राह में आती हैं
बाधाएं अनेकों
उनको तो आना ही है
फर्ज़ अपना निभाना ही है
बंद हों रास्ते
भले ही आने और जाने के
पीछे खाई और आगे कुआं
ही क्यों न हो
चलने वालों को तो
चलते जाना ही है
रास्ता कोई निकालना ही है
फिर मैं क्यों रुकूँ
तुम्हारे पत्थरों की बारिश में
इनको फूल समझ कर
सहेजता चल रहा हूँ
कि कल जब तुम आओ
तो मैं ये कह सकूँ
निशाँ कितने ही दो
मुझको तो मुस्कुराना ही है
इस राह पर यूँ ही
चलते जाना ही है.
बाधाएं अनेकों
उनको तो आना ही है
फर्ज़ अपना निभाना ही है
बंद हों रास्ते
भले ही आने और जाने के
पीछे खाई और आगे कुआं
ही क्यों न हो
चलने वालों को तो
चलते जाना ही है
रास्ता कोई निकालना ही है
फिर मैं क्यों रुकूँ
तुम्हारे पत्थरों की बारिश में
इनको फूल समझ कर
सहेजता चल रहा हूँ
कि कल जब तुम आओ
तो मैं ये कह सकूँ
निशाँ कितने ही दो
मुझको तो मुस्कुराना ही है
इस राह पर यूँ ही
चलते जाना ही है.
निशाँ कितने ही दो
ReplyDeleteमुझको तो मुस्कुराना ही है
इस राह पर यूँ ही
चलते जाना ही है.
बहुत खुबसूरत रचना दोस्त जी |:)
तुम्हारे पत्थरों की बारिश में
ReplyDeleteइनको फूल समझ कर
सहेजता चल रहा हूँ
कि कल जब तुम आओ
तो मैं ये कह सकूँ
निशाँ कितने ही दो
मुझको तो मुस्कुराना ही है
bahut sundar bhavabhivyakti
चलना ही ज़िन्दगी है।
ReplyDeleteफिर मैं क्यों रुकुं
ReplyDeleteतुम्हारे पत्थरों की बारिश में
इनको फूल समझ कर
सहेजता चल रहा हूँ
कि कल जब तुम आओ
तो मैं ये कह सकूँ
निशाँ कितने ही दो
मुझको तो मुस्कुराना ही है
जज्बा ऐसा ही होना चाहिए हर इंसान का जिसे मस्ती से जीना है उसे कहाँ परवाह, कौन पत्थर से स्वागत करता है कौन फूलों से ... बहुत सुंदर कविता !
चलते जाना ही जीवन है ... फिर चाहे पत्थर हो या फूल ... और मुस्कुराना भी है ... अच्छी रचना है ...
ReplyDeleteचलने का नाम ही जीवन है ....
ReplyDeleteबंद हों रास्ते
भले ही आने और जाने के
पीछे खाई और आगे कुआं
ही क्यों न हो
चलने वालों को तो
चलते जाना ही है
बहुत सुन्दर रचना..... बेहतरीन प्रस्तुति
फिर मैं क्यों रुकुं
ReplyDeleteतुम्हारे पत्थरों की बारिश में ||
बेहतरीन प्रस्तुति
bahut achchhe bhav -chalte jana hai .badhai
ReplyDeletebhut hi acchi prstuti....
ReplyDeleteचरैवेति का संदेश देती सार्थक रचना...
ReplyDeleteजो राह चुनी तूने... उस राह में राही चलते जाना रे !
ReplyDeleteचाहे जितनी हो लंबी रात ...दिया बन जलते जाना रे ! उस राही में रही चलते जाना रे !
बहुत सुंदर...
उम्मीदों भरी कविता
ReplyDeleteइनको फूल समझ कर
सहेजता चल रहा हूँ
कि कल जब तुम आओ
तो मैं ये कह सकूँ
निशाँ कितने ही दो
मुझको तो मुस्कुराना ही है
सुंदर पंक्तियाँ
बधाई
रचना
फिर मैं क्यों रुकुं
ReplyDeleteतुम्हारे पत्थरों की बारिश में
इनको फूल समझ कर
सहेजता चल रहा हूँ
कि कल जब तुम आओ
तो मैं ये कह सकूँ
निशाँ कितने ही दो
मुझको तो मुस्कुराना ही है
इस राह पर यूँ ही
चलते जाना ही है.
Behad khoobsoorat panktiyan!
राह में आती हैं
ReplyDeleteबाधाएं अनेकों
उनको तो आना ही है
फर्ज़ अपना निभाना ही है
Bahut Sunder...Prabhavit karati panktiyan
फिर मैं क्यों रुकुं
ReplyDeleteतुम्हारे पत्थरों की बारिश में
इनको फूल समझ कर
सहेजता चल रहा हूँ
कि कल जब तुम आओ
तो मैं ये कह सकूँ
निशाँ कितने ही दो
मुझको तो मुस्कुराना ही है
काव्यमय सुन्दर वैचारिक प्रस्तुतिकरण...
सुंदर सकारात्मक अभिव्यक्ति. यदि अन्यथा न लें तो रुकुं को सुधार कर रुकूँ कर लें.बैक ग्राऊंड म्युजिक के साथ पढ़ने का मजा दुगुना हो गया.
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी की चर्चा आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!
बहुत ही सुन्दर ||
ReplyDeleteनिशाँ कितने ही दो
ReplyDeleteमुझको तो मुस्कुराना ही है
सुंदर पंक्तियाँ
फिर मैं क्यों रुकूँ
ReplyDeleteतुम्हारे पत्थरों की बारिश में
इनको फूल समझ कर
सहेजता चल रहा हूँ
कि कल जब तुम आओ
तो मैं ये कह सकूँ
निशाँ कितने ही दो
मुझको तो मुस्कुराना ही है
बहुत खूबसूरत........यही बात तो जीवन का मूलमंत्र है |
वाह ...बहुत ही अच्छा लिखा है ।
ReplyDelete"फिर मैं क्यों रुकूँ
ReplyDeleteतुम्हारे पत्थरों की बारिश में
इनको फूल समझ कर
सहेजता चल रहा हूँ
कि कल जब तुम आओ
तो मैं ये कह सकूँ
निशाँ कितने ही दो
मुझको तो मुस्कुराना ही है "
बेहद motivate करने वाले कविता है ..... :)
निशाँ कितने ही दो
ReplyDeleteमुझको तो मुस्कुराना ही है
...बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..
बेहतरीन रचना,बहुत सुन्दर
ReplyDeleteकाफी उम्मीदों से भरी हुई प्रेरणादायक रचना
ReplyDeletechalte hi rahne ka sandesh deti sunder prastuti.
ReplyDeleteजहाँ चाह वहाँ राह. अच्छी अभिव्य्क्ति.
ReplyDeleteतो मैं ये कह सकूँ
ReplyDeleteनिशाँ कितने ही दो
मुझको तो मुस्कुराना ही है
बहुत सुन्दर भाव ..सकारात्मक सोच लिए हुए
Life goes on and on...
ReplyDeletebeautiful writing !!
जीवन जीने का बेहद सकारात्मक नज़रिया ...... शुभकामनायें !
ReplyDeleteकल शनिवार (०९-०७-११)को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा होगी नयी-पुराणी हलचल पर |कृपया आयें और अपने शुभ विचार दें ..!!
ReplyDeleteप्यारी सी है कविता और ब्लॉग खोलते ही जो म्यूजिक बजा वह भी पसंद आया.
ReplyDeletechahe kuchh bhi ho bas chalte jana hai....bahut sundar
ReplyDeleteउम्दा रचना ..बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति .. टचिंग
ReplyDeleteVaah , kamal likha hai .aapko aabhar
ReplyDeleteKamal likha hai. vaah
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteचलने वालों को तो
ReplyDeleteचलते जाना ही है
रास्ता कोई निकालना ही है
यह आत्मविश्वास ही तो है जो हमें चलाये रखता है. सुन्दर रचना
सादर
मंजु