विचारों का समुद्र
कुछ शांत सा है
अपनी ही धुन में
लहरें आ रही हैं
जा रही हैं
सुन रहा हूँ
उठने गिरने की
चलने फिरने की
कुछ आवाजें
मगर शोर नहीं
है अजीब सी शान्ति
मुझे जिसकी आदत नहीं
पता नहीं
ये राहत है
या संकेत
किसी ज्वार भाटे के
आने का !
कुछ शांत सा है
अपनी ही धुन में
लहरें आ रही हैं
जा रही हैं
सुन रहा हूँ
उठने गिरने की
चलने फिरने की
कुछ आवाजें
मगर शोर नहीं
है अजीब सी शान्ति
मुझे जिसकी आदत नहीं
पता नहीं
ये राहत है
या संकेत
किसी ज्वार भाटे के
आने का !
ये राहत है
ReplyDeleteया संकेत
किसी ज्वार भाटे के
आने का !
बहुत व्यथित मन का आपने बहुत सुन्दर varnan किया है .
शांत विचार में .....अछे भाव आने की कामना है
ReplyDeleteवाह...बेहतरीन कविता...तूफ़ान से पहले की शांति पर शंशय...
ReplyDeleteनीरज
ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
ReplyDeletehar khamoshi khub me bhut kuch chupaye hoti hai...khamoshi aur vicharo ka bhut hi sunder varan kiya hai apne....
ReplyDeletekisi bhi rachna se purv sannata hota hai
ReplyDeleteबेहतरीन...मन को छू जाते अहसास...
ReplyDeleteआपकी रचनाएँ सहज होते हुए भी सुन्दर होते हैं ... बहुत खूब !
ReplyDeleteसुन रहा हूँ
ReplyDeleteउठने गिरने की
चलने फिरने की
कुछ आवाजें
मगर शोर नहीं
है अजीब सी शान्ति
मुझे जिसकी आदत नहीं......
संवेदना से भरी मार्मिक रचना....
हार्दिक बधाई...
ये सब सामान्य लक्षण है, हकीकतन रोग वही है।
ReplyDeleteआपकी रचनाएँ सहज होते हुए भी सुन्दर होते हैं|धन्यवाद|
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteनये बिंब से सजी रचना
बहुत बहुत शुभकामनाये
ये राहत है
ReplyDeleteया संकेत
किसी ज्वार भाटे के
आने का !
बहुत खूब.....
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteतूफ़ान से पहले की शांति भी डराती है…………बेहद उम्दा ।
ReplyDeleteबेहतरीन भाव ......
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