देख चुका हूँ
हर कहीं
तुम को
ढूंढ चुका हूँ
हर जगह-
पर तुम
कहीं नहीं हो
तो कहाँ हो तुम?
क्यों ये अक्स
तुमने छोड़ रखा
मानस पर
क्यों ये राग तुमने
छेड़ रखा
जीवन साज पर
ये कैसा आकर्षण
तुम्हारे प्रति
ये कैसा चिंतन
तुम्हारे प्रति
प्रति क्षण
तुम्हारे सामीप्य की आस में
भटक रहा हूँ
तुम्हारी तलाश में.
हर कहीं
तुम को
ढूंढ चुका हूँ
हर जगह-
पर तुम
कहीं नहीं हो
तो कहाँ हो तुम?
क्यों ये अक्स
तुमने छोड़ रखा
मानस पर
क्यों ये राग तुमने
छेड़ रखा
जीवन साज पर
ये कैसा आकर्षण
तुम्हारे प्रति
ये कैसा चिंतन
तुम्हारे प्रति
प्रति क्षण
तुम्हारे सामीप्य की आस में
भटक रहा हूँ
तुम्हारी तलाश में.
सुन्दर शब्द रचना ।
ReplyDeleteसुन्दर रचना !!!
ReplyDeleteभई किस की तालाश है.....
ReplyDeleteयहाँ ( शब्दों का उजाला) पर तो हम रब को तलाश रहे हैं !!
तुम्हारे सामीप्य की आस में
ReplyDeleteभटक रहा हूँ
तुम्हारी तलाश में.
...बहुत खूबसूरत भाव...बधाई.
यश अच्छे लोग कहीं भी मिलें अच्छा ही लगता है. आपसे शब्दों के ज़रिये मुलाकात हुई अच्छा लगा, आप मेरे ब्लोग पर आये अच्छा लगा, आपके ब्लोग पर आकर और आपके बारे में जान कर और भी अच्छा लगा. आशा करती हूँ ये सिलसिला बना रहेगा. आभार !
ReplyDeleteतो कहाँ हो तुम?
ReplyDeleteक्यों ये अक्स
तुमने छोड़ रखा
मानस पर
क्यों ये राग तुमने
छेड़ रखा
जीवन साज पर
ये कैसा आकर्षण
तुम्हारे प्रति
बहुत सुंदर पंक्तियां...बधाई
कभी-कभी खुद भी समझ नहीं आता...कि क्या तलाश है। कविता वाकई अच्छी है...
ReplyDeleteमनोभावों को उकेरती एक बेहतरीन रचना.....
ReplyDeletetalaash puri ho....
ReplyDeleterachnatmak safar chalta rahe!
sundar rachna!
shubhkamnayen!
अच्छा लिखा है .मुस्कुराते रहिये.
ReplyDeleteआदरणीया सदा जी,दिव्या जी,हरदीप जी,प्रतिमा जी,मोनिका जी,अनुपमा जी,शिखा जी,एवं आदरणीय यादव जी आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteवीना जी-अपने सुपुत्र (मेरे दोस्त) की बीमारी के बावजूद आप ने मेरे ब्लॉग पर आने के लिए समय निकाला;ये बहुत बड़ी बात है.मैं कामना करता हूँ की वो जल्दी से पूरी तरह ठीक हो.
प्रतिमा जी-बिलकुल ये सिलसिला अब यूँ ही बना रहेगा.
ारे बच्चा अभी से भटकने लगे? काम की ओर ध्यान दो। हा हा हा। वैसे कविता अच्छी लगी। शुभकामनायें।
ReplyDeleteप्रति क्षण
ReplyDeleteतुम्हारे सामीप्य की आस में
भटक रहा हूँ
bahut achhe bol hain.
bahut bahut aabhar..
आदरणीया निर्मला जी एवं हिमांशु जी,आप का बहुत बहुत धन्यवाद,
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 16-- 11 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज ...संभावनाओं के बीज
ये कैसा आकर्षण
ReplyDeleteतुम्हारे प्रति
ये कैसा चिंतन
तुम्हारे प्रति
प्रति क्षण
तुम्हारे सामीप्य की आस में
भटक रहा हूँ
तुम्हारी तलाश में.kafi achchhi panktiyan.....
सुंदर अभिव्यक्ति,,संगीत के साथ अच्छा लगा
ReplyDeleteतलाश अपनी अपनी है, ..इसलिए रचना के अर्थ भी अपने ही है .....मनोभाव की एकसारता ...सुंदर .
प्रति क्षण
ReplyDeleteतुम्हारे सामीप्य की आस में
भटक रहा हूँ
तुम्हारी तलाश में.
very nice .....
बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसादर बधाई
sunder rachna.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना यशवंत जी ! शुभकामनायें !
ReplyDeletekuch waqt lag gaya blog par aane mein par aapki rachna bahut hi sunder hai........ye talaash to hamesha hi jari rahegi:)
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