04 August 2011

रहना चाहता हूँ दूर ......

सिर्फ स्वप्न हैं
अनगिनत
आशाओं का
एक अजब सा
माया जाल है
हर तरफ
भागमभाग है-
आगे बढने की
कभी खुद की इच्छा से
खुद के बल से
और कभी
किसी को जबरन
धकेल कर
किसी 'सीधे' को
मोहपाश मे बांध कर
तेज़ी से 
ऊपर की मंज़िल पर
चढ़ने की
बिना कोई सबक लिए
कछुआ और खरगोश की
कहानी से।
इस मायाजाल से
मैं रहना चाहता हूँ दूर
खड़े रहना चाहता हूँ
पैरों को ज़मीन से टिकाए
क्योंकि
ऊपर की मंज़िल के
सँकरेपन का आभास है
डर है
ऊपर से पैर फिसला
तो आ न सकूँगा
ज़मीन पर।

36 comments:

  1. bilkul apni si lagi ye kavita.. :)

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  2. इस मायाजाल से
    मैं रहना चाहता हूँ दूर
    खड़े रहना चाहता हूँ
    पैरों को ज़मीन से टिकाए
    क्योंकि
    ऊपर की मंज़िल के
    सँकरेपन का आभास है ... abhaas hai to phir chinta kaisi ... maya ke mohak van se bache rahenge , bas dil ko majboot rakhna hai

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  3. हर ह्रदय में सहज रूप से उठती भावनाओं को शब्द दे दिया है .सोच को जगाती रचना .फैसला को जरा देख लेंगे. शुभकामना

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  4. इस मायाजाल से
    मैं रहना चाहता हूँ दूर
    खड़े रहना चाहता हूँ
    पैरों को ज़मीन से टिकाए
    क्योंकि
    ऊपर की मंज़िल के
    सँकरेपन का आभास है ...बहुत सुन्दर भावों से सजाए हैं अपनी रचना को ..खुबसूरत प्रस्तुति...

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  5. वाह ...बहुत ही अच्‍छी रचना ।

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  6. bahot sundar...bahot khaaass...

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  7. सही है इस मायाजाल से दूर ही रहना।
    सुंदर भाव
    शुभकामनाएं

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  8. एहसास बेहतर ढंग से शब्दों में पिरोया है ....

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  9. संकरेपन का एहसास ही ज़मीन से जोड़े रहेगा ..सुन्दर भाव

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  10. भिक्षाटन करता फिरे, परहित चर्चाकार |
    इक रचना पाई इधर, धन्य हुआ आभार ||

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  11. वाह कितनी गहरी और सटीक बात कही है।

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  12. दिल को छु गयी रचना...

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  13. bhaut hi touching hai rachna...

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  14. ऊपर की मंज़िल के
    सँकरेपन का आभास है
    डर है
    ऊपर से पैर फैसला
    तो आ न सकूँगा
    ज़मीन पर।
    क्या बात है....सुन्दर

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  15. इस मायाजाल से
    मैं रहना चाहता हूँ दूर
    खड़े रहना चाहता हूँ
    पैरों को ज़मीन से टिकाए
    क्योंकि
    ऊपर की मंज़िल के
    सँकरेपन का आभास है

    बहुत बढ़िया ..... कमाल की सोच...

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  16. कुछ भी हो कदम जमीं पर ही रहने चाहिए...बहुत खूबसूरत...

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  17. सही सोच ...
    सार्थक सन्देश !

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  18. सुन्दर रचना,

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  19. आप के कवि मन ने कविता के अगले पड़ाव की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया है यशवंत भाई :) बधाई

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  20. यशवंत भाई
    नमस्कार!
    कोमल भावों से सजी ....दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  21. बहुत खूबसूरत......इस दौड़ से जितना बच सको उतना बढ़िया.........खुश है वो जो पीछे खड़ा रहने को राज़ी है|

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  22. बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत रचना. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  23. सदैव हौसले बुलंद हो , तो आगे बढ़ने में मजा ही मजा है ! बहुत सुन्दर

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  24. रचना चर्चा मंच पर है आज ||

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  25. इस मायाजाल से
    मैं रहना चाहता हूँ दूर
    खड़े रहना चाहता हूँ
    पैरों को ज़मीन से टिकाए ....

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
    सादर शुभकामनाएं...

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  26. aaj pahli bar aapke blog par aaya hun ..bahut achchha lga

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  27. ऊपर की मंज़िल के
    सँकरेपन का आभास है
    डर है
    ऊपर से पैर फिसला
    तो आ न सकूँगा
    ज़मीन पर।
    बहुत ही बढ़िया .

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  28. great message n intense thoughts..
    brilliantly written
    Loved it as always :)

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  29. जीवन के चक्रव्यूह को सरल सहज भाव से चित्रित कर दिया....

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  30. बहुत खूब - बहुत सुंदर

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  31. उम्दा सोच
    भावमय करते शब्‍दों के साथ गजब का लेखन ...आभार

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  32. माया जाल से बाहर आना ही पुरुषार्थ है ...

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