अब नहीं कोई बंधन
न दोस्ती
न दुश्मनी
चलता जा रहा हूँ
अपनी ही धुन में
बेखबर ज़माने से
बदनीयती से
बदले की आग से
शिकवों से
बे असर
मैं आज़ाद हूँ !
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नकारात्मकता पर जीत की सार्थकता कहती रचना!
ReplyDeleteसुन्दर!
ab jo hai apna hai... bahut badhiyaa
ReplyDeleteसुन्दर रचना ! लाजवाब प्रस्तुति !
ReplyDeleteसही कहा आपने
ReplyDeleteबदले की आग से
शिकवों से
बे असर
मैं आज़ाद हूँ !
बहुत कुछ बदला है आगे भी बदलेगा। शुभकामनायें।
ReplyDeleteआपका ब्लॉग हमें अच्छा लगा, हम
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आते रहेंगे..थैंक्स !
चलता जा रहा हूँ
ReplyDeleteअपनी ही धुन में
बेखबर ज़माने से
खुश रहने की पहली सीढ़ी....यही है सकारात्मक सोच और अवसादों से ऊपर उठने की कला....बहुत सुंदर...
चलता जा रहा हूँ
ReplyDeleteअपनी ही धुन में
बहुत खूब ! सकारात्मक स्वाभिमानी सोच . लिखते रहिये ..
ek aajad man ke bhavon ko sundar v yatharth roop me prastut kiya hai .badhai. nav varsh ki hardik shubhkamnaye .
ReplyDeleteमंजिल पाने के लिए अकेला चलना भी सुखकर होता है कभी कभी .अपनी धुन में...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
ReplyDeleteजो आज़ाद महसूस करता है वही ज़िन्दगी की जंग जीतता है बशर्ते कि आज़ादी किसी मजबूरी मे न हो। शुभकामनायें।
ReplyDeleteआज़ादी का सही मतलब तो नहीं निकला //
ReplyDeleteपर आज़ाद है आपकी कविता
और आपकी लेखनी
नव वर्ष की शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeletechhoti si kavita par sundar hai ...
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteयही बेहतर भी है जी...चलते जाएँ आजाद होकर...
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