सूरज से मैंने कहा
कल थोड़ी देर से आना
कुछ देर ठहर कर मुझ से
आज थोड़ी और बात कर लो
चाँद भी कुछ देर कर लेगा
विश्राम तुम्हारे जाने तक
कुछ देर रह लेगा वो भी
कल तुम्हारे आने तक
बोला सूरज मुझ से कि
मैं इंसान नहीं हूँ
घडी की सुइयों में जो हेर फेर करके
कभी सोता है और कभी जागता है
है निश्चित मेरी गति
समय आने और जाने का
है नहीं कोई अवसर
कुछ कहने और बहाने का
है नहीं विश्राम मुझ को
निरंतर चलता रहता हूँ
कहीं उगता हूँ
कहीं डूबकर चल देता हूँ
आते हैं बादल,कोहरे
और अँधेरे मेरी राह में
स्थिर रहकर तुम को
मैं रौशनी देता रहता हूँ
जाने दो ऐ दोस्त!कि
अब वक़्त हो चला है
किसी छोर पर भोर
कर रही होगी इन्तजार मेरा.
sundar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (26.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
अच्छी सीख दी है आपने इस रचना के द्वारा। आभार।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना..बहुत सार्थक सोच
ReplyDeleteहै नहीं विश्राम मुझ को
ReplyDeleteनिरंतर चलता रहता हूँ
कहीं उगता हूँ
कहीं डूबकर चल देता हूँ
बेहतरीन ...सुंदर रचना
सारगर्भित और सुंदर रचना , शुभकामनायें
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है भई आपने.
ReplyDeleteसूरज के अहसान अनगिनत हैं और उनमें नियमितता और निरंतरता की सीख भी है ...बहुत अच्छा लगा सूरज से ये वार्तालाप !
ReplyDeleteअच्छा लिखा है
ReplyDeleteबधाई
सूरज मानव नहीं है , उसका अनुशासनबद्ध होना जरुरी भी तो है !
ReplyDeleteबोला सूरज मुझ से कि
ReplyDeleteमैं इंसान नहीं हूँ
घडी की सुइयों में जो हेर फेर करके
कभी सोता है और कभी जागता है
सार्थक सन्देश दिया इस रचना दुआरा। शुभकामनायें।
जाने दो ऐ दोस्त!कि
ReplyDeleteअब वक़्त हो चला है
किसी छोर पर भोर
कर रही होगी इन्तजार मेरा.....
बहुत खूब ......सुंदर कविता !
जाने दो ऐ दोस्त!कि
ReplyDeleteअब वक़्त हो चला है
किसी छोर पर भोर
कर रही होगी इन्तजार मेरा.
लाजबाब पंक्तियाँ यशवंत जी !
बहुत सार्थक सोच बहुत खूब ......सुंदर कविता !
ReplyDeleteजाने दो ए दोस्त कि अब वक़्त हो चला -बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबोला सूरज मुझ से कि
ReplyDeleteमैं इंसान नहीं हूँ
घडी की सुइयों में जो हेर फेर करके
कभी सोता है और कभी जागता है
baap re suraj ne bhi manushya kee hansi udaa di
बेहतरीन रचना । बधाई । शुभकामनायें ।
ReplyDeleteमैं इंसान नहीं हूँ
ReplyDeleteघडी की सुइयों में जो हेर फेर करके
कभी सोता है और कभी जागता है .....
वाह..क्या खूब लिखा है आपने।
जाने दो ऐ दोस्त!कि
ReplyDeleteअब वक़्त हो चला है
किसी छोर पर भोर
कर रही होगी इन्तजार मेरा.
behad achchi.
"आते हैं बादल,कोहरे
ReplyDeleteऔर अँधेरे मेरी राह में
स्थिर रहकर तुम को
मैं रौशनी देता रहता हूँ "
ओरों के लिए जियें इस ओर इशारा कर रही है आपकी ये पंक्तियाँ |
बहुत सुन्दर रचना है ..
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteचर्चा मंच पर लेने के लिए सत्यम जी का विशेष आभार.