..
ReplyDeletebahut sundar rachna....lekin kahin kuchh nirasha ki jhalak bhi hai.... kyun ?
ReplyDeleteआदरणीया निर्मला जी,कृपया अपना आशीर्वाद यूँ ही बनाये रखियेगा इसकी बहुत ज़रुरत है मुझे.
ReplyDeleteअरविन्द जी आप को भी बहुत बहुत धन्यवाद.
आदरणीया वीना जी और दीदी,-हाँ कुछ हद तक निराशा का भाव है इस कविता में जो शायद स्वाभाविक है.
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 01-09 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज ... दो पग तेरे , दो पग मेरे
सुन्दर लिखा है यशवंत जी,
ReplyDeleteसादर बधाई और शुभकामनाएं...
निराशा को इतना हावी नही होने देना चाहिये।
ReplyDeletebahut bhavpoorn ...samvedansheel rachna ...asha...nirasha ko sath le kar hi jeevan chalata hai ...haan..hatasha nahin aani chahiye ...
ReplyDeleteबहुत गहन गंभीर भावाभिव्यक्ति है यशवंत जी ! मन को सम्वेदित करती बेहतरीन प्रस्तुति ! अति सुन्दर !
ReplyDeletegahan chintan...
ReplyDeleteमैं
ReplyDeleteमैं-अब और नहीं चाहता पुनर्जीवन
मैं अपने खोए हुए सपनों
में कहीं खो जाना चाहता हूँ
फिर वापस न आने के लिए. ..
बाह्य जगत से विमुख हुए मन की अंतर्जगत में अपने को खोजने की इच्छा ..सूफी चिंतन युक्त मार्मिक प्रस्तुति..
सादर अभिनन्दन सर !!