भूल जाना चाहता हूँ
उन राहों को
जिन से हो कर
मैं आ पहुंचा हूँ यहाँ तक
भूल जाना चाहता हूँ
उन कड़वी -मीठी बातों को
जिन्हें हर कदम पर
सुनता आया हूँ
भूल जाना चाहता हूँ
उन यादों को
जिन्हें दर्द की तरह सीने में
सहेजा हुआ है
भूल जाना चाहता हूँ
अपने शरीर को
जिसका बोझा ढोते ढोते
अब मैं थक चुका हूँ
भूल जाना चाहता हूँ खुद को
क्योंकि अब मैं
अस्तित्व खो चुका हूँ
मगर नहीं!
मैं चाहकर भी
कुछ भूल नहीं पा रहा हूँ
एक अजीब सा चक्रव्यूह
और
एक अजीब सी तड़प में
उलझा उलझा सा
छटपटा रहा हूँ मैं
मुक्ति पाने को !
उन राहों को
जिन से हो कर
मैं आ पहुंचा हूँ यहाँ तक
भूल जाना चाहता हूँ
उन कड़वी -मीठी बातों को
जिन्हें हर कदम पर
सुनता आया हूँ
भूल जाना चाहता हूँ
उन यादों को
जिन्हें दर्द की तरह सीने में
सहेजा हुआ है
भूल जाना चाहता हूँ
अपने शरीर को
जिसका बोझा ढोते ढोते
अब मैं थक चुका हूँ
भूल जाना चाहता हूँ खुद को
क्योंकि अब मैं
अस्तित्व खो चुका हूँ
मगर नहीं!
मैं चाहकर भी
कुछ भूल नहीं पा रहा हूँ
एक अजीब सा चक्रव्यूह
और
एक अजीब सी तड़प में
उलझा उलझा सा
छटपटा रहा हूँ मैं
मुक्ति पाने को !
भुला देना इतना आसान नहीं है; और न ही भूलकर यादों से मुक्ति ही संभव है.......यादों के इस वृछ को और सघन होने दीजिये; इसमें और अच्छे पल्लव और पुष्प खिलेंगे....बहुत अच्छी रचना......बधाई.
ReplyDeleteमन की कशमकश को व्यक्त करती एक सीधी सच्ची बात कहती रचना ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteअभी तो शुरुआत है बंधु क्यों अभी से मुक्ति की बातें कर रहे हो ?
ReplyDeleteप्रमोद ताम्बट
भोपाल
http://vyangya.blog.co.in/
http://www.vyangyalok.blogspot.com/
http://www.facebook.com/profile.php?id=1102162444
भूलना इतना आसान कहाँ होता है !
ReplyDeleteभुलक्कड़ों की मुक्ति संभव नहीं है जानी।
ReplyDeletesuch bhulna to chahte hai,per kaha bhula pate hai ham sab kuch...
ReplyDeleteसमय बड़ा बलवान होता है । बड़ी से बड़ी याद पर धूल डाल देता है ।
ReplyDeleteअच्छी कशमकश पेश की है ।
एक अजीब सी तड़प में
ReplyDeleteउलझा उलझा सा
छटपटा रहा हूँ मैं
मुक्ति पाने को !
बहुत बढ़िया ....कहाँ आसान यादों से मुक्ति....
किन किन बातों को भुलेगें यशवन्त जी। इतना आसान है क्या। खुद से भी ज्यादा प्यारी लगती है ये यादें।
ReplyDeleteभूल जाना इतना आसान नहीं है..उम्र गुजर जाती है भूल जाने में..बहुत मर्मस्पर्शी रचना ...
ReplyDeleteअच्छी रचना...
ReplyDeleteBhul jaate to baat hi kyaa thi
ReplyDeleteकिसी को भूल जाना बहुत ही मुश्किल होता है और खासकर तब जब की वो आपके दिल पर राज़ करते हो,दर्द के समन्दर से गुजरना पड़ता है किसी को भुलाने के लिए|
ReplyDeleteएक अजीब सी तड़प में
ReplyDeleteउलझा उलझा सा
छटपटा रहा हूँ मैं
मुक्ति पाने को !
बेहतरीन प्रस्तुति ।
भूलना आसान नहीं है ... सुन्दर पोस्ट !
ReplyDeleteमगर नहीं!
ReplyDeleteमैं चाहकर भी
कुछ भूल नहीं पा रहा हूँ
एक अजीब सा चक्रव्यूह
और
एक अजीब सी तड़प में
उलझा उलझा सा
छटपटा रहा हूँ मैं
मुक्ति पाने को !
बेहतरीन प्रस्तुति
very true Yashwant! nice...
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteहमारे पास यादों का इतना बड़ा जखीरा होता है की कई बाते तो हम कुछ समय बाद ही भूल जाते हैं पर कुछ पल ऐसे होते हैं की हम उन्हें भूलने की कोशिश में उन्हें अपने और करीब ले आते हैं तो यादों को यादें ही बनी रहने दो अपना सफ़र निरंतर चलने दो |
ReplyDeleteसुन्दर रचना |
यशवन्त जी। इतना आसान है क्या। भूलना
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