तेज़ रफ्तार मे चलते हुए
जाने अनजाने
कभी कभी आ जाते हैं
कुछ टेड़े मेड़े मोड़
जिनके तीखे ,अंधे
घुमाव का
नहीं होता अंदाज़ा
आखिर टकराना
होता ही है
गिरना होता ही है
झेलना पड़ता है
अनचाहा
क्षणिक जड़त्व
झेलना पड़ता है
जगह जगह
खरोचों को
ज़ख़्मों को
हर बार मिलती है
कभी समझ न आने वाली सीख
संतुलित हो कर चलने की।
जाने अनजाने
कभी कभी आ जाते हैं
कुछ टेड़े मेड़े मोड़
जिनके तीखे ,अंधे
घुमाव का
नहीं होता अंदाज़ा
आखिर टकराना
होता ही है
गिरना होता ही है
झेलना पड़ता है
अनचाहा
क्षणिक जड़त्व
झेलना पड़ता है
जगह जगह
खरोचों को
ज़ख़्मों को
हर बार मिलती है
कभी समझ न आने वाली सीख
संतुलित हो कर चलने की।
गहन चिंतन करवाती रचना.....
ReplyDeleteठीक लिखा है ...जीवन के मोड़ पर सवाधानी रखना आवश्यक है ...और रक्तर पर तो ख़ास तौर से ...!!
ReplyDeleteसीख देती हुई सुंदर रचना ....
मुबारक हो जन्माष्टमी.
ReplyDeleteहर बार मिलती है
ReplyDeleteकभी समझ न आने वाली सीख
संतुलित हो कर चलने की।......सुन्दर भाव सुन्दर अभिव्यक्ति...
बहुत अच्छी रचना |
ReplyDeleteइस नए ब्लॉग में पधारें |
काव्य का संसार
बहुत सारगर्भित प्रस्तुति..जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteहर बार मिलती है
ReplyDeleteकभी समझ न आने वाली सीख
संतुलित हो कर चलने की।
mathurji,
namaskar,
sahee kaha aapne,har thokar ek sabk de jati hai
aapka bahut abhar.
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteहर बार मिलती है
ReplyDeleteकभी समझ न आने वाली सीख
संतुलित हो कर चलने की।
बेहतरीन रचना....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteश्री कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
भावों और शब्दों का सुंदर संयोजन....
ReplyDeleteहर बार मिलती है
ReplyDeleteकभी समझ न आने वाली सीख
संतुलित हो कर चलने की।
बिलकुल sahi kahaa yashwant jee .
sundar प्रस्तुति krishn janmashtmi kee bahut bahut shubhkamnayen
मनुष्य ठोकरों से ही सीखता है !
ReplyDeleteहर बार मिलती है
ReplyDeleteकभी समझ न आने वाली सीख
संतुलित हो कर चलने की।
हर ठोकर कुछ सिखाती तो है , सीखे या नहीं सीखें , ठोकर खाने वाले की मर्जी !
गहन चिंतन !
आज 23 - 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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ज़िंदगी के मोड़ पर संतुलन बनाना पड़ता है ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteaadamee galtee karke seekhataa hai
ReplyDeleteउत्कृष्ट कविता,उत्तम सीख. शुभकामना.
ReplyDeleteखूबसूरत बात कही है यशवंत जी
ReplyDeleteसुन्दर व सारगर्भित रचना।
ReplyDeleteकभी-कभी तेज रफ्तार में आने वाले मोड़ आखिरी भी साबित हो जाते हैं...जिंदगी की रफ्तार में भी संतुलन और नियंत्रण बहुत जरूरी है...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...
anubhav से ही हम सही kaam करना सीखते हैं .आभार
ReplyDeleteARE YOU READY FOR BLOG PAHELI -2
सुन्दर सीख देती खूबसूरत रचना |
ReplyDeleteहर बार मिलती है
ReplyDeleteकभी समझ न आने वाली सीख
संतुलित हो कर चलने की।
मानव यहीं तो भूल करता है... भूलने की बीमारी है उसे... सुंदर कविता !
This happens daily... without exception.
ReplyDeleteWe need to learn, but Alas as always we don't :D
हाँ ठोकर से सीख लेना भी ज़िन्दगी का एक नियम ही है.. सही भाव!
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteप्रेरक रचना के लिए बधाई।
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