13 June 2011

मुखौटा कौन था ?

आज फिर उसे देखा
उसी फुटपाथ पर
जहाँ से कल होकर
मैं गुज़रा था

आज फिर
मैंने देखा
उसे उसी तरह रोते हुए
भूख से तडपते हुए
अपनी माँ की गोद में
वो  नन्ही लड़की
चिथड़ों में ढकी छुपी
सिकुड़ी सी जा रही थी

लोग
आ रहे थे
जा रहे थे
देख रहे थे उसे
एक नज़र
महसूस कर रहे थे
उसकी भूख को

आधुनिक गरीब
करुण चेहरा बनाकर
निकले जा रहे थे
करीब से
और 
पास के ढाबे में
ले रहे थे स्वाद
मन-पसंद व्यंजनों का 

वो लड़की
रोये जा रही थी
उसकी आवाज़
वहाँ भी आ रही थी

और मैं
अचानक 
रह गया स्तब्ध
जब  देखा
किसी  राह को जाते

नन्हे देवदूत को
पॉकेट मनी से खरीदा
उसने 
एक पैकेट बिस्कुट
और थमा दिया
उन नन्हे अनजान हाथों में

वो लड़की अब चुप थी
और टुकुर टुकुर
ताक रही थी
उसकी  मासूम नजरें
उसे  तलाश  रही थीं
पर वो जा चुका था
अपनी  राह
छोड़  कर एक प्रश्न

मुखौटा कौन था ?

34 comments:

  1. बच्चों की समझ हमसे बड़ी है , उन्हें किसीसे कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होनी और उनका प्रेम निश्छल होता है

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  2. बहुत संवेदनशील प्रस्तुति..

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  3. लीगल सैल से मिले वकील की मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है

    मैंने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता जी को एक पत्र कल ही लिखकर भेजा है कि-दोषी को सजा हो और निर्दोष शोषित न हो. दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें

    कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने की इच्छा खत्म कर दी है.. माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है.

    मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने महिलाओं के हितों के लिए बनाये कानूनों का दुरपयोग करते हुए मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज करवा दिए..मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं थोड़ी बहुत पूंजी अपने कार्यों के माध्यम जमा की थी.सभी कार्य बंद होने के, बिमारियों की दवाइयों में और केसों की भागदौड़ में खर्च होने के कारण आज स्थिति यह है कि-पत्रकार हूँ इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता हूँ और अपना ज़मीर व ईमान बेच नहीं सकता हूँ.

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  4. मुखौटा कौन था ?....

    प्रासंगिक विचार लिए बहुत सुंदर रचना.....

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  5. आंखें नम हो गई जब कविता नन्हे देवदूत तक आई। कविता ऐसी ही होनी चाहिये जो दिल की गहराई तक छू जाये

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  6. मुखौटा कोई भी हो काम अच्छा कर गया

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  7. beauteous...
    मुखौटा कौन था ? whoever he/she is we need such person in society in abundance.
    Nice write up.
    Loved it.

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  8. वो लड़की अब चुप थी
    और टुकुर टुकुर
    ताक रही थी
    उसकी मासूम नजरें
    उसे तलाश रही थीं
    पर वो जा चुका था
    अपनी राह
    छोड़ कर एक प्रश्न

    मुखौटा कौन था ?


    बहुत बढ़िया रचना, बधाई और शुभकामनाएं |

    - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  9. और मैं
    अचानक
    रह गया स्तब्ध
    जब देखा
    किसी राह को जाते

    नन्हे देवदूत को
    पॉकेट मनी से खरीदा
    उसने
    एक पैकेट बिस्कुट
    और थमा दिया
    उन नन्हे अनजान हाथों में
    farishte aaj bhi hain

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  10. गंभीर रचना...एक चिन्तन मांगती है,,,बेहतरीन!!!

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  11. आधुनिक गरीब
    करुण चेहरा बनाकर
    निकले जा रहे थे
    पॉकेट मनी से खरीदा
    उसने
    एक पैकेट बिस्कुट
    और थमा दिया
    उन नन्हे अनजान हाथों में
    ek hi kainvas par bahut se chitra uker diye.baik graund sangit achchha laga.

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  12. नन्हे देवदूत को
    पॉकेट मनी से खरीदा
    उसने
    एक पैकेट बिस्कुट
    और थमा दिया
    उन नन्हे अनजान हाथों में.. बहुत सुन्दर.येसे लोग आज भी है तभी तो दुनिया कायम है.....

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  13. अति उत्तम ... मन को छुं ले वाली कविता !

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  14. इस मार्मिक रचना ने अन्दर तक हिला कर रख दिया...
    नीरज

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  15. सच को प्रतिबिम्बित करती बेहतरीन मार्मिक रचना...

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  16. आधुनिक गरीब
    करुण चेहरा बनाकर
    निकले जा रहे थे
    करीब से
    और
    पास के ढाबे में
    ले रहे थे स्वाद
    मन-पसंद व्यंजनों का

    आज के मानव की यही मानसिकता है. बेहद करुणा उपजाती कविता ! शुक्र है कि बच्चों में अभी भी इंसानियत शेष है.. आभार !

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  17. बेहद संवेदनशील ... लाजवाब अभिव्यक्ति .... कभी कभी कुछ ऐसा हो जाता है जो स्तब्ध कर देने को काफ़ी होता है .......

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  18. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.......शानदार.

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  19. मार्मिक रचना.

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  20. बहुत गहन,संवेदनशील रचना .अच्छा लगा पढ़ कर .

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  21. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ!

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  22. दिल sabake paas nahi hotaa , baaki के mukhautaa ही है !

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  23. jindagi itni bhi bedard nahi dost ji ki koi use khushi n de raha ho haan uska pratishat kam jrur hai varna agar umid bilkul n hoti to duniya me kuch nahi hota umid par hi jivan hai jo jine ke liye bahut hai
    very nice bhavnatmak prastuti :)

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  24. बेहद संवेदनशील ..... फ़रिश्ते भी अब छोटे ही हो गये हैं .... शुभकामनायें !

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  25. वो लड़की अब चुप थी
    और टुकुर टुकुर
    ताक रही थी
    उसकी मासूम नजरें
    उसे तलाश रही थीं
    पर वो जा चुका था
    अपनी राह
    छोड़ कर एक प्रश्न

    मुखौटा कौन था ?
    sanvednaon se bhari kavita .
    ek sawal liye khadi hai.
    bahut bahut badhai
    rachana

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  26. बेहद संवेदनशील ... लाजवाब अभिव्यक्ति .... नन्हे मासूम दिलों में मानवता जिंदा है...

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  27. आधुनिक गरीब
    करुण चेहरा बनाकर
    निकले जा रहे थे
    करीब से
    और
    पास के ढाबे में
    ले रहे थे स्वाद
    मन-पसंद व्यंजनों का
    marmsparshi rachna ...!!

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  28. achi lagi rachna vakai sunder.......

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  29. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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