24 April 2011

भ्रम की परतें उधड़ रही हैं

भ्रम की परतों को 
देख रहा हूँ 
एक एक कर उधड़ते हुए 

बहुत गहरे दबा हुआ 
कुचला हुआ 
सड़ा-गला सच
बेचैन है 
बाहर आने को

दूर से ही दिख रहे हैं 
छिन्न भिन्न हो चुके 
अस्थि पंजर 
ऐसा लग रहा है 
मानो निर्ममता पूर्वक 
मारा गया हो 
और फिर मन की 
मिटटी खोद खोद कर 
उसे दबा दिया गया हो 
किसी कोने में

एक भूकंप सा चल रहा है 

भ्रम की बुनियाद पर 
टिका हुआ महल 
खंड खंड हो रहा है

उधड़ती परतों के साथ 
सच का कंकाल 
बाहर आते ही 
शायद जी उठेगा 
फिर से.

________________________________________________________
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33 comments:

  1. @यशवन्त-बहुत ही विचलित मन:स्थिति में ये लिखा है आपने ....लिखा तो हमेशा की तरह अच्छा है ,पर किसी की टिप्पणी से
    ऐसा व्यथित नहीं होना चाहिये क्योंकि लोगोंका काम ही है कुछ भी कहना ...खुद में विश्वास बना रहना चाहिये ...शुभकामनायें !

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  2. बहुत अच्छा लिखा आपने
    मेरी नई पोस्ट देखें
    मिलिए हमारी गली के गधे से

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  3. बढिया कविता

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  4. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (25-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  5. एक भूकंप सा चल रहा है
    भ्रम की बुनियाद पर
    टिका हुआ महल
    खंड खंड हो रहा
    बहुत सुन्दर v gahan भावों से भरी कविता.

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  6. बस यही....लाजवाब...लाजवाब...और लाजवाब

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  7. अति सुन्दर रचना। आभार।

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  8. बहुत सुन्दर भावों से भरी कविता.

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  9. भ्रम की परतों को
    देख रहा हूँ
    एक एक कर उधड़ते हुए ...

    आंतरिक पीड़ा की सहज अभिव्यक्ति...
    शुभकामनायें !

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  10. भ्रम की परतों को
    देख रहा हूँ
    एक एक कर उधड़ते हुए

    सार्थक रचना....बधाई...

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  11. उधड़ती परतों के साथ
    सच का कंकाल
    बाहर आते ही
    शायद जी उठेगा
    फिर से.

    लाजबाब रचना. मन को झकझोर देने वाली प्रस्तुति. बहुत बधाई.

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  12. उधड़ती परतों के साथ
    सच का कंकाल
    बाहर आते ही
    शायद जी उठेगा
    फिर से........

    गहन अभिव्यक्ति....

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  13. भ्रम की बुनियाद आखिर कब तक टिकती ...
    सच के कंकाल को तो जीवित होना ही होता है ...कुछ देर सही !
    बेहतरीन !

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  14. ....लाजवाब
    शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।

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  15. उधड़ती परतों के साथ
    सच का कंकाल
    बाहर आते ही
    शायद जी उठेगा
    फिर से........

    गहन अभिव्यक्ति.... मन की गहरी पीड़ा को दर्शाती भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचना....

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  16. उधड़ती परतों के साथ
    सच का कंकाल
    बाहर आते ही
    शायद जी उठेगा
    फिर से.

    अद्भुत .....

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  17. बहुत बढ़िया लिखा आपने । भ्रम की उधड़ती परतें ।

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  18. उधड़ती परतों के साथ
    सच का कंकाल
    बाहर आते ही
    शायद जी उठेगा
    फिर से.

    लाज़वाब अहसास..बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति..

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  19. bhram ka jaal jab ughadne lagta hai to aisa hi hota hai. sunder abhivyakti.

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  20. किसी दर्द से विचलित होकर लिखी गई भावनात्मक रचना |

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  21. दूर से ही दिख रहे हैं
    छिन्न भिन्न हो चुके
    अस्थि पंजर
    ऐसा लग रहा है
    मानो निर्ममता पूर्वक
    मारा गया हो
    और फिर मन की
    मिटटी खोद खोद कर
    उसे दबा दिया गया हो
    किसी कोने में

    रचना बढ़िया है ... सच को इसी तरह दबाया-कुचला जाता है ... खैर, फिर भी अपने राह में अविचल रहना चाहिए ... मंजील तो मिलेगी ही

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  22. आपने तो बड़ा सुन्दर कविता लिखी...बधाई.
    ________________________
    'पाखी की दुनिया' में 'पाखी बनी क्लास-मानीटर' !!

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  23. कवि का काम ही है सत्य को उघाड़ना, इस प्रयास में पीड़ा भी हाथ लगती है तो कभी कमल भी, आपकी कविता मन की परतों को खोलती उस अंतिम बिंदु तक ले जाती है जहाँ से और आगे नहीं जाया जा सकता सार्थक प्रयास !

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  24. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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  25. बहुत ही सुंदर भावों के ताने बाने में पिरोयी गयी आपकी रचना मन के संवेदनशील तारों को झंकृत कर गयी।मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  26. पर वह सच, भ्रम से कंही अधिक खूबसूरत और शाश्वत होगा ।

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  27. उधड़ती परतों के साथ
    सच का कंकाल
    बाहर आते ही
    शायद जी उठेगा
    फिर से.

    ....Ek sach ko sarthak shabdon men abhivyakt kiya..badhai.

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  28. भ्रम की परतों को
    देख रहा हूँ
    एक एक कर उधड़ते हुए ...

    बहुत गहन सोच

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  29. yashvant ji,
    bhrm ki buniyad par tike huye
    mahal kabhi n kabhi khand khand hona hi hai ....
    achhi rachna....niyamit tippani ka shukriya....

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  30. उधड़ती परतों के साथ
    सच का कंकाल
    बाहर आते ही
    शायद जी उठेगा
    फिर से........

    गहन अभिव्यक्ति.... मन की गहरी पीड़ा को दर्शाती भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचना..
    मेरी ओर से आपको हार्दिक शुभ कामनाएं

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  31. एक भूकंप सा चल रहा है

    भ्रम की बुनियाद पर
    टिका हुआ महल
    खंड खंड हो रहा है

    बढ़िया रचना है .

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