बस यूँ ही कभी
खामोश रह कर
बेचैन सन्नाटों में
तलाश करता हूँ
खुद को
शायद खो चुकी
मेरी रूह
भटकती हुई
कहीं मिल ही जाए
और मैं जी सकूँ फिर से
भूत, वर्तमान और भविष्य को !
______________________________________________________
[कुछ पोस्ट्स पर असंगत टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर अब मोडरेशन सक्षम है. अतः यदि आपकी टिप्पणी कुछ विलम्ब से प्रकाशित हो तो उसके लिये अग्रिम खेद है.]
खामोश रह कर
बेचैन सन्नाटों में
तलाश करता हूँ
खुद को
शायद खो चुकी
मेरी रूह
भटकती हुई
कहीं मिल ही जाए
और मैं जी सकूँ फिर से
भूत, वर्तमान और भविष्य को !
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[कुछ पोस्ट्स पर असंगत टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर अब मोडरेशन सक्षम है. अतः यदि आपकी टिप्पणी कुछ विलम्ब से प्रकाशित हो तो उसके लिये अग्रिम खेद है.]
शायद खो चुकी
ReplyDeleteमेरी रूह
भटकती हुई
कहीं मिल ही जाए
और मैं जी सकूँ फिर से
भूत वर्तमान और भविष्य को !
मन की व्यथा प्रदर्शित करती सुन्दर प्रस्तुति.
बहुत खूब !
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeletewah yashwant bhai bahut khoob likha hai
ReplyDelete...........jwab nahi aapka
रूह जिसको मिलेगी वह भला कौन है !
ReplyDeleteसबके दिल की बात कह दी।
ReplyDeleteवाह, मजेदार....यह तो बहुत सुन्दर कविता है..बधाई.
ReplyDelete________________________________
'पाखी की दुनिया' में 4 साल की उम्र में इतना बड़ा इनाम सुन हैरान हो जाएंगे आप.
बहुत खूब! सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
ReplyDeleteयशवंत भाई, बहुत गहरी बात कह गये आप।
ReplyDelete---------
समीरलाल की उड़नतश्तरी।
अंधविश्वास की शिकार महिलाऍं।
सर जी आपके पोस्ट की तो बात ही अलग होती है
ReplyDeleteपसंद आया|
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteबस यूँ ही कभी
ReplyDeleteखामोश रह कर
बेचैन सन्नाटों में
तलाश करता हूँ
खुद को
शायद यह sabse मुश्किल है की हम खुद को dhoondh पायें .कोशिश jari rakhiye .
bhut khub... very nice...
ReplyDeleteवाह सुंदर
ReplyDeleteमन की वेदना ..... वक्त कहाँ हाथ आता है.... बहुत बढ़िया
ReplyDeleteखुद को पाने के लिए भीतर से मौन होना जरूरी है... बहुत अच्छी रचना ।
ReplyDeleteEXCELLENT...
ReplyDeleteबुहुत सुंदर भाव हैं .....
ReplyDeleteश्रीमान जी, क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
ReplyDeleteश्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी कल ही लगाये है. इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.
शायद खो चुकी
ReplyDeleteमेरी रूह
भटकती हुई
कहीं मिल ही जाए
और मैं जी सकूँ फिर से
गहरे भावों को समेटे ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDelete"बस यूँ ही कभी
ReplyDeleteखामोश रह कर
बेचैन सन्नाटों में
तलाश करता हूँ
खुद को"
कुछ लोग बस यूँ ही कुछ नहीं सोचते...
और न ही कहते हैं....
कहीं आप उनमें से ही तो नहीं.....