(व्यक्तिगत रूप से मुझे इस कविता में कुछ कमियाँ नज़र आ रही हैं;फिरभी वर्ष 2005 में लिखी गयी इस कविता को आप के अवलोकनार्थ प्रस्तुत कर रहा हूँ-)
आशा किरण हो गयी प्रकट,
युव चेत गया,युग चेतेगा
माँ भारती का,विजय शिखर
विश्व देख रहा और देखेगा
युग-युग पूर्व का विश्व गुरु
स्वर्ण विहग बन कर चहकेगा
सृष्टि के उपवन में पुनः
चेतना सुमन अब महकेगा
युव का नेतृत्व,युग की शक्ति
अतुल मेधा और दिव्य दृष्टि
मुस्कुरा रही सकल प्रकृति
गुल महकेगा, युग देखेगा
युव ही है आधार युग का
युव-युगल पथ प्रदर्शक युग का
युव की असीमित ऊर्जा से
युग दमकेगा,युग देखेगा.
जागो विश्व के युवा समीर
तुम क्यों शांत?क्या कष्ट तुम्हें?
तेरे झोकों से टकरा कर
हिम पिघलेगा,युग सिहरेगा
आशा किरण हो गयी प्रकट
युव चेत गया,युव देखेगा.
(मैं मुस्कुरा रहा हूँ..)
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आशा किरण हो गई प्रकट
ReplyDeleteयुवा चेत गया, युग चेतेगा
माँ भारती का विजय शिखर
विश्व देख रहा और देखेगा.
...बहुत आशावान पंक्तियाँ .. निश्चित ही यदि युवा सही दिशा में जागेगा तो निश्चित ही विजय पताका फहराकर युग निर्माण करता है..
...आपको और आपके परिवार को नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ
आशा का विश्वास के साथ बहुत खूबसूरत समन्वय और अंत में फिर युवाशक्ति का आह्वान।
ReplyDeleteसुंदर कविता... साथ ही मधुर और सुंदर गीत सुनवाने के लिए भी धन्यवाद....
.
ReplyDeleteओज और उत्साह से भरी सुन्दर एवं प्रेरणादायी प्रस्तुति।
बहुत आभार।
.
वाह यशवंत भाई खूब लिखते हैं आप भी..सुन्दर...
ReplyDeleteउत्साह भरी प्रस्तुति।
ReplyDeleteनवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
http://sudhirraghav.blogspot.com/
Respected Kavita JI,Veena Ji,Divya ji,Shekhar ji & sudhir ji my heartfalt thanks to you all for liking this.
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