वो उसको मिली
एक नन्ही कली
सड़क किनारे
कलपती हुई सी
विधाता ने दे दिया था
उसको जीवन
पर हाय! जननी का मन
द्वन्द हुआ होगा
हलचल मची होगी
कुछ पल शायद
वो भी रोयी होगी
मजबूरी थी कि
हया थी
कुछ कुदरत की भी
दया थी
पास से गुज़र रही थी
'वो'
'वो' उसकी असली जननी
जिसने मर्म समझा
उसके जीवन का
वो छुटकी चुहिया
देख रही थी
उसे टुकुर टुकुर
हाथ पैर पटक रही थी
मचल रही थी
उसकी बाहों में
समा जाने को
प्यार पाने को
और अगले ही पल
जैसे खींचता है चुम्बक
लोहे को
अनजान ममता ने
खींच लिया उसे
और दिखा दी
धूप
अपने आँचल की
छाँव तले.
और अगले ही पल
ReplyDeleteजैसे खींचता है चुम्बक
लोहे को
अनजान ममता ने
खींच लिया उसे
और दिखा दी
धूप
अपने आँचल की
छाँव तले
...sundar samvedansheel mamtamayee prastuti....
माँ की ममता का सुन्दर चित्रण सिर्फ़ जन्म देने से ही माँ नही होती।
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..ममता अपने पराये में कोई फर्क नहीं करती...
ReplyDeleteअनजान ममता ने
ReplyDeleteखींच लिया उसे
और दिखा दी
धूप
अपने आँचल की
छाँव तले.
बहुत ही अच्छा मां की ममता का चित्रण...मां केवल मां होती है...अपनी या पराई नहीं...
इनकी कविता पढ़ने पर लू में शीतल छाया की सुखद अनुभूति मिलती है।
ReplyDeleteऔर दिखा दी
ReplyDeleteधूप
अपने आँचल की
छाँव तले..
बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति !
maa aisi hoti hai
ReplyDeleteबेहद मर्मस्पर्शी और संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनात्मक वर्णन ..... ममतामयी विचारो में पगी रचना
ReplyDeleteसुंदर कविता....
ReplyDeletebahut marmik abhivyakti.
ReplyDeleteयशवंत माथुर जी सुंदर कविता और कर्ण प्रिय संगीत ने सुबह सुहानी कर दी| बधाई|
ReplyDeleteऔर अगले ही पल
ReplyDeleteजैसे खींचता है चुम्बक
लोहे को
अनजान ममता ने
खींच लिया उसे
और दिखा दी
धूप
अपने आँचल की
छाँव तले.
नवीन जी ने सही कहा कविता हृदयस्पर्शी थी ही संगीत भी किसी और दुनिया में ले गया. बहुत अच्छा लगा. बहुत बहुत आभार.
marmik .
ReplyDeleteममता का बहुत मर्मस्पर्शी चित्रण ...
ReplyDeleteखूबसूरत भावाभिव्यक्ति ...
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteमनोज कुमार जी के शब्दों में कहूँ तो... लू में शीतल छाया की सुखद अनुभूति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
और अगले ही पल
ReplyDeleteजैसे खींचता है चुम्बक
लोहे को
अनजान ममता ने
खींच लिया उसे
और दिखा दी
धूप
अपने आँचल की
छाँव तले.
bhavpoorn rachna k liye badhai
पास से गुज़र रही थी
ReplyDelete'वो'
'वो' उसकी असली जननी
जिसने मर्म समझा
उसके जीवन का
यशवंत जी
बहुत मर्मिक अभिव्यक्ति है ........
माँ की ममता का कोई विकल्प नहीं !
ReplyDeleteदिल को छूती सुन्दर अभिव्यक्ति
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteचर्चा मंच पर लेने के लिए आदरणीय मनोज जी का विशेष आभार.
मर्मस्पर्शी और संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteवसन्त की आप को हार्दिक शुभकामनायें !
कई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 04- 08 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDeleteनयी पुरानी हल चल में आज- अपना अपना आनन्द -
SAMVEDANSHEEL LEKHAN ......
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील रचना ...
ReplyDeleteमार्मिक...संवेदनाओं से परिपूर्ण रचना.
ReplyDeleteमानवीय संवेदना की सुंदर कथा.
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