आज फिर उसे देखा
उसी फुटपाथ पर
जहाँ से कल होकर
मैं गुज़रा था
आज फिर
मैंने देखा
उसे उसी तरह रोते हुए
भूख से तडपते हुए
अपनी माँ की गोद में
वो नन्ही लड़की
चिथड़ों में ढकी छुपी
सिकुड़ी सी जा रही थी
लोग
आ रहे थे
जा रहे थे
देख रहे थे उसे
एक नज़र
महसूस कर रहे थे
उसकी भूख को
आधुनिक गरीब
करुण चेहरा बनाकर
निकले जा रहे थे
करीब से
और
पास के ढाबे में
ले रहे थे स्वाद
मन-पसंद व्यंजनों का
वो लड़की
रोये जा रही थी
उसकी आवाज़
वहाँ भी आ रही थी
और मैं
अचानक
रह गया स्तब्ध
जब देखा
किसी राह को जाते
नन्हे देवदूत को
पॉकेट मनी से खरीदा
उसने
एक पैकेट बिस्कुट
और थमा दिया
उन नन्हे अनजान हाथों में
वो लड़की अब चुप थी
और टुकुर टुकुर
ताक रही थी
उसकी मासूम नजरें
उसे तलाश रही थीं
पर वो जा चुका था
अपनी राह
छोड़ कर एक प्रश्न
मुखौटा कौन था ?
उसी फुटपाथ पर
जहाँ से कल होकर
मैं गुज़रा था
आज फिर
मैंने देखा
उसे उसी तरह रोते हुए
भूख से तडपते हुए
अपनी माँ की गोद में
वो नन्ही लड़की
चिथड़ों में ढकी छुपी
सिकुड़ी सी जा रही थी
लोग
आ रहे थे
जा रहे थे
देख रहे थे उसे
एक नज़र
महसूस कर रहे थे
उसकी भूख को
आधुनिक गरीब
करुण चेहरा बनाकर
निकले जा रहे थे
करीब से
और
पास के ढाबे में
ले रहे थे स्वाद
मन-पसंद व्यंजनों का
वो लड़की
रोये जा रही थी
उसकी आवाज़
वहाँ भी आ रही थी
और मैं
अचानक
रह गया स्तब्ध
जब देखा
किसी राह को जाते
नन्हे देवदूत को
पॉकेट मनी से खरीदा
उसने
एक पैकेट बिस्कुट
और थमा दिया
उन नन्हे अनजान हाथों में
वो लड़की अब चुप थी
और टुकुर टुकुर
ताक रही थी
उसकी मासूम नजरें
उसे तलाश रही थीं
पर वो जा चुका था
अपनी राह
छोड़ कर एक प्रश्न
मुखौटा कौन था ?
बच्चों की समझ हमसे बड़ी है , उन्हें किसीसे कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होनी और उनका प्रेम निश्छल होता है
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील प्रस्तुति..
ReplyDeleteलीगल सैल से मिले वकील की मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है
ReplyDeleteमैंने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता जी को एक पत्र कल ही लिखकर भेजा है कि-दोषी को सजा हो और निर्दोष शोषित न हो. दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें
कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने की इच्छा खत्म कर दी है.. माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है.
मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने महिलाओं के हितों के लिए बनाये कानूनों का दुरपयोग करते हुए मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज करवा दिए..मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं थोड़ी बहुत पूंजी अपने कार्यों के माध्यम जमा की थी.सभी कार्य बंद होने के, बिमारियों की दवाइयों में और केसों की भागदौड़ में खर्च होने के कारण आज स्थिति यह है कि-पत्रकार हूँ इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता हूँ और अपना ज़मीर व ईमान बेच नहीं सकता हूँ.
मुखौटा कौन था ?....
ReplyDeleteप्रासंगिक विचार लिए बहुत सुंदर रचना.....
आंखें नम हो गई जब कविता नन्हे देवदूत तक आई। कविता ऐसी ही होनी चाहिये जो दिल की गहराई तक छू जाये
ReplyDeleteमुखौटा कोई भी हो काम अच्छा कर गया
ReplyDeletebhut hi sunder rachna....
ReplyDeletebeauteous...
ReplyDeleteमुखौटा कौन था ? whoever he/she is we need such person in society in abundance.
Nice write up.
Loved it.
वो लड़की अब चुप थी
ReplyDeleteऔर टुकुर टुकुर
ताक रही थी
उसकी मासूम नजरें
उसे तलाश रही थीं
पर वो जा चुका था
अपनी राह
छोड़ कर एक प्रश्न
मुखौटा कौन था ?
बहुत बढ़िया रचना, बधाई और शुभकामनाएं |
- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
और मैं
ReplyDeleteअचानक
रह गया स्तब्ध
जब देखा
किसी राह को जाते
नन्हे देवदूत को
पॉकेट मनी से खरीदा
उसने
एक पैकेट बिस्कुट
और थमा दिया
उन नन्हे अनजान हाथों में
farishte aaj bhi hain
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDeleteपरखना मत ,परखने से कोई अपना नहीं रहता ,कुछ चुने चिट्ठे आपकी नज़र
--
गंभीर रचना...एक चिन्तन मांगती है,,,बेहतरीन!!!
ReplyDeleteआधुनिक गरीब
ReplyDeleteकरुण चेहरा बनाकर
निकले जा रहे थे
पॉकेट मनी से खरीदा
उसने
एक पैकेट बिस्कुट
और थमा दिया
उन नन्हे अनजान हाथों में
ek hi kainvas par bahut se chitra uker diye.baik graund sangit achchha laga.
बहुत संवेदनशील रचना
ReplyDeleteनन्हे देवदूत को
ReplyDeleteपॉकेट मनी से खरीदा
उसने
एक पैकेट बिस्कुट
और थमा दिया
उन नन्हे अनजान हाथों में.. बहुत सुन्दर.येसे लोग आज भी है तभी तो दुनिया कायम है.....
अति उत्तम ... मन को छुं ले वाली कविता !
ReplyDeleteइस मार्मिक रचना ने अन्दर तक हिला कर रख दिया...
ReplyDeleteनीरज
सच को प्रतिबिम्बित करती बेहतरीन मार्मिक रचना...
ReplyDeleteआधुनिक गरीब
ReplyDeleteकरुण चेहरा बनाकर
निकले जा रहे थे
करीब से
और
पास के ढाबे में
ले रहे थे स्वाद
मन-पसंद व्यंजनों का
आज के मानव की यही मानसिकता है. बेहद करुणा उपजाती कविता ! शुक्र है कि बच्चों में अभी भी इंसानियत शेष है.. आभार !
बेहद संवेदनशील ... लाजवाब अभिव्यक्ति .... कभी कभी कुछ ऐसा हो जाता है जो स्तब्ध कर देने को काफ़ी होता है .......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.......शानदार.
ReplyDeleteमार्मिक रचना.
ReplyDeleteबहुत गहन,संवेदनशील रचना .अच्छा लगा पढ़ कर .
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ!
ReplyDeleteदिल sabake paas nahi hotaa , baaki के mukhautaa ही है !
ReplyDeletejindagi itni bhi bedard nahi dost ji ki koi use khushi n de raha ho haan uska pratishat kam jrur hai varna agar umid bilkul n hoti to duniya me kuch nahi hota umid par hi jivan hai jo jine ke liye bahut hai
ReplyDeletevery nice bhavnatmak prastuti :)
बेहद संवेदनशील ..... फ़रिश्ते भी अब छोटे ही हो गये हैं .... शुभकामनायें !
ReplyDeleteवो लड़की अब चुप थी
ReplyDeleteऔर टुकुर टुकुर
ताक रही थी
उसकी मासूम नजरें
उसे तलाश रही थीं
पर वो जा चुका था
अपनी राह
छोड़ कर एक प्रश्न
मुखौटा कौन था ?
sanvednaon se bhari kavita .
ek sawal liye khadi hai.
bahut bahut badhai
rachana
बेहद संवेदनशील ... लाजवाब अभिव्यक्ति .... नन्हे मासूम दिलों में मानवता जिंदा है...
ReplyDeleteसार्थक चिंतन।
ReplyDeleteबधाई।
---------
ब्लॉग समीक्षा की 20वीं कड़ी...
आई साइबोर्ग, नैतिकता की धज्जियाँ...
आधुनिक गरीब
ReplyDeleteकरुण चेहरा बनाकर
निकले जा रहे थे
करीब से
और
पास के ढाबे में
ले रहे थे स्वाद
मन-पसंद व्यंजनों का
marmsparshi rachna ...!!
achi lagi rachna vakai sunder.......
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeletenice...
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