सुन रहा हूँ
कहीं दूर से तुम्हारी आवाज़
गगन में गूंजती परिंदों की
सरगम में तुम्हारे सुरों का मिलना
बस एक एहसास कि
शायद यहीं कहीं हो
मेरे समीप किन्तु अदृश्य
ठंडी हवा के झोंके सा
मुझको छू कर निकल जाना
चौंकाना और चहकना
एक अजीब सा रहस्य
तुम्हारी इस निकटता में
इस सन्नाटे में
मेरे क़दमों में तुम्हारा
हमकदम होना
तुम यहीं किन्तु कहाँ
अनंत की ओर अपलक
बेसुध सा निहार रहा हूँ
चलता जा रहा हूँ
राह में मिलते शूलों को
गले लगा कर
तुम्हारी खोज में!
तुम यहीं किन्तु कहाँ....
ReplyDeleteबहुत खूब ... तभी तो यह तलाश जारी है....
यही तो तलाश है जो पूरी नही होती………सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत शानदार पोस्ट प्रस्तुत की है आपने .शायद ब्लॉग जगत में ऐसी पोस्ट पढने से ही इसकी सार्थकता साबित होती है .बधाई .
ReplyDeleteतुम यहीं किन्तु कहाँ
ReplyDeleteअनंत की ओर अपलक
बेसुध सा निहार रहा हूँ
चलता जा रहा हूँ
राह में मिलते शूलों को
गले लगा कर
तुम्हारी खोज में
बहुत ही खुबसुरत रचना। आभार।
चलता जा रहा हूँ
ReplyDeleteराह में मिलते शूलों को
गले लगा कर
तुम्हारी खोज में!
और यह तलाश जारी रहती है अनंत काल तक..बहुत सुन्दर अहसासपूर्ण
अभिव्यक्ति..
चलते जाना है की पता नहीं मंजिल किधर है !
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति !
अच्छी रचना ! keep it up !
ReplyDeletemann moh liya rachna ne
ReplyDeleteपाँव मजबूती से रखे हों मन मे अटल विश्वास हो तो जरूर मंजिल तक पहुँच जाओगे। अच्छी लगी रचना। बधाई।
ReplyDeleteतुम यहीं किन्तु कहाँ
ReplyDeleteअनंत की ओर अपलक
बेसुध सा निहार रहा हूँ
सुंदर भावों के साथ मन की बात बड़ी सहज तरीके से कही है...दुखों को गले लगाकर ही सुखों की कद्र पता चलती है...कुछ तलाश जल्दी खत्म हो जाती हैं और कुछ जीवन के साथ चलती रहती हैं...ईश्वर आपकी तलाश को मंजिल दे....बहुत सुंदर रचना
sundar... waah...
ReplyDeletekavi man bas aise hi hote hai..bahut hi badhiya..
ReplyDeleteसंवेदनशील मन की भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...बेहद खूबसूरत भाव ..
ReplyDeleteस्नेह भरी शुभकामनायें.....
ये कविता पढ कर लगा कि मुझको एक बेहद प्यारा सा तोहफ़ा मिल गया । उन्नति करो |
ReplyDeleteउनका एहसास छा रहा है हर कहीं ... फिर चाहे शूल हो या कुछ और ... कहाँ रुकते हैं प्रेम करने वाले ... अच्छी रचना है ..
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार ०५.०२.२०११ को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
बहुत ही प्यारे भाव हैं। बधाई।
ReplyDelete---------
ध्यान का विज्ञान।
मधुबाला के सौन्दर्य को निरखने का अवसर।
जिस दिन ये खोज पूरी हो गई समझो हमारे सफ़र का भी अंत हो गया ! यही तो ये खोज है जो ता उम्र हमे अपने पीछे दोड़ती रहती है और हम हिरन की तरफ इधर - उधर दोड़ते रहते हैं जबकि कस्तूरी तो आखिर मै उसके पास ही मिलती है ! वेसे तो सबकुछ हमारे ही पास है पर हम फिर भी उसे इधर उधर खोजते रहते है और हमारा सफ़र चलता रहता है !
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना बधाई हो दोस्त !
behad achchi lagi.
ReplyDeleteमेरे समीप किन्तु अदृश्य
ReplyDeleteठंडी हवा के झोंके सा
मुझको छू कर निकल जाना
चौंकाना और चहकना
एक अजीब सा रहस्य
तुम्हारी इस निकटता में
इस सन्नाटे में
मेरे क़दमों में तुम्हारा
हमकदम होना............
बहुत ही सुंदर कविता !....और बहुत ही गहरे भाव !
हार्दिक बधाई ।
सुन्दर भाव ...तलाश पूरी होगी ..
ReplyDeletevery beautifully you combine the touching thoughts .
ReplyDeletevery nice .
इन पंक्तियों को पसंद करने के लिए आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteचर्चा मंच पर लेने के लिए सत्यम जी का विशेष आभार.
निश्छल प्रेम की अद्भुत अनुभूति -
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना -
bahut sundar
ReplyDeletehttp://kavyana.blogspot.com/2011/02/blog-post.html