बिन आहट आकर के क्यों
मेरी तन्हाईयाँ छीन लीं तुमने
मैं अकेलेपन में जीता था
मेरी परछाईयाँ छीन लीं तुमने
क्यों इस कदर अपनापन
क्यों ये मोहब्बत दिखाते हो
मावस की रात में क्यों
चांदनी बन जाते हो
ये जान कर कि तुम को
दिया कुछ भी नहीं मैंने
फिर अपना हमकदम क्यों
मुझको चुन लिया तुमने
और भी बहुत से होंगे
तेरी खुशबू को चाहने वाले
मैं भंवर नहीं फिर भी कैसे
मुझे महसूस लिया तुमने ?
बहुत मासूम से खूबसूरत सवाल करती प्रभावी रचना ..
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteमासूम सवाल ....सुंदर रचना
ReplyDeletebahut achchhi bhavabhivyakti..
ReplyDeletesundar bhavabhivyakti .
ReplyDeleteला-जवाब" जबर्दस्त!!
ReplyDeletenicely expressed .....
ReplyDeleteखूबसूरत भावों से सजी रचना .कोमल सा एहसास लिए
ReplyDeleteबिन आहट आकर के क्यों
ReplyDeleteमेरी तन्हाईयाँ छीन लीं तुमने
मैं अकेलेपन में जीता था
मेरी परछाईयाँ छीन लीं तुमने
मैं अकेलेपन में जीता था और यहां तक कि मेरी परछांईया भी छीन ली
बहुत खूब...बहुत सुंदर भाव...
बिन आहट आकर के क्यों
ReplyDeleteमेरी तन्हाईयाँ छीन लीं तुमने
मैं अकेलेपन में जीता था
मेरी परछाईयाँ छीन लीं तुमने
bahut badhiyaa
कोमल भावों से परिपूर्ण बहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मन के भाव। वाजिब सवाल। बधाई।
ReplyDeleteइन पंक्तियों को पसंद करने के लिए आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 01- 02- 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
बिन आहट आकर के क्यों
ReplyDeleteमेरी तन्हाईयाँ छीन लीं तुमने
मैं अकेलेपन में जीता था
मेरी परछाईयाँ छीन लीं तुमने
बहुत सुंदर रचना .
best wishes.
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
ReplyDeletebahut sunder.
ReplyDeleteअत्यंत आत्मीय एवं अंतरंग सी अभिव्यक्ति ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबेहद भावमयी और खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
मैं अकेलेपन में जीता था
ReplyDeleteमेरी परछाईयाँ छीन लीं तुमने
बहुत बढ़िया...