(1)
रोज़ सुबह
मैं देखता हूँ
इन अनखिली कलियों को
पीठ पर
आशाओं का बोझा लादे
चलती जाती हैं
जो
एक फूल बनने का
अनोखा
सपना लेकर
(2)
मैं भी चाहता हूँ
जल्दी से
ये कलियाँ खिल उठें
और मैं
महसूस कर सकूं
नए फूलों की
ताज़ी खुशबू को
उस खुशबू को
जो हर दिशा में फ़ैल कर
करवा दे
अपने होने का
एहसास
ताकि फिर खिल सकें
कुछ और
नयी कलियाँ.
ताकि फिर खिल सकें
कुछ और
नयी कलियाँ.
(Photos:Google Image Search) (मैं मुस्कुरा रहा हूँ..)
सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteउस खुशबू को
ReplyDeleteजो हर दिशा में फ़ैल कर
करवा दे
अपने होने का
एहसास
ताकि फिर खिल सकें
कुछ और
नयी कलियाँ.
दिल को वाकई छू गईं...बहुत खूब यशवंत जी...आशाओं की कलियां, आशाओं का सवेरा....आशा ही आशा..
ताकि फिर खिल सकें
ReplyDeleteकुछ और
नयी कलियाँ.
आपकी सोच ने मंत्रमुग्ध कर दिया..... बेहद खूबसूरत विचार है. जल्द ही खिले ये प्यारी-प्यारी कलियाँ बगियन में खिलखिलाने को जगमगाने को......
बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (29/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
कल...आज और आने वाले कल के सपने संजोये, कली से फूल बनने के एहसास संजोये सुन्दर रचना!
ReplyDeleteहमारे देश की लड़कियां ही एकदिन देश का नाम उज्जवल करेगी ..
ReplyDeleteसुन्दर रचना ...
कितनी सीधी सच्ची खरी और सकारात्मक बातें
ReplyDeleteहृदय स्पर्शी रचना।
ReplyDeleteसुन्दर और सार्थक रचना....
ReplyDelete... bahut sundar ... khoobsoorat rachanaa ... badhaai !!!
ReplyDeletebahut sundar..saarthak rachnatmak lekhan..
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी इस रचना का लिंक मंगलवार 30 -11-2010
ReplyDeleteको दिया गया है .
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
हृदय स्पर्शी रचना।
ReplyDeleteबहुत पसन्द आया
बहुत देर से पहुँच पाया .........माफी चाहता हूँ..
.... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
ReplyDeleteआदरणीया संगीता जी,वीना जी,वंदना जी,पूजा जी,वंदना गुप्ता जी,अनुपमा जी,इन्द्रनील जी,रचना जी,मनोज जी,मोनिका जी,उदय जी,अरविन्द जी एवं संजय जी आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद इन पंक्तियों को पसंद करने के लिए.
ReplyDeleteआदरणीया संगीता जी एवं वंदना जी--चर्चा मंच पर मुझे स्थान देने के लिए आप का विशेष आभार.
वाह यशवंत जी...दोनों कवितायें बेहद बेहद खूबसूरत हैं :)
ReplyDeleteपहली वाली खास पसंद आई :)
sunder rachna...blog par aane ka shukriya...
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत अच्छा यशवंत। रचना के सुर अच्छे हैं, भाव गहरे हैं। जारी रखो। भावुक व्यक्ति ही जीवन का रस पीता है। सादगी पसंद ही इस देश के मणिमुकुट बनेंगे। ग्लानि मत करो, अच्छी मंजिल तुम्हारा इंतजार कर रही है। साथ बने रहो, लिखते चलो।