03 February 2011

तुम्हारी खोज में

सुन रहा हूँ
कहीं दूर से तुम्हारी आवाज़
गगन में गूंजती परिंदों की
सरगम में तुम्हारे सुरों का मिलना
बस एक एहसास कि
शायद यहीं कहीं हो
मेरे समीप किन्तु अदृश्य
ठंडी हवा के झोंके सा
मुझको छू कर निकल जाना
चौंकाना और चहकना
एक अजीब सा रहस्य
तुम्हारी इस निकटता में
इस सन्नाटे में
मेरे क़दमों में तुम्हारा
हमकदम होना
तुम यहीं किन्तु कहाँ
अनंत की ओर अपलक
बेसुध सा निहार रहा हूँ
चलता जा रहा हूँ
राह में मिलते शूलों को
गले लगा कर
तुम्हारी खोज में!

25 comments:

  1. तुम यहीं किन्तु कहाँ....

    बहुत खूब ... तभी तो यह तलाश जारी है....

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  2. यही तो तलाश है जो पूरी नही होती………सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  3. बहुत शानदार पोस्ट प्रस्तुत की है आपने .शायद ब्लॉग जगत में ऐसी पोस्ट पढने से ही इसकी सार्थकता साबित होती है .बधाई .

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  4. तुम यहीं किन्तु कहाँ
    अनंत की ओर अपलक
    बेसुध सा निहार रहा हूँ
    चलता जा रहा हूँ
    राह में मिलते शूलों को
    गले लगा कर
    तुम्हारी खोज में
    बहुत ही खुबसुरत रचना। आभार।

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  5. चलता जा रहा हूँ
    राह में मिलते शूलों को
    गले लगा कर
    तुम्हारी खोज में!

    और यह तलाश जारी रहती है अनंत काल तक..बहुत सुन्दर अहसासपूर्ण
    अभिव्यक्ति..

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  6. चलते जाना है की पता नहीं मंजिल किधर है !
    सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  7. पाँव मजबूती से रखे हों मन मे अटल विश्वास हो तो जरूर मंजिल तक पहुँच जाओगे। अच्छी लगी रचना। बधाई।

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  8. तुम यहीं किन्तु कहाँ
    अनंत की ओर अपलक
    बेसुध सा निहार रहा हूँ

    सुंदर भावों के साथ मन की बात बड़ी सहज तरीके से कही है...दुखों को गले लगाकर ही सुखों की कद्र पता चलती है...कुछ तलाश जल्दी खत्म हो जाती हैं और कुछ जीवन के साथ चलती रहती हैं...ईश्वर आपकी तलाश को मंजिल दे....बहुत सुंदर रचना

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  9. kavi man bas aise hi hote hai..bahut hi badhiya..

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  10. संवेदनशील मन की भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...बेहद खूबसूरत भाव ..
    स्नेह भरी शुभकामनायें.....

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  11. ये कविता पढ कर लगा कि मुझको एक बेहद प्यारा सा तोहफ़ा मिल गया । उन्नति करो |

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  12. उनका एहसास छा रहा है हर कहीं ... फिर चाहे शूल हो या कुछ और ... कहाँ रुकते हैं प्रेम करने वाले ... अच्छी रचना है ..

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  13. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार ०५.०२.२०११ को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  14. जिस दिन ये खोज पूरी हो गई समझो हमारे सफ़र का भी अंत हो गया ! यही तो ये खोज है जो ता उम्र हमे अपने पीछे दोड़ती रहती है और हम हिरन की तरफ इधर - उधर दोड़ते रहते हैं जबकि कस्तूरी तो आखिर मै उसके पास ही मिलती है ! वेसे तो सबकुछ हमारे ही पास है पर हम फिर भी उसे इधर उधर खोजते रहते है और हमारा सफ़र चलता रहता है !

    बहुत खुबसूरत रचना बधाई हो दोस्त !

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  15. मेरे समीप किन्तु अदृश्य
    ठंडी हवा के झोंके सा
    मुझको छू कर निकल जाना
    चौंकाना और चहकना
    एक अजीब सा रहस्य
    तुम्हारी इस निकटता में
    इस सन्नाटे में
    मेरे क़दमों में तुम्हारा
    हमकदम होना............

    बहुत ही सुंदर कविता !....और बहुत ही गहरे भाव !
    हार्दिक बधाई ।

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  16. सुन्दर भाव ...तलाश पूरी होगी ..

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  17. very beautifully you combine the touching thoughts .
    very nice .

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  18. इन पंक्तियों को पसंद करने के लिए आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद.

    चर्चा मंच पर लेने के लिए सत्यम जी का विशेष आभार.

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  19. निश्छल प्रेम की अद्भुत अनुभूति -
    बहुत सुंदर रचना -

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  20. bahut sundar
    http://kavyana.blogspot.com/2011/02/blog-post.html

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