भ्रम की परतों को
देख रहा हूँ
एक एक कर उधड़ते हुए
बहुत गहरे दबा हुआ
कुचला हुआ
सड़ा-गला सच
बेचैन है
बाहर आने कोदूर से ही दिख रहे हैं
छिन्न भिन्न हो चुके
अस्थि पंजर
ऐसा लग रहा है
मानो निर्ममता पूर्वक
मारा गया हो
और फिर मन की
मिटटी खोद खोद कर
उसे दबा दिया गया हो
किसी कोने में
एक भूकंप सा चल रहा है
भ्रम की बुनियाद पर
टिका हुआ महल
खंड खंड हो रहा है
उधड़ती परतों के साथ
सच का कंकाल
बाहर आते ही
शायद जी उठेगा
फिर से.
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[कुछ पोस्ट्स पर असंगत टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर अब मोडरेशन सक्षम है.
अतः यदि आपकी टिप्पणी कुछ विलम्ब से प्रकाशित हो तो उसके लिये अग्रिम खेद है. ]
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@यशवन्त-बहुत ही विचलित मन:स्थिति में ये लिखा है आपने ....लिखा तो हमेशा की तरह अच्छा है ,पर किसी की टिप्पणी से
ReplyDeleteऐसा व्यथित नहीं होना चाहिये क्योंकि लोगोंका काम ही है कुछ भी कहना ...खुद में विश्वास बना रहना चाहिये ...शुभकामनायें !
बहुत अच्छा लिखा आपने
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट देखें
मिलिए हमारी गली के गधे से
बढिया कविता
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
एक भूकंप सा चल रहा है
ReplyDeleteभ्रम की बुनियाद पर
टिका हुआ महल
खंड खंड हो रहा
बहुत सुन्दर v gahan भावों से भरी कविता.
बस यही....लाजवाब...लाजवाब...और लाजवाब
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना। आभार।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावों से भरी कविता.
ReplyDeleteभ्रम की परतों को
ReplyDeleteदेख रहा हूँ
एक एक कर उधड़ते हुए ...
आंतरिक पीड़ा की सहज अभिव्यक्ति...
शुभकामनायें !
भ्रम की परतों को
ReplyDeleteदेख रहा हूँ
एक एक कर उधड़ते हुए
सार्थक रचना....बधाई...
उधड़ती परतों के साथ
ReplyDeleteसच का कंकाल
बाहर आते ही
शायद जी उठेगा
फिर से.
लाजबाब रचना. मन को झकझोर देने वाली प्रस्तुति. बहुत बधाई.
उधड़ती परतों के साथ
ReplyDeleteसच का कंकाल
बाहर आते ही
शायद जी उठेगा
फिर से........
गहन अभिव्यक्ति....
भ्रम की बुनियाद आखिर कब तक टिकती ...
ReplyDeleteसच के कंकाल को तो जीवित होना ही होता है ...कुछ देर सही !
बेहतरीन !
....लाजवाब
ReplyDeleteशब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।
उधड़ती परतों के साथ
ReplyDeleteसच का कंकाल
बाहर आते ही
शायद जी उठेगा
फिर से........
गहन अभिव्यक्ति.... मन की गहरी पीड़ा को दर्शाती भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचना....
उधड़ती परतों के साथ
ReplyDeleteसच का कंकाल
बाहर आते ही
शायद जी उठेगा
फिर से.
अद्भुत .....
बहुत बढ़िया लिखा आपने । भ्रम की उधड़ती परतें ।
ReplyDeleteउधड़ती परतों के साथ
ReplyDeleteसच का कंकाल
बाहर आते ही
शायद जी उठेगा
फिर से.
लाज़वाब अहसास..बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति..
bhram ka jaal jab ughadne lagta hai to aisa hi hota hai. sunder abhivyakti.
ReplyDeleteकिसी दर्द से विचलित होकर लिखी गई भावनात्मक रचना |
ReplyDeleteदूर से ही दिख रहे हैं
ReplyDeleteछिन्न भिन्न हो चुके
अस्थि पंजर
ऐसा लग रहा है
मानो निर्ममता पूर्वक
मारा गया हो
और फिर मन की
मिटटी खोद खोद कर
उसे दबा दिया गया हो
किसी कोने में
रचना बढ़िया है ... सच को इसी तरह दबाया-कुचला जाता है ... खैर, फिर भी अपने राह में अविचल रहना चाहिए ... मंजील तो मिलेगी ही
आपने तो बड़ा सुन्दर कविता लिखी...बधाई.
ReplyDelete________________________
'पाखी की दुनिया' में 'पाखी बनी क्लास-मानीटर' !!
bahut sunder rachnaa.badhai
ReplyDeleteकवि का काम ही है सत्य को उघाड़ना, इस प्रयास में पीड़ा भी हाथ लगती है तो कभी कमल भी, आपकी कविता मन की परतों को खोलती उस अंतिम बिंदु तक ले जाती है जहाँ से और आगे नहीं जाया जा सकता सार्थक प्रयास !
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeletebhut saarthak rachna hai...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावों के ताने बाने में पिरोयी गयी आपकी रचना मन के संवेदनशील तारों को झंकृत कर गयी।मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteपर वह सच, भ्रम से कंही अधिक खूबसूरत और शाश्वत होगा ।
ReplyDeleteउधड़ती परतों के साथ
ReplyDeleteसच का कंकाल
बाहर आते ही
शायद जी उठेगा
फिर से.
....Ek sach ko sarthak shabdon men abhivyakt kiya..badhai.
भ्रम की परतों को
ReplyDeleteदेख रहा हूँ
एक एक कर उधड़ते हुए ...
बहुत गहन सोच
yashvant ji,
ReplyDeletebhrm ki buniyad par tike huye
mahal kabhi n kabhi khand khand hona hi hai ....
achhi rachna....niyamit tippani ka shukriya....
उधड़ती परतों के साथ
ReplyDeleteसच का कंकाल
बाहर आते ही
शायद जी उठेगा
फिर से........
गहन अभिव्यक्ति.... मन की गहरी पीड़ा को दर्शाती भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचना..
मेरी ओर से आपको हार्दिक शुभ कामनाएं
एक भूकंप सा चल रहा है
ReplyDeleteभ्रम की बुनियाद पर
टिका हुआ महल
खंड खंड हो रहा है
बढ़िया रचना है .