आज सावन का दूसरा सोमवार है। सावन के महीने मे भगवान शिव की आराधना का अपना अलग महत्व है। भगवान शिव के वास्तविक स्वरूप पर प्रकाश डालते अपने पिता जी के इस लेख को उनके ब्लॉग क्रान्ति स्वर से साभार यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
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"ॐ नमः शिवाय च का अर्थ है-Salutation To That Lord The Benefactor of all "यह कथन है संत श्याम जी पराशर का.अर्थात हम अपनी मातृ -भूमि भारत को नमन करते हैं.वस्तुतः यदि हम भारत का मान-चित्र और शंकर जी का चित्र एक साथ रख कर तुलना करें तो उन महान संत क़े विचारों को ठीक से समझ सकते हैं.शंकर या शिव जी क़े माथे पर अर्ध-चंद्राकार हिमाच्छादित हिमालय पर्वत ही तो है.जटा से निकलती हुई गंगा -तिब्बत स्थित (अब चीन क़े कब्जे में)मानसरोवर झील से गंगा जी क़े उदगम की ही निशानी बता रही है.नंदी(बैल)की सवारी इस बात की ओर इशारा है कि,हमारा भारत एक कृषि -प्रधान देश है.क्योंकि ,आज ट्रेक्टर-युग में भी बैल ही सर्वत्र हल जोतने का मुख्य आधार है.शिव द्वारा सिंह-चर्म को धारण करना संकेत करता है कि,भारत वीर-बांकुरों का देश है.शिव क़े आभूषण(परस्पर विरोधी जीव)यह दर्शाते हैंकि,भारत "विविधताओं में एकता वाला देश है."यहाँ संसार में सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र चेरापूंजी है तो संसार का सर्वाधिक रेगिस्तानी इलाका थार का मरुस्थल भी है.विभिन्न भाषाएं बोली जाती हैं तो पोशाकों में भी विविधता है.बंगाल में धोती-कुर्ता व धोती ब्लाउज का चलन है तो पंजाब में सलवार -कुर्ता व कुर्ता-पायजामा पहना जाता है.तमिलनाडु व केरल में तहमद प्रचलित है तो आदिवासी क्षेत्रों में पुरुष व महिला मात्र गोपनीय अंगों को ही ढकते हैं.पश्चिम और उत्तर भारत में गेहूं अधिक पाया जाता है तो पूर्व व दक्षिण भारत में चावल का भात खाया जाता है.विभिन्न प्रकार क़े शिव जी क़े गण इस बात का द्योतक हैं कि, यहाँ विभिन्न मत-मतान्तर क़े अनुयायी सुगमता पूर्वक रहते हैं.शिव जी की अर्धांगिनी -पार्वती जी हमारे देश भारत की संस्कृति (Culture )ही तो है.भारतीय संस्कृति में विविधता व अनेकता तो है परन्तु साथ ही साथ वह कुछ मौलिक सूत्रों द्वारा एकता में भी आबद्ध हैं.हमारे यहाँ धर्म की अवधारणा-धारण करने योग्य से है.हमारे देश में धर्म का प्रवर्तन किसी महापुरुष विशेष द्वारा नहीं हुआ है जिस प्रकार इस्लाम क़े प्रवर्तक हजरत मोहम्मद व ईसाईयत क़े प्रवर्तक ईसा मसीह थे.हमारे यहाँ राम अथवा कृष्ण धर्म क़े प्रवर्तक नहीं बल्कि धर्म की ही उपज थे.राम और कृष्ण क़े रूप में मोक्ष -प्राप्त आत्माओं का अवतरण धर्म की रक्षा हेतु ही,बुराइयों पर प्रहार करने क़े लिये हुआ था.उन्होंने कोई व्यक्तिगत धर्म नहीं प्रतिपादित किया था.आज जिन मतों को विभिन्न धर्म क़े नाम से पुकारा जा रहा है ;वास्तव में वे भिन्न-भिन्न उपासना-पद्धतियाँ हैं न कि,कोई धर्म अलग से हैं.लेकिन आप देखते हैं कि,लोग धर्म क़े नाम पर भी विद्वेष फैलाने में कामयाब हो जाते हैं.ऐसे लोग अपने महापुरुषों क़े आदर्शों को सहज ही भुला देते हैं.आचार्य श्री राम शर्मा गायत्री परिवार क़े संस्थापक थे और उन्होंने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कहा था -"उन्हें मत सराहो जिनने अनीति पूर्वक सफलता पायी और संपत्ति कमाई."लेकिन हम देखते हैं कि,आज उन्हीं क़े परिवार में उनके पुत्र व दामाद इसी संपत्ति क़े कारण आमने सामने टकरा रहे हैं.गायत्री परिवार में दो प्रबंध समितियां बन गई हैं.अनुयायी भी उन दोनों क़े मध्य बंट गये हैं.कहाँ गई भक्ति?"भक्ति"शब्द ढाई अक्षरों क़े मेल से बना है."भ "अर्थात भजन .कर्म दो प्रकार क़े होते हैं -सकाम और निष्काम,इनमे से निष्काम कर्म का (आधा क) और त्याग हेतु "ति" लेकर "भक्ति"होती है.आज भक्ति है कहाँ?महर्षि दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना धर्म में प्रविष्ट कुरीतियों को समाप्त करने हेतु ही एक आन्दोलन क़े रूप में की थी.नारी शिक्षा,विधवा-पुनर्विवाह ,जातीय विषमता की समाप्ति की दिशा में महर्षि दयानंद क़े योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता.आज उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज में क्या हो रहा है-गुटबाजी -प्रतिद्वंदिता .
काफी अरसा पूर्व आगरा में आर्य समाज क़े वार्षिक निर्वाचन में गोलियां खुल कर चलीं थीं.यह कौन सी अहिंसा है?जिस पर स्वामी जी ने सर्वाधिक बल दिया था. स्वभाविक है कि, यह सब नीति-नियमों की अवहेलना का ही परिणाम है,जबकि आर्य समाज में प्रत्येक कार्यक्रम क़े समापन पर शांति-पाठ का विधान है.यह शांति-पाठ यह प्रेरणा देता है कि, जिस प्रकार ब्रह्माण्ड में विभिन्न तारागण एक नियम क़े तहत अपनी अपनी कक्षा (Orbits ) में चलते हैं उसी प्रकार यह संसार भी जियो और जीने दो क़े सिद्धांत पर चले.परन्तु एरवा कटरा में गुरुकुल चलाने वाले एक शास्त्री जी ने रेलवे क़े भ्रष्टतम व्यक्ति जो एक शाखा क़े आर्य समाज का प्रधान भी रह चुका था क़े भ्रष्टतम सहयोगी क़े धन क़े बल पर एक ईमानदार कार्यकर्ता पर प्रहार किया एवं सहयोग दिया पुजारी व पदाधिकारियों ने तो क्या कहा जाये कि, आज सत्यार्थ-प्रकाश क़े अनुयायी ही सत्य का गला घोंट कर ईमानदारी का दण्ड देने लगे हैं.यह सब धर्म नहीं है.परन्तु जन-समाज ऐसे लोगों को बड़ा धार्मिक मान कर उनका जय-जयकारा करता है.आज जो लोगों को उलटे उस्तरे से मूढ़ ले जाये उसे ही मान-सम्मान मिलता है.ऐसे ही लोग धर्म व राजनीति क़े अगुआ बन जाते हैं.ग्रेषम का अर्थशास्त्र में एक सिद्धांत है कि,ख़राब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है.ठीक यही हाल समाज,धर्म व राजनीति क़े क्षेत्र में चल रहा है.
दुनिया लूटो,मक्कर से.
रोटी खाओ,घी-शक्कर से.
एवं
अब सच्चे साधक धक्के खाते हैं .
फरेबी आज मजे-मौज उड़ाते हैं.
आज बड़े विद्वान,ज्ञानी और मान्यजन लोगों को जागरूक होने नहीं देना चाहते,स्वजाति बंधुओं की उदर-पूर्ती की खातिर नियमों की गलत व्याख्या प्रस्तुत कर देते हैं.राम द्वारा शिव -लिंग की पूजा किया जाना बता कर मिथ्या सिद्ध करना चाहते हैं कि, राम क़े युग में मूर्ती-पूजा थी और राम खुद मूर्ती-पूजक थे. वे यह नहीं बताना चाहते कि राम की शिव पूजा का तात्पर्य भारत -भू की पूजा था. वे यह भी नहीं बताना चाहते कि, शिव परमात्मा क़े उस स्वरूप को कहते हैं कि, जो ज्ञान -विज्ञान का दाता और शीघ्र प्रसन्न होने वाला है. ब्रह्माण्ड में चल रहे अगणित तारा-मंडलों को यदि मानव शरीर क़े रूप में कल्पित करें तो हमारी पृथ्वी का स्थान वहां आता है जहाँ मानव शरीर में लिंग होता है.यही कारण है कि, हम पृथ्वी -वासी शिव का स्मरण लिंग रूप में करते हैं और यही राम ने समझाया भी होगा न कि, स्वंय ही लिंग बना कर पूजा की होगी. स्मरण करने को कंठस्थ करना कहते हैं न कि, उदरस्थ करना.परन्तु ऐसा ही समझाया जा रहा है और दूसरे विद्वजनों से अपार प्रशंसा भी प्राप्त की जा रही है. यही कारण है भारत क़े गारत होने का. जैसे सरबाईना और सेरिडोन क़े विज्ञापनों में अमीन सायानी और हरीश भीमानी जोर लगते है अपने-अपने उत्पाद की बिक्री का वैसे ही उस समय जब इस्लाम क़े प्रचार में कहा गया कि हजरत सा: ने चाँद क़े दो टुकड़े कर दिए तो जवाब आया कि, हमारे भी हनुमान ने मात्र ५ वर्ष की अवस्था में सूर्य को निगल लिया था अतः हमारा दृष्टिकोण श्रेष्ठ है. परन्तु दुःख और अफ़सोस की बात है कि, सच्चाई साफ़ करने क़े बजाये ढोंग को वैज्ञानिकता का जामा ओढाया जा रहा है.
यदि हम अपने देश व समाज को पिछड़ेपन से निकाल कर ,अपने खोये हुए गौरव को पुनः पाना चाहते हैं,सोने की चिड़िया क़े नाम से पुकारे जाने वाले देश से गरीबी को मिटाना चाहते हैं,भूख और अशिक्षा को हटाना चाहते हैंतो हमें "ॐ नमः शिवाय च "क़े अर्थ को ठीक से समझना ,मानना और उस पर चलना होगा तभी हम अपने देश को "सत्यम,शिवम्,सुन्दरम"बना सकते हैं.आज की युवा पीढी ही इस कार्य को करने में सक्षम हो सकती है.अतः युवा -वर्ग का आह्वान है कि, वह सत्य-न्याय-नियम और नीति पर चलने का संकल्प ले और इसके विपरीत आचरण करने वालों को सामजिक उपेक्षा का सामना करने पर बाध्य कर दे तभी हम अपने भारत का भविष्य उज्जवल बना सकते हैं.काश ऐसा हो सकेगा?हम ऐसी आशा तो संजो ही सकते हैं.
" ओ ३ म *नमः शिवाय च" कहने पर उसका मतलब यह होता है.:-
*अ +उ +म अर्थात आत्मा +परमात्मा +प्रकृति
च अर्थात तथा/ एवं / और
शिवाय -हितकारी,दुःख हारी ,सुख-स्वरूप
नमः नमस्ते या प्रणाम या वंदना या नमन
शिव-रात्रि पर ही मूल शंकर को बोद्ध हुआ था और वह शिव अर्थात कल्याणकारी की खोज में निकल पड़े थे और आचार्य डॉ.रविदत्त शर्मा के शब्दों में उन्हें जो बोद्ध हुआ वह यह है :-
जिस में शिव का दर्शन हो,वही रात्रि है शिवरात्रि.
करे कल्याण जीवन का,वही रात्रि है शिवरात्रि..
कभी मन में विचार ही नहीं,शिव कौन है क्या है?
जो दिन में ही भटकते हैं;सुझाए क्या उन्हें रात्रि..
शिव को खोजने वाला,फकत स्वामी दयानंद था.
उसी ने हमको बतलाया,कि होती क्या है शिवरात्रि..
शिव ईश्वर है जो संसार का कल्याण करता है.
आत्म कल्याण करने के लिए आती है शिवरात्रि..
धतूरा भांग खा कर भी,कहीं कल्याण होता है?
जो दुर्व्यसनों में खोये,उनको ठुकराती है शिवरात्रि..
सदियाँ ही नहीं युग बीत जायेंगे जो अब भी न संभले.
जीवन भर रहेगी रात्रि,न आयेगी शिवरात्रि..
आर्यों के लिए यह पर्व एक पैगाम देता है.
उपासक सच्चे शिव के बनने से होती है शिव रात्रि..
प्रकृति में लिप्त भक्तों ,नेत्र तो खोलो.
ज्ञान के नेत्र से देखोगे,तो समझोगे शिवरात्रि..
ऋषि की बात मानो अब न भटको रहस्य को समझो.
यह तो बोद्ध रात्रि है,जिसे कहते हो शिवरात्रि..
हम देखते हैं ,आज आर्य समाज को भी आर.एस.एस.ने जकड लिया है और वहां से भी 'आर्य'की बजाये विदेशियों द्वारा दिए गए नाम का उच्चारण होने लगा है.1875 में महर्षि स्वामी दयानंद ने (१८५७ की क्रांति में भाग लेने और उसकी विफलता से सबक के बाद)'आर्यसमाज'की स्थापना देश की आजादी के लिए की थी.कलकत्ता में कर्नल नार्थ ब्रुक से भेंट कर शीघ्र स्वाधीनता की कामना करने पर उसने रानी विक्टोरिया को लिखे पत्र में कहा-"दयानंद एक बागी फ़कीर है (Revolutionary Saint )"इलाहबाद हाई कोर्ट में उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाया गया.महर्षि ने अपने जीवन काल में जितने भी आर्य समाजों की स्थापना की वे छावनियों वाले शहर थे.दादा भाई नौरोजी ने कहा है-"सर्व प्रथम स्वराज्य शब्द महर्षि दयानंद के "सत्यार्थ प्रकाश"में पढ़ा". 'कांग्रेस का इतिहास ' में डॉ.पट्टाभी सीता राम्माय्या ने लिखा है स्वतंत्रता आन्दोलन के समय जेल जाने वालों में ८५ प्रतिशत व्यक्ति आर्य समाजी होते थे.
आर्य समाज को क्षीण करने हेतु रिटायर्ड आई.सी.एस. जनाब ए.ओ.ह्युम की मार्फ़त वोमेश चन्द्र बेनर्जी के नेतृत्त्व में इन्डियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना सेफ्टी वाल्व के रूप में हुयी थी लेकिन दयान्द के इशारे पर आर्य समाजी इसमें प्रवेश करके स्वाधीनता की मांग करने लगे.
१९०५ में बंगाल का असफल विभाजन करने के बाद १९०६ में ढाका के नवाब मुश्ताक हुसैन को मोहरा बना कर मुस्लिम लीग तथा १९२० में कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेताओं (मदन मोहन मालवीय,लाला लाजपत राय आदि) को आगे कर हिन्दू महासभा का गठन फूट डालो और राज करो की नीति के तहत (ब्रिटिश साम्राज्यवाद की दुर्नीति ) हुआ एवं एच.एम्.एस.के मिलिटेंट संगठन के रूप में आर.एस.एस.अस्तित्व में आया जो आज आर्य समाज को विचलित कर रहा है.नतीजा फिर से ढोंग-पाखंड को बढ़ावा मिल रहा है.
अब यदि देश को फिर गुलाम होने से बचाना है तो ढोंग-पाखंड को ठुकरा कर दयानंद के बताये मार्ग पर चलना ही होगा.'आर्याभीविनय ' के एक मन्त्र की व्याख्या करते हुए महर्षि लिखते हैं-"हे परमात्मन हमारे देश में कोई विदेशी शासक न हो आर्यों का विश्व में चक्रवर्त्ति साम्राज्य हो" (ये सम्पूर्ण तथ्य श्री रामावतार शर्मा द्वारा "निष्काम परिवर्तन "पत्रिका के मार्च १९९९ में लिखित लेख से लिए गए हैं)
----विजय माथुर
----विजय माथुर
बहुत अच्छी पोस्ट ।
ReplyDeleteयथार्थ का सुंदर व विचारणीय चित्रण,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अच्छा आलेख....
ReplyDeleteविचारणीय आलेख....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ||
ReplyDeleteबधाई ||
यथार्थपरक आलेख....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक आलेख
ReplyDeleteबहुत सारी नयी बातों की जानकारी हुई इस लेख को पढ़कर, आज लगभग सभी संस्थायें किसी न किसी गुटबाजी का शिकार हो रही हैं, स्वार्थ के कारण किसी को हित अहित सूझ नहीं रहा है, लेकिन अन्ततः जीत सत्य की ही होती है.
ReplyDeleteसटीक आलेख्।
ReplyDeletesarthak v gyanvardhak aalekh hetu aabhar
ReplyDeleteयशवंत जी ऐसी ज्ञानवर्धक व आध्यात्मिक प्रस्तुति हेतु आभार.
ReplyDeleteविचारणीय आलेख....
ReplyDeleteएक सटी औ ज्ञानवर्द्धक आलेख.....
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
बहुत बहुत धन्यवाद ऐसी सार्थक और महतवपूर्ण जानकारी देने के लिए..
ReplyDeleteॐ नमः शिवाय...
ReplyDeleteनए रूप में शिव को देखा है आपने अति उत्तम ...
ReplyDeleteविजय जी , सबसे पहले इस सुन्दर ,सार्थक आलेख के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें .यह आज की पुकार ही नहीं है वरन हमारी जरुरत है कि हम नए परिप्रेक्ष्य में किसी विषय की पुनर्व्याख्या करे व उसे आत्मसात करें .अच्छी लगी पोस्ट.
ReplyDeleteयशवंत माथुर जी हार्दिक अभिवादन -सुन्दर व्याख्या -जय शिव शंकर -ज्ञान वर्धन आलेख
ReplyDeleteसुन्दर भाव -बधाई
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
हमें "ॐ नमः शिवाय च "क़े अर्थ को ठीक से समझना ,मानना और उस पर चलना होगा तभी हम अपने देश को "सत्यम,शिवम्,सुन्दरम"बना सकते हैं.आज की
शायद इसीलिए तुलसीदास जी ने इसे बहुत ही संजीदगी से लेते हुए लिखा था
ReplyDeleteशिव द्रोही मम दास कहावा ..............
घनाक्षरी समापन पोस्ट - १० कवि, २३ भाषा-बोली, २५ छन्द
शिव जी के इस रूप से नावाकिफ थे..एक नए रूप में उनको जाना.
ReplyDeleteशिवरात्रि का अर्थ समझाती कविता भी अद्भुत लगी.
शिव का अर्थ ही कल्याण है .
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आर्य समाज की स्थापना का जो उद्देश्य था आज उसके अनुयायी उस उद्देश्य से भटक रहे हैं...यह लेख बहुत ही गहन अध्ययन का परिणाम है.सार्थक लेख हेतु विजय माथुर जी को बधाई .
बहुत ज्ञान वर्धक लेख...आपके पिता जी को इस विलक्षण लेखन के लिए प्रणाम...
ReplyDeleteनीरज
sarthak lekhan.
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 28 - 07- 2011 को यहाँ भी है
ReplyDeleteनयी पुरानी हल चल में आज- खामोशी भी कह देती है सारी बातें -
यशवंत जी... ऐसी ज्ञानवर्धक व आध्यात्मिक सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार....
ReplyDeleteविचारणीय और ज्ञानवर्धक विवेचन ..... आपके पिताजी की लिखी सुंदर पोस्ट पढवाई आभार
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहूत धन्यवाद।
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