नाजों से पाल कर
उसके माँ बाप ने
कार ,मोटर साइकिल
टी वी,फ्रिज
और कर्ज़ लेकर
नोटों की गड्डियां
दी थीं दहेज में
फिर भी उससे
आखिर एक गलती
हो ही गयी थी
नन्ही सी परी
उसकी गोद में आ गयी थी
उसकी सास उसे घर से
निकाल रही थी
घर का चिराग
न मिलने से
खिसिया रही थी
वो रो रही थी
खीझ रही थी
अपनी किस्मत पे
यही सोच सोच कर कि
वो खुद एक औरत क्यों है?
वो औरत क्यों है
जिसके बेटे से
वह ब्याही गयी थी
और वो भी
जिसने उसे जन्म दिया था ......?
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Bilkul mere man me uthate saval ko shabd diya hai . kamal likha hai
ReplyDeleteएक ऐसा प्रश्न जिसका उत्तर ही नही मि्ल रहा…………प्रश्न करती बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteकैसी विडंबनापूर्ण स्थिति है कि औरत ही औरत के दुःख का कारण बनती है, समाज की मानसिकता बदल रही है पर बहुत धीरे-धीरे...
ReplyDeleteबहुत मार्मिकता के साथ समाज के सच को उदघाटित किया है यशवंत जी आपने ..आभार
ReplyDeleteभाई आपने तो कम शब्दों मे ही बहुत कुछ कह दिया ..काश हम सब इस सच को समझ पाते तो समस्याएं खत्म हो जाती| सुन्दर और मार्मिक कविता
ReplyDeleteबहुत गहन बात .. आज भी ऐसा सोचने वाले बहुत लोंग हैं ...सार्थक रचना
ReplyDeleteबधाई ||
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति ||
अच्छी लगी यह कविता।
ReplyDeleteबहुत मार्मिकता में लिप्त यतार्थ परोस दिया है आपने......
ReplyDeleteइस प्रश्न का उत्तर अगर कोई दे पाये तब शायद बेटियाँ भी दुलार पा सकें...... बहुत अच्छा सोचा है .... शुभकामनायें !
ReplyDeleteThis is one of your best !!
ReplyDeleteAwesome ..
बड़ा मुश्किल है लालच की आंख बंद कर पाना
ReplyDeleteबहुतही भावप्रणव और सशक्त रचना!
ReplyDeleteवो औरत क्यों है
ReplyDeleteजिसके बेटे से
वह ब्याही गयी थी
और वो भी
जिसने उसे जन्म दिया था
सोच बदलने में कितना समय लगेगा किसी के पास हिसाब नहीं , किसे प्रयास करना है प्रश् तैर रहा है यशवंत जी , बेहतरीन कविता
सच एक औरत की किस्मत में आज भी न जाने कितने दुख: भरे हैं!
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार!
बेहद मर्मस्पर्शी .....
ReplyDeleteकभी कभी ये सवाल लोगो की जिंदगी बदल देते हैं ... और कभी भविष्य भी |
आपके लेखन के लिए....बहुत-बहुत शुभ-कामनाएं आपको
nari jeevan ki mazboori darshati rachna..........
ReplyDeleteये आज से नहीं बल्कि पता नहीं कब से चली आ रही है। जिस तरह सुरज पुरब में निकलता है ये एक शाश्वत सत्य है उसी तरह औरत ही औरत की दुश्मन होती है ये भी एक शाश्वत सत्य है। काश इसे हम बदल पाते। मार्मिक रचना।
ReplyDeleteसबकुछ के बाद भी आखिर एक गलती
ReplyDeleteहो ही गयी थी
नन्ही सी परी
उसकी गोद में आ गयी थी... कारण साये की तरह साथ चलते हैं . अपना स्वाभिमान अपने हाथ है ... माँ चाहे तो काल बन सकती है
बहुत सुंदर..... प्रभावित करती सशक्त रचना ....
ReplyDeleteबेहद मर्मस्पर्शी ,उत्तरविहीन प्रश्न , फिर भी तलाश जारी है
ReplyDeleteशायद इसीलिए कहा गया होगा - औरत ही औरत की दुश्मन है
ReplyDeleteकुण्डलिया छन्द - सरोकारों के सौदे
यथार्थ के धरातल पर रची गयी एक सार्थक सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteसच है नारी ही नारी को नहीं समझ आई आज तक ... मार्मिक रचना है ...
ReplyDeleteयशवंत माथुर जी बहुत बड़ा प्रश्न आप का -ये समाज न जाने कब सुधरेगा -जिसकी वजह से आज उसका वजूद है उसी के खिलाफ खड़ा हो जाता है समाज हद तो तब हो जाती है जब नारियां खुद बेटियों को आने नहीं देना चाहती -काश ये सब होश में आयें -
ReplyDeleteवो औरत क्यों है
जिसके बेटे से
वह ब्याही गयी थी
और वो भी
जिसने उसे जन्म दिया था ...
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
वो औरत क्यों है
ReplyDeleteजिसके बेटे से
वह ब्याही गयी थी
और वो भी
जिसने उसे जन्म दिया था ......?
...एक कटु सत्य को उजागर करती बहुत मार्मिक प्रस्तुति..पता नहीं कब बेटियों के प्रति हमारी मानसिकता बदलेगी..बहुत सुन्दर
यशवंत जी ,
ReplyDeleteसार्थक सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई.
जिस दिन मेरा रोना खीझना बन्द होगा उस दिन मेरे जीवन में सुख और सम्मान की पहली किरण का उजाला होगा...
ReplyDeleteयह सवाल भारत में अभी काफी दशकों तक चलता रहेगा.. कटु सच...
ReplyDeleteपरवरिश पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
आभार
आपका प्रश्न अत्यंत गंभीर और सोचनीय है ...आभार
ReplyDeleteऔरत ही औरत की शायद सबसे बड़ी दुश्मन है...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है,....
प्रश्न पूछती सार्थक सुन्दर अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद.
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