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मन मौजी लहरों!
ले चलो मुझे भी
अपने साथ
तुम्हारे साथ
मैं भी जीना चाहता हूँ
तुम्हारे जैसा जीवन
टकराना चाहता हूँ
पत्थरों से
छोड़ जाने को
अपने कुछ निशाँ
उन पत्थरों के बीच से
कुछ रास्ते बना कर
उनकी ऊंचाइयों को
लांघ कर
मैं भी चाहता हूँ
अनवरत बहना
बस बहते रहना
चलते रहना
तुम्हारी तरह.
मैं भी चाहता हूँ
ReplyDeleteअनवरत बहना
बस बहते रहना
चलते रहना
तुम्हारी तरह.
bahut khub Yashwant ji......
लहरों के संग जीने की चाहत एक परिक्रमा है जीवन की
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर चाहत्।
ReplyDeleteलहरें जीवन के ऊर्जामय रूप का द्योतक बन सार्थक हो गयी ....बहुत खूब ....शुभकामनायें !
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeleteसकारात्मक सोच लिए अच्छी कविता।
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्र लगाया है आपने।
लहरे तो बहेंगी ही, आप उनके साथ कदम मिलाएं वो जरूर आपके साथ बहेंगी , सुन्दर कविता
ReplyDeleteमनोहारी अद्भुत चित्रण लहरें के जीवन का....
ReplyDeleteअग्रिम शुभकामनाएं...
ReplyDeleteअपने निशां बना पाने के लिए...
बहुत सार्थक सोच...बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत खुब। शानदार सोच।
ReplyDeleteमैं भी चाहता हूँ
ReplyDeleteअनवरत बहना
बस बहते रहना
चलते रहना
तुम्हारी तरह
बहुत सुंदर भाव...... सकारात्मक विचारों की गहन अभिव्यक्ति
टकराना चाहता हूँ
ReplyDeleteपत्थरों से
छोड़ जाने को
अपने कुछ निशाँ
उन पत्थरों के बीच से
कुछ रास्ते बना कर
उनकी ऊंचाइयों को
लांघ कर
मैं भी चाहता हूँ
अनवरत बहना
बस बहते रहना
चलते रहना
तुम्हारी तरह.
भाई यशवंत जी बहुत सुंदर लिखते हैं आप बधाई और शुभकामनाएं |
टकराना चाहता हूँ
ReplyDeleteपत्थरों से
छोड़ जाने को
अपने कुछ निशाँ
पत्थरों से पास से निकल जा सकते है पर वो भी कोई जीना होगा ....बहुत सुन्दर
waah! bhut khub likha hai apne...is raj ko kya jaane sahil pe baithne vale,ham dub ke samjhe hai dariya teri gahrayi... !
ReplyDeleteसुंदर प्रेरणादायी शब्दों से सजी कविता ! शुभकामनायें.
ReplyDeleteयशवंत भाई का तो जवाब नहीं है
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर लिखते है
सकारात्मक विचारों की सुंदर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteतुम समय की रेत पर छोड़ते चलो निशां... शुभकामनायें..........
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteसारगर्भित तथा सार्थक रचना
ReplyDeleteटकराना चाहता हूँ
ReplyDeleteपत्थरों से
छोड़ जाने को
अपने कुछ निशाँ
अच्छी प्रस्तुति
उन पत्थरों के बीच से
ReplyDeleteकुछ रास्ते बना कर
उनकी ऊंचाइयों को
लांघ कर
sunder abhivyakti
टकराना चाहता हूँ
ReplyDeleteपत्थरों से
छोड़ जाने को
अपने कुछ निशाँ
जीवट से भरपूर एक अत्यंत प्रभावशाली रचना ! अति सुन्दर