20 October 2010

तुम्हारी तलाश में.

देख चुका हूँ
हर कहीं
तुम को
ढूंढ चुका हूँ
हर जगह-
पर तुम
कहीं नहीं हो
तो कहाँ हो तुम?
क्यों ये अक्स
तुमने छोड़ रखा
मानस पर
क्यों ये राग तुमने
छेड़ रखा
जीवन साज पर
ये कैसा आकर्षण
तुम्हारे प्रति
ये कैसा चिंतन
तुम्हारे प्रति
प्रति क्षण
तुम्हारे सामीप्य की आस में
भटक रहा हूँ
तुम्हारी तलाश में.


22 comments:

  1. सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  2. सुन्‍दर रचना !!!

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  3. भई किस की तालाश है.....
    यहाँ ( शब्दों का उजाला) पर तो हम रब को तलाश रहे हैं !!

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  4. तुम्हारे सामीप्य की आस में
    भटक रहा हूँ
    तुम्हारी तलाश में.

    ...बहुत खूबसूरत भाव...बधाई.

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  5. यश अच्छे लोग कहीं भी मिलें अच्छा ही लगता है. आपसे शब्दों के ज़रिये मुलाकात हुई अच्छा लगा, आप मेरे ब्लोग पर आये अच्छा लगा, आपके ब्लोग पर आकर और आपके बारे में जान कर और भी अच्छा लगा. आशा करती हूँ ये सिलसिला बना रहेगा. आभार !

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  6. तो कहाँ हो तुम?
    क्यों ये अक्स
    तुमने छोड़ रखा
    मानस पर
    क्यों ये राग तुमने
    छेड़ रखा
    जीवन साज पर
    ये कैसा आकर्षण
    तुम्हारे प्रति

    बहुत सुंदर पंक्तियां...बधाई

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  7. कभी-कभी खुद भी समझ नहीं आता...कि क्या तलाश है। कविता वाकई अच्छी है...

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  8. मनोभावों को उकेरती एक बेहतरीन रचना.....

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  9. talaash puri ho....
    rachnatmak safar chalta rahe!
    sundar rachna!
    shubhkamnayen!

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  10. अच्छा लिखा है .मुस्कुराते रहिये.

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  11. आदरणीया सदा जी,दिव्या जी,हरदीप जी,प्रतिमा जी,मोनिका जी,अनुपमा जी,शिखा जी,एवं आदरणीय यादव जी आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद.

    वीना जी-अपने सुपुत्र (मेरे दोस्त) की बीमारी के बावजूद आप ने मेरे ब्लॉग पर आने के लिए समय निकाला;ये बहुत बड़ी बात है.मैं कामना करता हूँ की वो जल्दी से पूरी तरह ठीक हो.

    प्रतिमा जी-बिलकुल ये सिलसिला अब यूँ ही बना रहेगा.

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  12. ारे बच्चा अभी से भटकने लगे? काम की ओर ध्यान दो। हा हा हा। वैसे कविता अच्छी लगी। शुभकामनायें।

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  13. प्रति क्षण
    तुम्हारे सामीप्य की आस में
    भटक रहा हूँ


    bahut achhe bol hain.

    bahut bahut aabhar..

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  14. आदरणीया निर्मला जी एवं हिमांशु जी,आप का बहुत बहुत धन्यवाद,

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  15. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 16-- 11 - 2011 को यहाँ भी है

    ...नयी पुरानी हलचल में आज ...संभावनाओं के बीज

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  16. ये कैसा आकर्षण
    तुम्हारे प्रति
    ये कैसा चिंतन
    तुम्हारे प्रति
    प्रति क्षण
    तुम्हारे सामीप्य की आस में
    भटक रहा हूँ
    तुम्हारी तलाश में.kafi achchhi panktiyan.....

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  17. सुंदर अभिव्यक्ति,,संगीत के साथ अच्छा लगा
    तलाश अपनी अपनी है, ..इसलिए रचना के अर्थ भी अपने ही है .....मनोभाव की एकसारता ...सुंदर .

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  18. प्रति क्षण
    तुम्हारे सामीप्य की आस में
    भटक रहा हूँ
    तुम्हारी तलाश में.
    very nice .....

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  19. बहुत सुन्दर रचना यशवंत जी ! शुभकामनायें !

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  20. kuch waqt lag gaya blog par aane mein par aapki rachna bahut hi sunder hai........ye talaash to hamesha hi jari rahegi:)

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