आना चाहती थी वो
तुम्हारे जीवन में
तुम्हारा अक्स बनके
बिखेरने को खुशियाँ
कि उसकी हर अदा पे
मुस्कुराहटें तुमको भी मिलती
जीती वो भी कुछ पल
सौगातें उसको भी मिलतीं
आना पायी वो
देख न पायी इस जहान को
क्यों छीन लिया तुमने
आने वाली उस सांस को
हो तुम कुसूरवार
सब कहेंगे मगर
अरे ये तो बात दो
उसकी खता क्या थी?
(न तो मैं इसे शायरी कह सकता हूँ न कविता और न ही मैं उर्दू भाषा जानता हूँ बस इन पंक्तियों के माध्यम से स्त्री भ्रूण हत्या को रोकने का एक आह्वान करने का प्रयास मात्र किया है)
इस सार्थक कविता के लिए आपको सलाम करने का जी चाहता है।
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ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
उसकी यही खता थी कि वो कन्या थी, अच्छी प्रस्तुति !
ReplyDeleteये शायरी या कविता से भी ज्यादा हैं और बहुत ही मर्मस्पर्शी हैं ।
ReplyDeleteउसकी यही खता थी कि वो कन्या थी| मर्मस्पर्शी कविता......
ReplyDeleteहो तुम कुसूरवार
ReplyDeleteसब कहेंगे मगर
अरे ये तो बात दो
उसकी खता क्या थी?
बहुत मर्मस्पर्शी रचना..
उसकी कोई खता नही थी। हमने अपनी खता की सजा उसे दी है। मर्मस्पर्शी रचना। बेहद ही सुंदर।
ReplyDeleteसुंदर मार्मिक भाव लिए ..... प्रभावी रचना
ReplyDeleteबढ़िया संदेश !
ReplyDeleteसभी से सवाल पूछती रचना...
ReplyDeleteदिल को छूने वाली...
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत सार्थक प्रस्तुति .yah aaj bahut jaroori hai ki kanya bhrun-hatya ko roka jaye .
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी हैं ।
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति....!!
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