पतझड़ जैसा लगता है,
और मिलन की ख़ुशी मनाते,
हम को विरहा सा लगता है
इस बसंत के मौसम में क्यों
पतझड़ जैसा लगता है
किसी डाल पर कोयल गाती,
स्वप्नों के रंगीले गीत,
हम को भी सुन सुन कुछ होता,
पर कपोत न दीखता है
इस बसंत के मौसम में क्यों
पतझड़ जैसा लगता है
दूर हुआ मनमीत मगर,
क्यूँ न यादों से हटता है,
आँखों से झर झर झर आंसू,
सागर सूखा सा लगता है
इस बसंत के मौसम में क्यों
पतझड़ जैसा लगता है.
[वैसे तो अपनी डायरी में लिखी सभी कविताओं को मैं इस ब्लॉग पर डाल चुका हूँ.13 दिसम्बर 2006 की लिखी इस कविता/गीत को भी आज यहाँ प्रस्तुत कर दिया है.]
दूर हुआ मनमीत मगर,
ReplyDeleteक्यूँ न यादों से हटता है,
आँखों से झर झर झर आंसू,
सागर सूखा सा लगता है
यही तो प्रोब्लम है यशवंत जी ! सुन्दर भाव !
यशवंत भाई, बडे बडे शहरों में ऐसी छोटी छोटी घटनाएं होती रहती हैं।
ReplyDeleteवैसे कविता बहुत सुंदर बन पडी है। बधाई।
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समाधि द्वारा सिद्ध ज्ञान।
प्रकृति की सूक्ष्म हलचलों के विशेषज्ञ पशु-पक्षी।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (10/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
दूर हुआ मनमीत मगर,
ReplyDeleteक्यूँ न यादों से हटता है,
आँखों से जहर झर झर झर आंसू,
सागर सूखा सा लगता है
बहुत सुंदर भावों के साथ दिल से लिखी गई रचना....
बहुत सुंदर..... मन के गहन भावों की अभिव्यक्ति....
ReplyDeletebahut sundar bhavabhivyakti.
ReplyDeleteदूर हुआ मनमीत मगर,
ReplyDeleteक्यूँ न यादों से हटता है,
इसका इलाज़ सिर्फ दूरियों के नज़दीकियाँ बन जाने में है !
अच्छी रचना, बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ
bahut sundar bhavabhivyakti..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteबसंत के मौसम में क्यों
ReplyDeleteपतझड सा लगता है ...
बहुत सुन्दर भाव ...
पर इस पतझड के मौसम से
खिलेगा इक अंकुर नया
चिंता मत कीजिये
ReplyDeleteफ़िर से वो दिन आयेंगें
और बसंत को बसंत जैसा ही बनायेंगें...
सुन्दर रचना...
वाह ... बहुत सुन्दर मन को भावुक कर दिया आभार / शुभ कामनाएं
ReplyDeleteकिसी डाल पर कोयल गाती,
ReplyDeleteस्वप्नों के रंगीले गीत,
हम को भी सुन सुन कुछ होता,
पर कपोत न दीखता है //
real basant....has gone out
किसी डाल पर कोयल गाती,
ReplyDeleteस्वप्नों के रंगीले गीत,
हम को भी सुन सुन कुछ होता,
पर कपोत न दीखता है ....
आपकी कविता में भावों की गहनता व प्रवाह के साथ भाषा का सौन्दर्य भी अपनी दिव्य रूप में उपस्थित है !