अच्छा या बुरा जो चाहे वो समझ लो मुझ को,
जो मेरा मन कहे वो करता आ रहा हूँ,
कितने भी तीर चुभो दो भले ही,
मैं मुस्कुरा रहा हूँ
तुमने सोचा होगा,
तुम्हारी कृत्रिम अदाओं का,
कुछ तो असर होगा मगर,
मैं भी मैं ही हूँ, मैं चलता जा रहा हूँ
बे परवाह तुमसे, मैं मुस्कुरा रहा हूँ
मेरी खामोशी को,
न समझ लेना स्वीकृति,
मौन रख कर भी मैं,
कुछ कुछ कहता जा रहा हूँ,
है नहीं कोई भाव - मैं मुस्कुरा रहा हूँ
मैं मुस्कुरा रहा हूँ-
कि मुस्कुराना फितरत है मेरी,
खुद की नज़रों में पल पल,
मैं चढ़ता जा रहा हूँ
मैं मुस्कुरा रहा हूँ
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मेरी खामोशी को,
ReplyDeleteन समझ लेना स्वीकृति,
मौन रख कर भी मैं,
कुछ कुछ कहता जा रहा हूँ,
है नहीं कोई भाव - मैं मुस्कुरा रहा हूँ
खूबसूरत पंक्तियाँ
बहुत ही सुन्दर कविता.
ReplyDeleteमौन रह कर भी कुछ कुछ कहे जा रहा हूँ ...
ReplyDeleteअच्छा है !
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteतीर है भी तो प्यार का
ReplyDeleteनहीं है तकरार का
इसलिए मुस्कराओंगे ही
यशवंत हो
यश पाओगे
'ईस्ट इज ईस्ट' के बाद अब 'वेस्ट इज वेस्ट' : गोवा से
ऊंट घोड़े अमेरिका जा रहे हैं हिन्दी ब्लॉगिंग सीखने
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बहुत चिंतित है ब्लु लाइन बसे
शनिवार को गोवा में ब्लॉगर मिलन और रविवार को रोहतक में इंटरनेशनल ब्लॉगर सम्मेलन
खुबसूरत रचना
ReplyDeleteहै आपकी आभार
कभी यहाँ भी आये
www.deepti09sharma.blogspot.com
मौन रख कर भी मैं,
ReplyDeleteकुछ कुछ कहता जा रहा हूँ,
behad khubsoorat panktiyaan.. khud ki nazaro me chadhne se behtar kuchh bhi nahi
अब जाके समझ में आया कि आपके हर पोस्ट के अंत में मैं मुस्कुरा रहा हूँ क्यूँ लिखा रहता है?
ReplyDeleteवैसे यह कविता आपने ब्लॉग थीम को अच्छी तरह से दर्शा रहा है.सभी पंक्तियाँ लाजवाब है.
khoosurat! wah!!
ReplyDeleteमेरी खामोशी को,
ReplyDeleteन समझ लेना स्वीकृति,
मौन रख कर भी मैं,
कुछ कुछ कहता जा रहा हूँ,
है नहीं कोई भाव - मैं मुस्कुरा रहा हूँ
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
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