कभी
हरे भरे ऊंचे पेड़
कुछ आम के
कुछ नीम के
कुछ बरगद और
गुलमोहर के
दिखाई देते थे
घर की छत से
(फोटो:साभार गूगल) |
सड़क पर चलते हुए
कहीं से आते हुए
कहीं को जाते हुए
कभी गरमी की
तपती धूप में
कभी तेज बरसते पानी में
या कभी
यूँ ही थक कर
कुछ देर को मैं
छाँव में बैठ जाता था
पर अब
बढती विलासिताओं ने
महत्वाकांक्षाओं ने
कंक्रीट की दीवारों ने
कर लिया है
इन पेड़ों का शिकार
(मोबाइल फोटो:मेरे घर की छत से) |
ये अब दिखाई नहीं देते
घर की छत से
और न ही
किसी सड़क के किनारे
अब इन्हें पाता हूँ
दो पल के सुकून को
मैं तरस जाता हूँ.
(मैं मुस्कुरा रहा हूँ..)