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20 February 2011

मै,तुम और हम

जो मैं हूँ
वो तुम नहीं हो सकते
जो तुम हो
वो हम नहीं हो सकते
फिर भी पड़ते है सभी
मैं तुम और हम की लड़ाई में
आखिर क्या रखा है
इस दुश्मनी की खाई में?

आओ थाम लें हाथ
और बढ़ चलें एक राह पर
जिस राह पर साहिल
  देख कर मुस्कुरा रहा है .

13 comments:

  1. वाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  2. मैं, तुम, और हम!
    वाह! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  3. माथुर सहब बहुत अच्छा संदेश एक अच्छी कविता के माध्यम से !

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  4. बहुत अच्छा संदेश !!

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  5. आखिर क्या रखा है
    इस दुश्मनी की खाई में?
    बहुत ही खूबसूरत रचना...
    बधाई

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  6. मैं तुम जब हम दिखने लगे कैसी दुश्मनी ?
    अच्च्ही प्रस्तुति !

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  7. bilkul sahi kaha koi bhi kisi ke jaisa nahi hota .bhagvan ne sabko alag-alag vyaktitv pradan kiya hai .

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  8. वाह! बहुत सुन्दर

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  9. बहुत अच्छी कविता।

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  10. अच्छा संदेश यशवंत भाई

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