05 October 2010

कोई तो है

कोई तो है हाँ देखो वो देखो
वो सामने
वो कोई तो है
जो खींच रहा है
अपनी ओर मुझे
मैं देख रहा हूँ बस उसी को
सब कुछ भूल  गया हूँ
दुनिया से अलग थलग
उसके मोह पाश में
मैं मुस्कुरा रहा हूँ
और वो भी
मुस्कुरा रहा है
मुझे देख रहा है
अपनी बाहें फैलाये
मुझे बुला रहा है
और
कह रहा है  मुझ से-
आ गले लग जा!


(जो मेरे मन ने कहा.....)

9 comments:

  1. और वो भी
    मुस्करा रहा है

    मुसकरा रहा है या रही है....हा हा हा
    सुंदर रचना

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  2. वाह वाह बधाईयां और आशीर्वाद। बस तुम भी मुस्कुराते रहो।

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  3. .

    एक सुखद सन्देश देती हुई रचना। ...इश्वर करे आपका जीवन , ढेरों मुस्कुराहटों से भरा हो।

    इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई।

    .

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  4. वीना जी, मैं खुद confuse हूँ वो मुस्कुरा रहा है या रही है.बस एक आकृति सी नज़र आ रही है;बहुत दूर है न मुझ से इसलिए.

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  5. आदरणीया वीना जी,निर्मला जी,दिव्या जी,अपना आशीर्वाद और स्नेह मेरे साथ यूँ ही बनाये रखियेगा.

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  6. bahut badhiya rachna----yashwantji kaavya dristi ling bhed nahi karati....aapne theek hi likha hai.

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  7. अरविन्दजी से सहमत।
    मुस्कुरा रहा/रही है, क्या फ़र्क पडता है?
    कविता में सब कुछ चलता/चलती है।
    इसे कहते हैं अंग्रेज़ी में poetic license.
    आप तो कवि हैं, पूरा फ़ायदा उठाइए
    व्याकरण/लिंग भेद वगैरह तो हम तुच्छ टिप्पणिकारों के लिए है।
    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

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  8. zeal blog se seedhe yahin aa rahi hun.... sach me achha laga apki rachnayen padhkar... bhavi jeevan ke liye shubhkamnaye....

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  9. यशवंत भैया.... आपकी कविता तो मैं ज्यादा नहीं समझ सकता...... इसलिए यहाँ आया हूँ की zeal पर

    आपके बारे में पढ़ा....सच में हमें बड़ों के लिए बहुत रिस्पेक्ट्फुल होना चाहिए.....

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