न राग फाग के रहे
न कहकहे रहे यहाँ
थक के चूर सो गए
उमंग का समय कहाँ ?
उमंग का समय कहाँ
कि भाग भाग जी रहे
पीके भांग झूमते
नौजवान हैं कहाँ ?
बे सुरे राग हैं
कि काग भी अब सोचते
बौरा गए आम हैं
पर कूक खो गयी कहाँ?
न कहकहे रहे यहाँ
थक के चूर सो गए
उमंग का समय कहाँ ?
उमंग का समय कहाँ
कि भाग भाग जी रहे
पीके भांग झूमते
नौजवान हैं कहाँ ?
बे सुरे राग हैं
कि काग भी अब सोचते
बौरा गए आम हैं
पर कूक खो गयी कहाँ?
......सत्य है
ReplyDeleteकाफी सुंदर तरीके से अपनी भावनाओं को अभिवयक्त किया है
वास्तव में आज तो त्यौहार बस नाम के रह गए हैं !
ReplyDeleteवो मौज -मस्ती ,वो मिलने-मिलाने के ज़माने जैसे लद गए !
कविता में आपने यथार्थ को उकेरने की सार्थक कोशिश की है !
आभार और शुक्रिया !
बहुत सच कहा है...आज त्योहारों में वह उमंग कहाँ है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteन राग फाग के रहे
ReplyDeleteन कहकहे रहे यहाँ
थक के चूर सो गए
उमंग का समय कहाँ ?such me ab samaye kaha hai kisi ke pas...
उमंग का समय कहाँ
ReplyDeleteकि भाग भाग जी रहे
पीके भांग झूमते
नौजवान हैं कहाँ
aaj ka sach yahi hai.sarthak rachna hetu badhai.
उमंग का समय कहाँ
ReplyDeleteकि भाग भाग जी रहे
पीके भांग झूमते
नौजवान हैं कहाँ
बहुत सच कहा......बहुत सुन्दर
उमंग का समय कहाँ
ReplyDeleteकि भाग भाग जी रहे ....
गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ...
बेहद उम्दा प्रस्तुति सच बयां करती हुयी।
ReplyDeleteउमंग का समय कहाँ
ReplyDeleteकि भाग भाग जी रहे .
बहुत खूब, बहुत खूब.
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeletenice expression ,keep it up.....
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