ले चलो मधुशाला मुझ को
मुझ को मधु रस पीना है
जैसे जीते और झूमते
मुझ को वैसे ही जीना है.
नहीं चाहना नहीं तमन्ना
ध्येय नहीं,अर्थहीन है जीवन
जिसको किया सर्वस्व समर्पित
वही नहीं,है विरहापन
किसे बताऊँ अपनी वेदना
कोई नहीं सुनने वाला है
मेरा साथी,मेरा साकी
मेरी केवल मधुशाला है.
मेरा साथी, मेरा साकी
ReplyDeleteमेरी केवल मधुशाला है...
मधुशाला से एक ही नाम का ध्यान आता है...बच्चन साहब का...अब आपका भी आएगा...सुंदर रचना
आदरणीया वीना जी,बहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeletesundar!
ReplyDelete