लोग कहते हैं
मैं आउट ऑफ़ डेट हूँ
अंडरवेट हूँ
उनकी नज़रों में मैं-
पुराने गीत सुनता हूँ
फैशन में नहीं जीता हूँ
शराब नहीं पीता हूँ
फालतू नहीं घूमता हूँ
सम्पादकीय पढता हूँ
कभी कभी लिखता हूँ
इसीलिए खटकता हूँ!
पर मैं-
खुद का फेवरेट हूँ
इसीलिए ग्रेट हूँ
चमकती हुई प्लेट हूँ
धरती पर आया लेट हूँ
इसलिए अंडरवेट हूँ.
(जो मेरे मन ने कहा.....)
मन की आवाज़ हमेशा सही कहती है। देर आये दुरुस्त आये। मगर अच्छा लिखा। शुभकामनायें।
ReplyDeleteआदरणीया निर्मला जी
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया.
बहुत खूब...क्या बात कही है...
ReplyDeleteये सच है वीना जी कि व्यवहार में मैं ऐसा ही हूँ .
ReplyDeleteबिग बाज़ार में अपनी नौकरी के दौरान मेरे सहकर्मी अक्सर मुझे आउट ऑफ़ डेट कहते थे क्यों कि(अपने पास उपलब्ध १००० गानों के संग्रह में) मेरा पसंदीदा गाना 'अजीब दास्ताँ है ये'(दिल अपना और प्रीत पराई-१९५८)तब का गाना है जब मेरा जन्म भी नहीं हुआ था.
बस इच्छा हुई एक सच लिखने की तो ये कविता बन गयी.
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 18 - 08 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज ... मैं अस्तित्त्व तम का मिटाने चला था
बहुत सुंदर कविता है ...यशवंत जी...खुद का फेवरेट होने की नियामत उपरवाला हर किसी को नहीं देता ...जिसे देता है वो बहुत खुशनसीब होता है ....!!
ReplyDeleteयही तो ख़ास है...
ReplyDeleteआपके मन ने तो बहुत सुन्दर कहा …………खुद का फ़ेवरेट बनना सबसे जरूरी है।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.