दिन भर
घर के बाहर की सड़क पर
खूब कोलाहल रहता है
और सांझ ढलते
सड़क के दोनों किनारों पर
लग जाता है मेला
सज जाती हैं दुकानें
चाट के ठेलों की
और कहीं
पटरी पर
पुराने गरम और सूती कपड़ों
की दुकानें
५० रुपये की शर्ट खरीदने को
जुटी हुई भीड़
कहीं कारों से उतरती हुईं
मेम
जो उस पार खड़े ठेले से
खरीद रही हैं
ताज़ी हरी सब्जियां
और उनके साथ वो छोटे बच्चे
अपनी मॉम से
मचल रहे हैं
बैलून खरीदने को
और मेरे बगल में रहने वाला
नन्हा छोटू
झगड़ रहा है
उस गुब्बारे के लिए
अपने बाबा के साथ
मैं महसूस करता हूँ
विविधता में एकता को
अँधेरे के गहराने के साथ
सड़क का ये कोलाहल
शांत होने पर
घरों पर
तेज आवाज़ में चिल्लाते
टीवी के थमने पर
आखिर सब सो ही तो जाते हैं
कुछ मखमली गद्दों में
और कुछ
आसमां की छत के नीचे
एक नयी सुबह की आस बांधे
सोना और जगना-
इसमें कोई भेद नहीं है
अमीर गरीब का
जाति औ धर्म का
बस तरीके अलग हैं
सोने और जागने के
कुछ सोते हुए जागते हैं
और कुछ
जागते हुए सोते हैं
आखिर कहीं तो है एकता
विविधता में एकता !
घर के बाहर की सड़क पर
खूब कोलाहल रहता है
और सांझ ढलते
सड़क के दोनों किनारों पर
लग जाता है मेला
सज जाती हैं दुकानें
चाट के ठेलों की
और कहीं
पटरी पर
पुराने गरम और सूती कपड़ों
की दुकानें
५० रुपये की शर्ट खरीदने को
जुटी हुई भीड़
कहीं कारों से उतरती हुईं
मेम
जो उस पार खड़े ठेले से
खरीद रही हैं
ताज़ी हरी सब्जियां
और उनके साथ वो छोटे बच्चे
अपनी मॉम से
मचल रहे हैं
बैलून खरीदने को
और मेरे बगल में रहने वाला
नन्हा छोटू
झगड़ रहा है
उस गुब्बारे के लिए
अपने बाबा के साथ
मैं महसूस करता हूँ
विविधता में एकता को
अँधेरे के गहराने के साथ
सड़क का ये कोलाहल
शांत होने पर
घरों पर
तेज आवाज़ में चिल्लाते
टीवी के थमने पर
आखिर सब सो ही तो जाते हैं
कुछ मखमली गद्दों में
और कुछ
आसमां की छत के नीचे
एक नयी सुबह की आस बांधे
सोना और जगना-
इसमें कोई भेद नहीं है
अमीर गरीब का
जाति औ धर्म का
बस तरीके अलग हैं
सोने और जागने के
कुछ सोते हुए जागते हैं
और कुछ
जागते हुए सोते हैं
आखिर कहीं तो है एकता
विविधता में एकता !
बहुत सुन्दर चित्र खींचे हो भाई शब्दों से ... बधाई !
ReplyDeletevery nice
ReplyDeleteआपकी अनुभूति विविधता में एकता को उद्घाटित करने में सफल रही है!
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्रण....ढूंढने पर ऐसी ही शायद कुछ और एकता मिल जाए पर विषमताएं तो सर्वत्र विद्यमान हैं....जिसके बीच की खाई बढ़ती ही जा रही है....वह एकता की विविधता है....बहुत संवेदनशील विषय है...आपने अपनी रचना के साथ पूरा न्याय किया है....भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
ReplyDeleteविचार-प्रायश्चित
भावपूर्ण संवेदनशील रचना .......
ReplyDeleteakhir kahin to hai ekta
ReplyDeletevividhta me ekta
vishamta me khojti hai ekta aapki rachna...
achchha post!
भावमय करते शब्द ..।
ReplyDeletebahut badhiya dhang se vividhata me ekta ko paribhaashit kiya hai....aabhaar
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से आसपास की बातों को कविता में प्रस्तुत किया है और उन्हें देखने का यह दृष्टिकोण भी पसंद आया.
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़ कर
ReplyDeletesachmuch badiya hai
ReplyDeletebahut khoob, aankhon ke aage chitr khinch gaya.
ReplyDeleteshubhkamnayen
इतने सारे हिट मिले ये तो अच्छी बात है .. बधाई हो ...
ReplyDeleteविविधता में एकता अशून्य सी क्यूं है!!
ReplyDeleteआपकी कविता पढ़कर जवाब मिल गया .
बहुत अच्छी कविता..