14 May 2011

पतंग

आसमां में उड़ती
उठती गिरती
आपस में लड़ती भिड़ती
और फिर
कट कर कहीं और
किसी और के पास
चली जाती पतंग
या  फिर से वहीं
वापस आजाती
जहाँ से शुरू किया था
ऊपर उठना

एक  डोर से बंधी
जिसका छोर
थामा हुआ किसी ने
नचा रहा जो उसे
अपनी मर्ज़ी से
हवा के रुख के साथ
देता  ढील और
वो ऊपर उठती जाती है

है बड़ा अनिश्चित जीवन
पतंग  का
अस्तित्व का संघर्ष
द्वन्द  और अहम
असीम ऊंचाइयों में भी
नहीं छोड़ता साथ
रहना एक को ही होता है
या फिर से
वहीं आना होता है वापस
जहाँ  से
शुरू किया था
आगे  बढना
ऊंचा  उठना
आना  होता है फिर से
उसी के पास
थामी हुई है जिसने डोर
पतंग की .

[इस कविता को दो दिन पहले पोस्ट किया था किन्तु ब्लोगर की समस्या के चलते पहले तो यह पोस्ट ही उड़  गयी थी और जब वापस आई तो टिप्पणियाँ  उडी  हुईं थीं.अगर आपने इस पर पहले  भी टिप्पणी दी थी जो अब आपको न दिखे तो ऐसा ब्लोगर की प्रोब्लम से ही हुआ है.आशा है पाठक गण अन्यथा नहीं लेंगे.]

29 comments:

  1. बहुत सुन्दर दार्शनिक कविता जीवन के अनिश्चयता के बारे में !

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  2. है बड़ा अनिश्चित जीवन
    पतंग का
    आस्तित्व का संघर्ष
    द्वन्द और अहम
    असीम ऊंचाइयों में भी
    नहीं छोड़ता साथ
    रहना एक को ही होता है
    या फिर से
    वहीं आना होता है वापस
    जहाँ से
    शुरू किया था
    आगे बढना
    ऊंचा उठना
    आना होता है फिर से
    उसी के पास
    थामी हुई है जिसने डोर
    पतंग की .kirtimaan sthaapit kerte gahre bhaw

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  3. बहुत सुन्दर दार्शनिक कविता|धन्यवाद|

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  4. बहुत उम्दा भाव!!

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  5. है बड़ा अनिश्चित जीवन
    पतंग का
    आस्तित्व का संघर्ष
    द्वन्द और अहम
    असीम ऊंचाइयों में भी
    नहीं छोड़ता साथ
    रहना एक को ही होता है
    जीवन के अनिश्चयता के बारे में बहुत सुन्दर कविता

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  6. जीवन की जद्दोज़हद को सिखाती पतंग..... हर पंक्ति सुंदर

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  7. एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !

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  8. पतंग के माध्यम से जीवन का सच बता दिया ,अच्छी अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें !

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  9. सुन्दर कविता

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  10. खूबसूरत अभिव्यक्ति...

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  11. पतंग को ज़िंदगी से जोड़कर देखती है आपकी कविता ... बहुत सुंदर

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  12. खुबसूरत भावाव्यक्ति के लिए बधाई

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  13. जहाँ से
    शुरू किया था
    आगे बढना
    ऊंचा उठना
    आना होता है फिर से
    उसी के पास
    थामी हुई है जिसने डोर
    पतंग की .

    ....सरल शब्दों में गहन जीवन दर्शन दर्शाती बहुत सुन्दर रचना..

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  14. सुन्दर रचना। आभार।

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  15. है बड़ा अनिश्चित जीवन
    पतंग का
    अस्तित्व का संघर्ष
    द्वन्द और अहम
    असीम ऊंचाइयों में भी
    नहीं छोड़ता साथ

    जीवन के हर क्षेत्र में अस्तित्व का संघर्ष है...
    सुंदर रचना....

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  16. बहुत अच्छी लगी यह कविता।

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  17. जिंदगी का सार ...बहुत सुन्दर

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  18. बहुत सुन्दर यश भैया

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  19. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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  20. पतंग के माध्यम से जिंदगी का फलसफा बयां करती रचना !

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  21. जहाँ से
    शुरू किया था
    आगे बढना
    ऊंचा उठना
    आना होता है फिर से
    उसी के पास
    थामी हुई है जिसने डोर
    पतंग की .
    मैं पहली बार आपके पोस्ट पे आया हूँ
    आकर आपके सारे पोस्ट पढ़े
    बहुत खूब कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
    पतंग के माध्यम से जीवन का सच बता दिया!!
    आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं !
    कृपया मेरे ब्लॉग पर आयें http://madanaryancom.blogspot.com/

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  22. पतंग और डोर के सम्बन्ध से ज़िंदगी का फलसफा समझना अच्छा लगा .. सुन्दर प्रस्तुति

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  23. बहुत ही खुबसूरत भावाव्यक्ति..पतंग के माध्यम से जीवन का सच कह डाला...तुम्हारी ये पोस्ट मुझसे कैसे छूट गई समझ नही आया...खैर देर से ही सही पढ़नेको तो मिली....शुभकामनायं..

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  24. सबसे पहले बधाई यशवंत जी .....
    गहन है कविता ...पतंग और डोर को बड़ी खूबसूरती से जीवन से जोड़ा है ...!

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  25. sundar....kitna bhii uunchaa ud le...par dor to doosre ke haath hii hai.....

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