23 March 2011

आज की सोच

वो बीती बात हो गए
वक़्त की स्याही में डूब कर
क्यों उनको याद कर के
दो फूल चढा दूं ?

इतिहास की किताबों में
झेलता हूँ
रटता हूँ
कोई फ़िल्मी गाना नहीं
कि हर पल गुनगुना लूँ .

वो कल के पागल थे
जो मेरा आज संवार गए
ये कोई कर्ज नहीं
कि उनका ब्याज उतारूँ.

है अपनी ही धुन मेरी
अपना जहान है मेरा
क्यों धूल पोछ कर मूरत की
गले में हार डालूं? 


(आज ही के दिन 23 मार्च 1931  को भगत सिंह,सुख देव और राज गुरु ने देश के लिए खुद को न्योछावर कर दिया था.आज का युवा वर्ग बस अपनी ही मस्ती में मस्त है शहीदों की कुर्बानी तो दूर उनके नाम तक ठीक से नहीं पता .बस इस कविता में आज के युवा की सोच दर्शाने का प्रयास मात्र किया है )

20 comments:

  1. कितने ऐसे लोग हैं जिन्हें आज के दिन के बारे में कुछ भी पता नहीं...
    ये बेहद शर्मनाक बात है..

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  2. कल के पागल थे
    जो मेरा आज संवार गए
    ये कोई कर्ज नहीं
    कि उनका ब्याज उतारूँ.
    dil ko chhoo lene vali panktiya .shaheedon ko ham aise hi ''pagal'' ka darja dete hain .

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  3. गहन भावों को प्रकट करती आपकी प्रस्तुति सराहनिए है . ''ये ब्लॉग अच्छा लगाhttp://yeblogachchhalaga.blogspot.com ''में शामिल होकर उत्साहवर्धन करें .धन्यवाद .

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  4. वीर शहीदों को शत शत नमन

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  5. वो बीती बात हो गए
    वक़्त की स्याही में डूब कर
    क्यों उनको याद कर के
    दो फूल चढा दूं ?

    बेहतरीन शब्‍द रचना ।

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  6. वो बीती बात हो गए
    वक़्त की स्याही में डूब कर
    क्यों उनको याद कर के
    दो फूल चढा दूं ?bhut hi bhaavpur sardhanjali di hai apne veer sahido ko...

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  7. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (24-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  8. वो कल के पागल थे
    जो मेरा आज संवार गए
    ये कोई कर्ज नहीं
    कि उनका ब्याज उतारूँ.

    मन के गहन आक्रोश को बहुत सटीकता से व्यक्त किया है..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  9. वो कल के पागल थे
    जो मेरा आज संवार गए
    ये कोई कर्ज नहीं
    कि उनका ब्याज उतारूँ.....

    यह कृतघ्नता ही तो देश की सुख-शांति को डुबाए हुए है....
    गहन चिन्तनयुक्त विचारणीय रचना.

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  10. है अपनी ही धुन मेरी
    अपना जहान है मेरा
    क्यों धूल पोछ कर मूरत की
    गले में हार डालूं?
    विचारणीय रचना.

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  11. वाह यशवंत, बहुत सुन्दर कविता ! हमें अपना अतीत नहीं भूलना चाहिए ... जिस पेड़ का जड़ नहीं है वो टिकता नहीं है ...

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  12. इतिहास की किताबों में
    झेलता हूँ
    रटता हूँ
    कोई फ़िल्मी गाना नहीं
    कि हर पल गुनगुना लूँ .
    bahut badhiyaa

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  13. शहीदो की चिताओ लगेंगे हर बरस मेले
    वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशा होगा

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  14. आज के युवा की सोच दर्शाने का प्रयास bahut achchi tarah se kiye hain......bilkul sach hai yah.

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  15. बहुत सुंदर ... पंक्तियाँ

    नमन इन वीर देशभक्तों को....

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  16. सुंदर कविता यशवंत भैया .... वीर शहीदों को शत शत नमन

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  17. सुन्दर कटाक्ष.
    THOSE WHO FORGET HISTORY ARE CONDEMNED TO REPEAT IT.
    SHAHEEDON KO NAMAN.

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  18. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
    @ वंदना जी....चर्चा मंच पर लेने के लिए आपका विशेष आभार.

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