कब तक चलना है
इस राह पर
जिस के हर कदम पर
आशाओं की मृग मरीचिका
दिखती है
आखिर कब तक
भ्रम की इस बुनियाद को
देखुंगा
और हँसता रहूँगा
खुश होता रहूँगा
रहस्य के खुलने का एहसास
हो चुका है मुझे
बस इंतज़ार है
सच के बाहर निकलने का
एक ऐसा सच
जिसके बाहर आते ही
शीशे के अनगिनत
टुकड़ों की तरह
बिखर जाऊंगा
मेरे अवशेषों पर
कदम ताल करने वालों को
भान भी न होगा
कि कभी मेरा अस्तित्व भी था।
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अस्तित्व... एक अनसुलझी पहेली जितना सुलझाने की कोशिश करो उलझती ही जाती है...
ReplyDeleteगहन भाव... मर्मस्पर्शी रचना...
सच तो एक -न -एक दिन बाहर आ ही जाती है गंभीर रचना
ReplyDeleteमेरे अवशेषों पर
ReplyDeleteकदम ताल करने वालों को
भान भी न होगा
कि कभी मेरा अस्तित्व भी था।
ह्रदय के उद्गार बहुत व्यथित हो प्रगट हुए हैं सुन्दर भावाभिव्यक्ति बधाई यशवंत जी
मेरे अवशेषों पर
ReplyDeleteकदम ताल करने वालों को
भान भी न होगा
कि कभी मेरा अस्तित्व भी था
बहुत ही जीवंत रचना है.....
बधाई.....
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 21 - 07- 2011 को यहाँ भी है
ReplyDeleteनयी पुरानी हल चल में आज- उसकी आँखों में झिल मिल तारे -
कब तक चलना है
ReplyDeleteइस राह पर
जिस के हर कदम पर
आशाओं की मृग मरीचिका...बहुत सुन्दर भाव रचना शब्दों और ्भावो का अच्छा ताल मेल...
isi sawal ka jawab to ham sabhi dund rahe hai.... sunder rachna....
ReplyDeletebhaut khubsrat...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना!
ReplyDeleteएक ऐसा सच
ReplyDeleteजिसके बाहर आते ही
शीशे के अनगिनत
टुकड़ों की तरह
बिखर जाऊंगा
वजूद के अस्तित्व को कहती अच्छी रचना ...
कम शब्दों में गहरी बात।
ReplyDelete------
बेहतर लेखन की ‘अनवरत’ प्रस्तुति।
अब आप अल्पना वर्मा से विज्ञान समाचार सुनिए..
आशा और निराशा जिंदगी के दो पहलू है। इसके बिना जिंदगी नही। सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...भाव और शब्द दोनों...
ReplyDeleteयशवंत जी गहन भावों को प्रकट किया है आपने .आभार
ReplyDeletebahut achchhi aur gahan bhavabhivyakti !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गंभीर भाव रचना बधाई
ReplyDeleteWhat actually is life--- greatly and profoundly revealed.
ReplyDeleteबहुत गहन अभिव्यक्ति ....
ReplyDelete''जीवन केरा बुदबुदा अस मानुस की जात ''
बहुत सुंदर रचना ....
अच्छी रचना है शुभकामनाएं।
ReplyDeleteऔर जब अपने अस्तित्व का अहसास खुद को नहीं होगा तभी एक नए जीवन की शुरुआत होगी....
ReplyDeleteवाह ...बहत ही अच्छा लिखा है आपने ।
ReplyDeleteगहन जीवन दर्शन है आपकी इस रचना में....
ReplyDeleteवाह........यशवंत जी वाह....हैट्स ऑफ........अभूत दिल को छू लेने वाली बात कही है आपने........शानदार |
ReplyDeleteजीवंत रचना
ReplyDeleteयशवंत भाई अब कशमकश से बाहर निकालने का समय है|
ReplyDeleteअस्तित्व की पहचान युगों युगों से एक यक्ष प्रश्न ....बहुत ही गहन भाव युक्त दार्शनिक चिंतन की परिचायक रचना...बधाईयां एवं शुभ कामनाएं !!!
ReplyDeletebahut sundar rachna ..antardavand aisa hi hota hai..
ReplyDeleteबहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया यशवंत जी.....
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteकम शब्दों में गहरी बात......यशवंत भाई
ReplyDeleteमेरे अवशेषों पर
ReplyDeleteकदम ताल करने वालों को
भान भी न होगा
कि कभी मेरा अस्तित्व भी था।
bahut hi sundar rachna ,aapki dil se aabhari hoon nahi to mujhe khabar hi nahi hoti ki ek purani rachna kahi sarahi gayi hai ,main ek pal ko yakin nahi kar paa rahi thi ,ek baar phir shukriyaan .