14 January 2011

ओ! हवा की लहरों

ओ!पल पल बहती
जीवनदायिनी हवा की लहरों
कुछ ठहर कर
आज मुझ से कुछ बातें कर लो
तुम छू कर मुझे निकल जाती हो
अनंत की ओर
मेरे जैसे और भी बहुतों को
देती हो एहसास जीवन का
तो क्यूँ न
दो पल का विराम ले कर
कुछ अपनी कह दो
और कुछ मेरी सुन लो
पर मैं जानता हूँ
तुम्हारे ठहरने मात्र से ही
कितने ही ठहर जायेंगे
मैं चाहता  हूँ
और सिर्फ चाहता ही रह जाऊँगा
और तुम बहती रहोगी
अनवरत
शायद रुकना तुमको आता ही नहीं
चलते वक़्त की तरह.

20 comments:

  1. मैं चाहता हूँ
    और सिर्फ चाहता ही रह जाऊँगा
    और तुम बहती रहोगी
    अनवरत
    शायद रुकना तुमको आता ही नहीं
    चलते वक़्त की तरह.

    Bahut khoob !

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  2. दायित्व बोध की कविता ..सुंदर

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  3. सचमुच कहाँ ठहरती है...जीवनदायिनी हवा.... सुंदर अभिव्यक्ति....

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  4. thahar bhi jao... kuch kah lo , main bhi ji lun un baaton mein

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  5. havaon se rukne ki bat na na , sundar rachna , badhai

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  6. मैं चाहता हूँ
    और सिर्फ चाहता ही रह जाऊँगा
    और तुम बहती रहोगी
    अनवरत
    शायद रुकना तुमको आता ही नहीं
    चलते वक़्त की तरह.

    हरेक चाह कहाँ पूरी होती है..हवा की नियति है निरंतर बहना..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति.

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  7. अच्छी अभिव्यक्ति |बधाई |
    मकर संक्रांति पर शुभ कामनाएं |
    आशा

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  8. शायद रुकना तुमको आता ही नहीं
    चलते वक़्त की तरह
    khubsurat yehsas

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  9. बेहद खूबसूरत!

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  10. बस बहुत सुंदर....बहुत खूब...इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकती.....

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  11. आज मुझ से कुछ बातें कर लो
    तुम छू कर मुझे निकल जाती हो
    अनंत की ओर
    मेरे जैसे और भी बहुतों को
    देती हो एहसास जीवन का
    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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  12. हवा की फितरत को सही पहचाना है। हार्दिक बधाई। इसीलिए जीवन भी चलने का नाम माना जाता है।

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    डा0 अरविंद मिश्र: एक व्‍यक्ति, एक आंदोलन।
    सांपों को दुध पिलाना पुण्‍य का काम है?

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  13. अदभुत वर्णन ...
    सुन्दर रचना ......

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  14. सुंदर अभिव्यक्ति....!!

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  15. बहुत ही सुंदर रचना.....बधाई...

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  16. बहुत सुंदर रचना......बधाई.

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  17. इन पंक्तियों को पसंद करने के लिए आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद.

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