(मोबाइल फोटो) |
जो फसल
लहलहाती थी-
कभी शान से
स्टाइल में
लहराती भी थी-
जिसका अपना
एक रुतबा
कभी हुआ करता था
जिसे
शैम्पू और तेल के
पानी और खाद से
सींचा करता था
वो फसल
अब
गुज़र रही है
स्थाई पतझड़ के दौर से
गिन रही है
अपनी अंतिम सासें
वो मुझ से
जुदा होने को है
और मुझे
कोई गम नहीं है
इस जुदाई का
क्योंकि
आज नहीं तो कल
अंततः
ये तो होना ही था.
बहुत बढ़िया लिखा है .....
ReplyDeleteकिस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
ReplyDeleteऔर मुझे
ReplyDeleteकोई गम नहीं है
इस जुदाई का
क्योंकि
आज नहीं तो कल
अंततः
ये तो होना ही था.
जीवन के सच को बड़ी सहजता से स्वीकार किया है...बहुत सुंदर लिखा है...बधाई
बहुत सुंदर
ReplyDelete:) यह तो होना ही है..... कमाल लिखा
ReplyDeleteआदरणीय वीरेंद्र जी,संजय जी,वीणा जी,अना जी,एवं मोनिका जी बहुत बहुत धन्यवाद.
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