फुटपाथों पर जो रहगुज़र किया करते हैं
सड़कों पर जो घिसट घिसट कर चला करते हैं
हाथ फैलाकर जो मांगते हैं दो कौर जिंदगी के
सूखी छातियों से चिपट कर जो दूध पीया करते हैं
ईंट ईंट जोड़कर जो बनाते हैं महलों को
पत्थर घिस घिस कर खुद को घिसा करते हैं
तन ढकने को जिनको चीथड़े भी नसीब नहीं
कूड़े के ढेरों में जो खुद को ढूँढा करते हैं
वो क्या जानें क्या दीन क्या ईमान होता है
उनकी नज़रों में तो भगवान भी बेईमान होता है
ये जलवे हैं जिंदगी के ,जलजले कहीं तो हैं
जो इनमे भी जीते हैं, मूर्ख ही तो हैं.
ये जलवे हैं जिंदगी के ,जलजले कहीं तो हैं
ReplyDeleteजो इनमे भी जीते हैं, मूर्ख ही तो हैं......
वर्तमान का यथार्थ है आपकी कविता में......
बहुत ही गहरे भाव है...
हार्दिक बधाई।
bahut hi achhi rachna
ReplyDeleteयर्थात से रूबरू कराती रचना
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
बेहद गहन और सशक्त अभिव्यक्ति।
ReplyDelete"वो क्या जानें क्या दीन क्या ईमान होता है
ReplyDeleteउनकी नज़रों में तो भगवान भी बेईमान होता है"
ये पंक्तियाँ वर्तमान की सब से बड़ी सच्चाई है ...
रचना बेहद खूब लिखी है
नंगे यथार्थ का सशक्त चित्रण ....
ReplyDeleteकल "शनिवासरीय चर्चा" में आपके ब्लाग की "स्पेशल काव्यमयी चर्चा" की जा रही है...आप आये और अपने सुंदर पोस्टों की सुंदर काव्यमयी चर्चा देखे और अपने सुझावों से अवगत कराये......at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDelete(02.04.2011)
अभिव्यक्ति और भी प्रभावी रूप से संवर कर सशक्त हो कर आयी है ...
ReplyDeleteशुभकामनायें !
बहुत ही सच्ची बात कही है आपने यही आज की सबसे बड़ी सच्चाई है...शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...सच कहा
ReplyDeletethe day these fools regain sense,it shall be big trouble for so called intelligents.
ReplyDeleteयर्थात रचना
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
शुभकामनाएं
उनकी नज़रों में तो भगवान भी बेईमान होता है
ReplyDeleteअच्छा चित्रण किया है ।
कडवे यथार्थ को इंगित करती रचना
ReplyDeleteफुटपाथों पर जो रहगुज़र किया करते हैं
ReplyDeleteसड़कों पर जो घिसट घिसट कर चला करते हैं
यथार्थ का सुन्दर वैचारिक प्रस्तुतिकरण...
Congrats on INDIAS CRICKET WORLD CUP VICTORY.
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteचर्चा मंच की काव्य चर्चा के योग्य समझने हेतु सत्यम जी का विशेष आभार!
Bhagvan bhi beiman hota hai...sahi kaha..sundar rachana
ReplyDeletebahut badhiya...
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