आज मजदूर दिवस है और इस अवसर पर मैं इस ब्लॉग पर पहले भी प्रकाशित हो चुकी इस कविता को पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ जो महाकवि निराला जी की 'वह तोडती पत्थर' शीर्षक कविता से प्रेरित है जिसे मूल रूप से मैंने हाईस्कूल के दौरान वर्ष 2000 में लिखा था-
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पत्थर तोडती
'निराला' की नारी
अक्सर दिखती है
सड़क के किनारों पर
तपती दुपहरी में
कंपकपाती सर्द लहरों में
वर्षा ऋतु की
अलसाती धुप में
क्रूर कुटिल भेड़ियों की
परवाह किये बगैर
उस के अश्रुओं और
स्वेद की बूँदें
चोट करती हैं
काले पथरीले दिलों पर
और वो
मुस्कुराती है
समाज के सीने पर
उभर आई
खरोचों को देख कर
उस की किस्मत में जो था
वो झेल रही है
न जाने कब से
सदियों से
या,बरसों से
यूँ ही खुले आसमाँ के तले
फुटपाथों पर
अक्सर खेलती है
मौत से
मत कहो उसे
अबला या बेचारी
'निराली ' है 'निराला' से
'निराला' की नारी.
[कुछ पोस्ट्स पर असंगत टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर अब मोडरेशन सक्षम है. अतः यदि आपकी टिप्पणी कुछ विलम्ब से प्रकाशित हो तो उसके लिये अग्रिम खेद है.]
मजदूर दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteआपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है।
सार्थक रचना....
bahut sundar rachna..
ReplyDeleteमानों कह रही हो कर्म ही जीवन है !
ReplyDeleteमाथुर जी, सुंदर भाव ........
अच्छी रचना !
बहुत सुंदर रचना जीवन की सच्चाई .....
ReplyDeleteबहुत सार्थक सत्य...बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबेहतरीन रचना!
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (2-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
सुंदर रचना...
ReplyDeleteएक मजदूर औरत के संघर्ष को सही दर्शाया है कविता मे ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रयास ।
निराला की नारी का चित्रण आपके शब्दों के स्पर्श में उतने ही मुखर हैं
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी और सार्थक रचना....
ReplyDeleteमौत से
ReplyDeleteमत कहो उसे
अबला या बेचारी
'निराली ' है 'निराला' से
'निराला' की नारी
marmik abhivyakti .
इतने छोटे होते हुए आपने इतनी गंभीर कविता लिखी है वास्तव में प्रशंसा के योग्य है.मजदूर दिवस तो एक औपचारिकता है इनका तो रोज़ ही एक सा दिन होता है वही जो आपने व्यक्त किया है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनाओं से ओतप्रोत निरालाजी को श्रद्दांजलि देती हुई मई दिवस को सार्थक करती रचना !
ReplyDeleteमौत से
ReplyDeleteमत कहो उसे
अबला या बेचारी
'निराली ' है 'निराला' से
'निराला' की नारी.
bahut khoob...sundar rachna
bahut marmsparshi...........
ReplyDeleteआपकी लेखनी दिन व दिन निखरती जा रही है ... शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना .....शुभकामनायें आपको !!
ReplyDeleteसार्थक रचना .....अर्थपूर्ण भाव
ReplyDeletenicely observed!
ReplyDeletebahut sunder rachna yashwant bhai
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
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