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15 November 2010

ये तो होना ही था

(मोबाइल फोटो)

जो फसल 
लहलहाती थी-
कभी शान से 
स्टाइल में 
लहराती भी थी-
जिसका अपना 
एक रुतबा 
कभी हुआ करता था
जिसे 
शैम्पू और तेल के 
पानी और खाद से 
सींचा करता था 
वो फसल
अब 
गुज़र रही है 
स्थाई पतझड़  के दौर से 
गिन रही है
अपनी अंतिम सासें 
वो मुझ से 
जुदा होने को है

और मुझे 
कोई गम नहीं है 
इस जुदाई का 
क्योंकि 
आज नहीं तो कल 
अंततः 
ये तो होना ही था.

6 comments:

  1. बहुत बढ़िया लिखा है .....

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  2. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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  3. और मुझे
    कोई गम नहीं है
    इस जुदाई का
    क्योंकि
    आज नहीं तो कल
    अंततः
    ये तो होना ही था.


    जीवन के सच को बड़ी सहजता से स्वीकार किया है...बहुत सुंदर लिखा है...बधाई

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  4. :) यह तो होना ही है..... कमाल लिखा

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  5. आदरणीय वीरेंद्र जी,संजय जी,वीणा जी,अना जी,एवं मोनिका जी बहुत बहुत धन्यवाद.

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