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21 March 2011

हैं कहाँ ?

न राग फाग के रहे
न कहकहे रहे यहाँ
थक के चूर  सो गए
उमंग का समय कहाँ ?

उमंग का समय कहाँ
कि भाग भाग जी रहे
पीके भांग झूमते
नौजवान हैं कहाँ ?

बे सुरे राग हैं
कि काग भी अब सोचते
बौरा गए आम हैं
पर कूक खो गयी कहाँ?

11 comments:

  1. ......सत्य है
    काफी सुंदर तरीके से अपनी भावनाओं को अभिवयक्त किया है

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  2. वास्तव में आज तो त्यौहार बस नाम के रह गए हैं !
    वो मौज -मस्ती ,वो मिलने-मिलाने के ज़माने जैसे लद गए !
    कविता में आपने यथार्थ को उकेरने की सार्थक कोशिश की है !
    आभार और शुक्रिया !

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  3. बहुत सच कहा है...आज त्योहारों में वह उमंग कहाँ है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  4. न राग फाग के रहे
    न कहकहे रहे यहाँ
    थक के चूर सो गए
    उमंग का समय कहाँ ?such me ab samaye kaha hai kisi ke pas...

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  5. उमंग का समय कहाँ
    कि भाग भाग जी रहे
    पीके भांग झूमते
    नौजवान हैं कहाँ
    aaj ka sach yahi hai.sarthak rachna hetu badhai.

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  6. उमंग का समय कहाँ
    कि भाग भाग जी रहे
    पीके भांग झूमते
    नौजवान हैं कहाँ

    बहुत सच कहा......बहुत सुन्दर

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  7. उमंग का समय कहाँ
    कि भाग भाग जी रहे ....

    गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ...

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  8. बेहद उम्दा प्रस्तुति सच बयां करती हुयी।

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  9. उमंग का समय कहाँ
    कि भाग भाग जी रहे .

    बहुत खूब, बहुत खूब.

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  10. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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